थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है. इस रोग में लाल रक्त कण (Red Blood Cells) (RBC) नहीं बन पाते हैं और जो बन पाते है वो कुछ समय तक ही रहते है. इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है.
ये रोग अनुवांशिक होने के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है. यह रोग काफी कष्टदायक होता है दोनों मरीज़ के लिए और सम्पूर्ण परिवार के लिए भी.
यह एक ऐसा रक्त विकार है जिसके कारण खून की कमी हो जाती है, रोगी को एनीमिया हो जाता है और बहुत जल्द थकान भी होने लगती है. रोगियों को जीवित रहने के लिए हर दो से तीन सप्ताह में रक्त संक्रमण (blood transfusion) की आवश्यकता होती है.
क्या आप जानते हैं कि प्रत्येक लाल रक्त कोशिका में हीमोग्लोबिन के 240 से 300 मिलियन अणु हो सकते हैं? रोग की गंभीरता जीन (gene) और उनके इंटरप्ले (interplay) में शामिल उत्परिवर्तनों (mutations) पर निर्भर करती है.
यदि माइल्ड थैलेसीमिया (mild thalessemia) हैं तो आपको उपचार की आवश्यकता नहीं है. परन्तु अगर यह गंभीर है तो आपको नियमित रक्त संक्रमण की आवश्यकता हो सकती है और थकान कम हो इसके लिए आप स्वस्थ आहार और नियमित रूप से व्यायाम कर सकते हैं.
हीमोग्लोबिन क्या है?
यह लाल रक्त कण में पाया जाने वाला एक प्रोटीन अणु है जो फेफड़ों से ऑक्सीजन को शरीर के ऊतकों तक ले जाता है और ऊतकों से कार्बन डाइऑक्साइड को फेफड़ों में वापस लता है. हीमोग्लोबिन में निहित आयरन के कारण हमारा रक्त लाल रंग का होता है.
थैलेसीमिया रोग के प्रकार?
थैलेसीमिया रोग के प्रकार माता-पिता से प्राप्त जीन उत्परिवर्तन (gene mutations) की संख्या पर निर्भर करते हैं और हीमोग्लोबिन अणु का हिस्सा उत्परिवर्तन से ही तो प्रभावित होता है. अगर जीन में अधिक उत्परिवर्तन है तो थैलेसीमिया रोग भी अधिक गंभीर होगा. हम जानते हैं कि हीमोग्लोबिन अणु अल्फा और बीटा भागों से बने होते हैं जो उत्परिवर्तन से प्रभावित हो सकते हैं.
1. थैलेसीमिया माइनर: यह बीमारी उन बच्चों को होती है जिनसे प्रभावित जीन्स माता अथवा पिता द्वारा प्राप्त होते हैं. इस प्रकार से पीड़ित थैलेसीमिया के रोगियों में अक्सर कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं. यह रोगी थैलेसीमिया वाहक होते हैं. अगर किसी जीन में थैलेसीमिया के ट्रेट पाए जाते हैं तो उन्हें कैरियर या थैलेसीमिया माइनर कहा जाता है. थैलेसीमिया माइनर कोई बीमारी नहीं है और इससे पीड़ित लोगों को माइल्ड एनीमिया होता है.
- थैलेसेमिया माइनर वाले व्यक्ति में बीटा थैलेसेमिया जीन की एक प्रतिलिपि होती है जिसमें एक पूरी तरह से सामान्य बीटा-चेन जीन होता है. रोगी में इसके लक्षण हल्के होते हैं और ये बीटा-थैलेसेमिया के रूप में भी जाना जाता है. इस स्थिति को थैलेसीमिया माइनर या बीटा- थैलेसीमिया कहते है.
- थैलेसेमिया मेजर बिमारी से पैदा हुए रोगी में बीटा थैलेसेमिया के दो जीन होते हैं और कोई भी सामान्य बीटा-चेन जीन नहीं होता है. यह बीटा श्रृंखला उत्पादन में कमी कर देता है. इन उत्परिवर्तित जीन (mutated gene) के कारण रोगियों में लक्षण मध्यम से गंभीर तक हो सकते हैं और इस स्थिति को Cooley एनीमिया के रूप में भी जाना जाता है. यह बीमारी उन बच्चों को होती है जिनके माता और पिता दोनों के जींस में गड़बड़ी होती हैं. यदि माता और पिता दोनों थैलेसीमिया माइनर हो तो होने वाले बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने का खतरा अधिक रहता है. इन पीड़ित बच्चों में एक वर्ष के अंदर ही गंभीर एनीमिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. जीवित रहने के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति या फिर नियमित रूप से रक्त संक्रमण की आवश्यकता होती है.
2. थैलेसीमिया इंटरमीडिया: इस बीमारी में रोगियों को माइल्ड से गंभीर लक्षण हो सकते हैं. यह दो उत्परिवर्तित जींस के साथ भी हो सकता है.
3. एल्फा थैलेसीमिया रोग
इस प्रकार की बीमारी में चार जीन एल्फा हीमोग्लोबिन श्रृंखला बनाने में शामिल होते हैं. प्रत्येक माता-पिता से दो जीन आते हैं.
यदि 1 उत्परिवर्तित जीन विरासत में मिलता है, तो थैलेसीमिया के कोई संकेत और लक्षण नहीं देखे जाते हैं. लेकिन आप बीमारी का वाहक बन जाते हैं और इसे अपने बच्चों को पास कर सकते हैं.
यदि 2 उत्परिवर्तित जीन विरासत में प्राप्त होते हैं, तो रोगियों के पास हल्के थैलेसीमिया रोग के लक्षण होते हैं. इस स्थिति को एल्फा-थैलेसीमिया ट्रेट के रूप में भी जाना जाता है.
यदि 3 उत्परिवर्तित जीन विरासत में प्राप्त होते हैं, तो थैलेसीमिया रोग के लक्षण मध्यम से गंभीर हो सकते हैं.
यदि 4 उत्परिवर्तित जीन विरासत में प्राप्त होते हैं, तो इस प्रकार की बीमारी ज्यादा नहीं पाई जाती है. प्रभावित भ्रूण को गंभीर एनीमिया होता है. ऐसे बच्चे जन्म के कुछ ही समय बाद मर जाते हैं या आजीवन ट्रांसफ्यूजन थेरेपी की आवश्यकता होती है. दुर्लभ मामलों में, इस स्थिति से पैदा होने वाले बच्चे को ट्रांसफ्यूजन और बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति के द्वारा इलाज किया जा सकता है.
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थैलेसीमिया रोग के लक्षण
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थैलेसीमिया रोग के लक्षण थैलेसीमिया रोग के प्रकार पर निर्भर करते हैं.
अधिकांश शिशुओं में 6 महीने तक बीटा थैलेसीमिया रोग और कुछ प्रकार के एल्फा थैलेसीमिया रोग के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं क्योंकि 6 महीने के बाद भ्रूण में सामान्य हीमोग्लोबिन के प्रकार बदलना शुरू होते हैं और लक्षण प्रकट होने लगते हैं.
कुछ लक्षण इस प्रकार हैं:
- छाती में दर्द होना और दिल की धड़कन का सही से न चलना
- बच्चों के नाख़ून और जीभ पिली पड़ जाने से पीलिया (Jaundice) का भ्रम पैदा हो जाता हैं
- हाथ और पैर का ठंडा होना
- सिरदर्द होना
- चक्कर आना और बेहोशी का होना
- पैरों में ऐंठन होना
- सूखता चेहरा
- वजन न बढ़ना
- हमेशा बीमार नजर आना
- सांस लेने में तकलीफ होना इत्यादि.
थैलेसीमिया का उपचार कैसे किया जा सकता है?
- रक्त चढ़ाना / Blood Transfusion : थैलेसीमिया रोग के उपचार के लिए रोगी को नियमित रक्त चढाने की आवश्यकता होती हैं. कुछ रोगियों को हर 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता हैं और इसका खर्चा काफी होता हैं. सामान्यतः पीड़ित बच्चे की मृत्यु 12 से 15 वर्ष की आयु में हो जाती हैं. सही उपचार लेने पर 25 वर्ष से ज्यादा समय तक बच्चे जीवित रह सकते हैं. ये हम सब जानते हैं कि थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों में आयु के साथ-साथ रक्त की आवश्यकता भी बढ़ती रहती हैं.
- Bone Marrow Transplant : Bone Marrow Transplant और Stem Cell का उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोकने पर शोध हो रहा हैं. इनका उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोका जा सकता हैं.
- Chelation Therapy : बार-बार रक्त चढाने से और लोह तत्व की गोली लेने से रोगी के रक्त में लोह तत्व की मात्रा अधिक हो जाती हैं. Liver, Spleen, तथा ह्रदय में जरुरत से ज्यादा लोह तत्व जमा होने लगता है जिससे ये अंग सामान्य कार्य करना छोड़ देते हैं. रक्त में जमे इस अधिक लोह तत्व को निकालने के प्रक्रिया के लिए इंजेक्शन और दवा दोनों तरह के ईलाज कराए जाते हैं.
तो अब आप समझ गए होंगे कि थैलेसीमिया रोग काफी गंभीर बिमारी है जिससे रोगियों के रक्त में हिमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और कुछ-कुछ समय पर रक्त चढ़ाना पड़ता है. रोगी को एनेमिया हो जाता है और थकान भी होने लगती है.
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