सम्पूर्ण विश्व में भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है. राष्ट्रपति को भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राज्य का अध्यक्ष (Head of the State) बनाया गया है. संघ शासन होने के नाते राष्ट्रपति को केंद्र व राज्यों के प्रशासनिक संगठन में सर्वोच्च पद प्राप्त है. हर पांच वर्षों में संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है.
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पर क्या आप जानतें हैं कि राष्ट्रपति को सीधे तौर पर लोग खुद नहीं चुन सकते हैं. राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया में विधायक और सांसद वोट देते हैं नाकि आम लोग. इसमें बैलट व्यवस्था के बजाय खास तरीके से मतदान होता है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहा जाता है, जो कि एक इलेक्टोरल कॉलेज करता है. यह वह सिस्टम है जिसमें एक मतदाता एक ही मत दे सकता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों में प्राथमिकता को बताता है. उदाहरण के लिए हम कह सकते है कि अगर 4 उम्मीदवार हैं, तो उनमें अपनी प्राथमिकता के हिसाब से बताना होगा कि कौन पहली पसंद है और कौन आखिरी. अगर पहली पसंद वाले मत से विजेता तय नहीं हो पाता है, तो मतदाता की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट के रूप में ट्रांसफर कर दिया जाता है.
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राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी सबसे अजीब बात यह है कि सर्वाधिक मत हासिल करने से यहां जीत नहीं मिलती हैं. राष्ट्रपति उसे चुना जाता है, जो मतदाताओं (विधायकों और सांसदों) के मतों के कुल वेटेज के आधे से अधिक हिस्सा हासिल करे. मतलब राष्ट्रपति चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वेटेज पाना होगा. संविधान के अनुच्छेद (53) के अनुसार “संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा”. कार्यपालिका शक्ति की शक्ति को लेकर संविधान में कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी गई है. साधारण तौर से इसमें नीति का निर्धारण और निष्पादन दोनों ही आते हैं.
राष्ट्रपति के चुनाव में कौन वोट दे सकता है, आइए देखते हैं
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1. राष्ट्रपति के चुनाव को अप्रत्यक्ष निर्वाचन (Indirect Election) कहते हैं. इसके लिए एक निर्वाचक मंडल होता है जिसे इलेक्टोरल कॉलेज कहते है. संविधान के आर्टिकल 54 में इसका उल्लेख है. जनता या फिर आम लोग सीधा राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते है, बल्कि उनके द्वारा दिए गए वोट से चुने हुए लोग करते हैं. इसी को अप्रत्यक्ष निर्वाचन कहते हैं.
2. वोट देने का अधिकार आखिर किसको है : राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा तथा राज्यसभा में चुनकर आए सांसद और सभी प्रदेशों की विधानसभाओं के इलेक्टेड मेंबर वोट देते हैं. परन्तु जो नामित (nominated) मेंबर होते है जिन्हें राष्ट्रपति चुनते है वे वोट नही डालते हैं. अब आम आदमी तो भाग नहीं लेता है और वोटिंग का अधिकार राज्यों की विधान परिषदों के सदस्यों को भी नहीं हैं क्योंकि वे जनता द्वारा चुने गए सदस्य होते हैं.
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3. सिंगल ट्रांसफरेबल वोट : एक ख़ास तरीके की वोटिंग इस चुनाव में होती है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहा जाता हैं. इसमें वोटर एक ही वोट डालता है लेकिन मौजूदा उमीदवारों में से अपनी प्राथमिकता तय करलेता है और अपनी पहली, दूसरी, तीसरी आदि पसंद को बैलट पेपर पर बता देता है. यदि पहली पसंद से विजेता का फैसला नहीं हो सका, तो उसकी दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है.
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4. आनुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था: वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है. यहा तक की दो राज्यों के विधायकों के वोटों का वेटेज भी अलग होता है. जिस तरह से यह वेटेज तय किया जाता है, उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था कहते हैं.
5. एमएलए या विधायक का वोट: इस मामले में जिस राज्य का विधायक होता है, उसकी आबादी देखि जाती है और उस प्रदेश की विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है. वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की पॉपुलेशन को इलेक्टेड एमएलए की संख्या से डिवाइड किया जाता है. इस तरह जो नंबर आते है, उसे फिर से 1000 से डिवाइड किया जाता है. अब जो आकड़ा निकल कर आता है वही उस विधायक के वोट का वेटेज होता है. अगर 1000 से भाग देने पर, शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है.
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6. एमपी और सांसद का वोट: संसद के मतों के वेटेज को मापने का तरीका अलग है. सबसे पहले सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुने हुए सदस्यों के वोट का वेटेज जोड़ा जाता है. अब इस वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के चुने हुए सदस्यों की कुल संख्या से डिवाइड किया जाता है. अब जो नंबर निकल के आता है वो एक संसद का वोट होता है. अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है.
7. अब देखते है वोटों की गिनती कैसे होती है : क्या आप जानतें हैं की राष्ट्रपति चुनाव में सबसे ज्यादा वोटों को हासिल करने से जीत हासिल नहीं होती है. राष्ट्रपति वही बनता है, जिसने सांसदों और विधायकों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल किया हो. इसका मतलब यह हुआ की इस चुनाव में पहले से ही तय होता है कि जीतने वाले को कितने वोट लेन होंगें. इसके लिए इलेक्टोरल कॉलेज के हिसाब से जो सदस्यों का कुल वेटेज होता है, जीत के लिए कुछ कैल्कुलेटेड वोटों को हासिल करना होता है. जो प्रत्याशी सबसे पहले यह कोटा हासिल करलेता है, वह राष्ट्रपति चुन लिया जाता है. इसे निचे दी गई फिगर से और अच्छे से समझा जा सकता है.
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इस लेख से पता चलता है कि आम आदमी राष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं ले सकता है और साथ में इसपर भी गौर करना होगा कि इस चुनाव में वोट की काउंटिंग में कैसे प्राथमिकता को निर्धारित किया जाता है. संसद और विधायक वोट देते वक्त उमीदवारों को क्रमानुसार अपनी पसंद को बता देते हैं. फिर सभी विरियता के मत गिने जाते है. अगर पहली गिनती में कोई जीत का कोटा हासिल करलेता है तो उसकी जीत हो जाती है वरना फिर से वोटों को प्राथमिकता के आधार पर गिना जाता है. अब पहली गिनती में जिस उमीदवार को सबसे कम वोट मिलें होते है उसे बहार किया जाता है और साथ ही यह भी देखा जाता है की दुसरे किस उम्मित्वार को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं.
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फिर दूसरी प्राथमिकता के आधार पर वोट ट्रान्सफर होने के बाद सबसे कम वोट वाला उम्मीदवार को बहार करने की नौबत आने पर अगर दो उम्मीदवारों को सबसे कम वोट मिले हों, तो बाहर उसे किया जाता है, जिसके पहली प्राथमिकता वाले वोट कम हों।
अगर अंत तक किसी उम्मीदवार को तय कोटा नहीं मिलता है तो भी इस प्रक्रिया में उम्मीदवार बारी-बारी से इस सिलसिले से बहार होते रहते हैं और आखिर में जो बचता है वही राष्ट्रपति बनता है.
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