UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-VII

Jul 25, 2017, 10:36 IST

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1. हीमोग्लोबिन

2. पेस मेकर तथा त्रिवलनी एवं द्विवलनी कपाट पर टिप्पणी

3. प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन

4. वृक्क के प्रमुख कार्य

5. मनुष्य शरीर के उत्सर्जी अंग

6. समस्थिति

7. शुक्रजनन, अण्डजनन

8. यौवनारम्भ पर बालकों में होने वाले परिवर्तन

9. यौवनारम्भ पर बालिकाओं में होने वाले परिवर्तन

हीमोग्लोबिन (haemoglobin) :

हीमोग्लोबिन (haemoglobin) एक प्रकार का लौहयुक्त प्रोटीन है। इसका निर्माण लौहयुवत्त वर्णक 'हीम' (haem) तथा ग्लोबिन (globin) प्रोटीन से होता है। कुछ अपृष्टवंशी जन्तुओं के रुधिर प्लाज्या में हीमोग्लोबिन घुला रहता है;  जैसे – केचुए (earthworm) में। सभी पृष्ठवंशियों (vertebrates) में यह लाल रुधिर कणिकाओं में ही पाया जाता है।

हीमोग्लोबिन वायु की आक्सीजन से मिलकर एक अस्थायी यौगिक आक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) बनाता है। आक्सीहीमोग्लोबिन रक्त द्वारा शरीर के ऊतकों में पहुँचता है। ऊतक में आँक्सीहीमोग्लोबिन विखण्डित होकर आक्सीज़न को मुक्त कर देता है। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है अत: हीमोग्लोबिन श्वसन में साहायता करता है।

पेस मेकर तथा त्रिवलनी एवं द्विवलनी कपाट पर टिप्पणी :

दाएँ अलिन्द की पृष्ठ भिति में अग्र महाशिरा के छिद्र के समीप शिरा अलिन्द घुणडी (S.A.Node) स्थित होती है। ह्रदय में स्पन्दन का प्रारम्भ तथा नियन्त्रण शिरा अलिन्द द्वारा होता है अत: इसे गति नियामक (pace maker) भी कहते हैं। इसके क्षतिग्रस्त हो जाने पर शल्य चिकित्सा द्वारा हदय में कृत्रिम पेस मेकर लगाकर हदय गति और रुधिर प्रवाह को सामान्य बनाए रखा जाता है।

दाएँ अलिन्द निलय छिद्र पर तीन वलन वाला त्रिवलनी (tricuspid) तथा बाएँ अलिन्द निलय छिद्र पर दो वलन वाला द्विवलनी (bicuspid) कपाट पाया जाता है। ये कपाट रक्त को अलिन्द से निलय में आने देते है, किन्तु वापस नहीं जाने देते।

प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन :

हृदय शरीर में रक्त को पम्प करने का कार्यं करता है। हदय में निरन्तर संकुचन एवं शिथिलन होता रहता है। हृदय में संकुचन को प्रकुंचन (सिस्टोल) तथा शिथिलन को अनुशिथिलन (डायस्टोल) कहते है। सिस्टोल तथा डायस्टोल को सम्मलित रूप से हृदय स्पन्दन कहते हैं। मनुष्य में हृदय स्पन्दन दर 72 से 75 प्रति मिनट होती है।

अलिन्दो के शिथिल होने से रुधिर महाशिराओं से रक्त अलिन्दो में आता है, जबकि निलयों के शिथिल होने से रक्त अलिन्दों से निलयों में एकत्र हो जाता है। जब हृदय के इन भागो में प्रकुंचन होता है तो रक्त अलिन्दो से निलयों में तथा निलयों से महाधमनियों में धकेल दिया जाता है। अलिन्दो तथा निलयों से ये क्रियाएँ क्रमश: तथा एक के बाद एक होती हैं।

वृक्क के प्रमुख कार्य (Main functions of Kidney) : 

वृक्क निम्नलिखित कार्य सम्पन्न करता है-

(1) शरीर से उत्सर्जी पदार्थों का निष्कासन करते हैं।

(2) रक्त तथा ऊतक तरल के pH मान का नियमन करते हैं।

(3) शरीर में जल सन्तुलन (osmoregulation), लवण सन्तुलन को बनाए रखते है।

(4) रक्त दाब (blood pressure) को नियमित रखने में सहायक होते हैं।

(5) विषैले पदार्थों, अनावश्यक औषधियों, इनके रंग आदि के निष्कासन का कार्य करते हैं|

UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-I

UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-II

मनुष्य शरीर के उत्सर्जी अंग :

उत्सर्जन (Excretion) –

शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले हानिकारक नाइट्रोजनयुक्त अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन को उत्सर्जन कहते हैं।

मनुष्य के मुख्य उत्सर्जी अंग वृक्क (kindneys) हैं। यकृत (liver), त्वचा (skin) तथा फेफडे (lungs) उत्सर्जन में सहायता करते हैं।

वृक्क उत्सजीं पदार्था को रक्त से छानकर पृथकृ कर लेते है और इन्हें मूत्र के रूप में त्याग दिया जाता है।

त्वचा (skin) उत्सजी पदार्थ, को पसीने के रूप में मुक्त करती है।

यकृत (liver) उपापचय के फलस्वरूप बने हानिकारक पदार्थों को कम हानिकारक पदार्थों में बदलकर उत्सर्जन में सहायता करता है। मनुष्य में यकृत अमोनिया को यूरिया (urea) में बदलता है, अत: उत्सर्जन में यकृत की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।

समस्थिति (homeostasis) :

शरीर के अन्त: वातावरण को सन्तुलित बनाए रखने की क्रिया को समस्थिति (homeostasis) कहते हैं! समस्थिति (Homeostasis) शरीर के सन्तुलन की स्थायी अवस्था, जिससे बाह्य वातावरण से आन्तरिक वातावरण का सन्तुलन बना होता है, समस्थिति अथवा होम्पोस्टैसिसं (homeostasis) कहलाती है। उदाहरण के लिए - हमारा रुधिर थोड़ी - सी भी अम्लीयता सहन नहीं कर पाता हैं। वृक्क उत्सजीं पदार्थों के निष्कासन के साथ - साथ इस अम्लीयता को भी दूर करता है अर्थात् आन्तरिक वातावरण को सन्तुलित करता है। यहीं समस्थिति या होम्योस्टेसिस हैं।

फैलोपिअन नलिका (Fallopian tube) - अण्डवाहिनी का संकरा प्रारम्भिक भाग फैलोपिअन नलिका में निषेचन होता है तथा निषेचित अषडाणु फैलोपिअन नलिका द्धारा गर्भाशय में पहुँचता है।

एपिडिडाइमिस (Epididymis) - इसमें शुक्राणुओं का परिपक्वन पूर्ण होता है तथा शुक्राणु कुछ समय के लिए संगृहीत रहते हैं।

शुक्रजनन (spermatogenesis) अण्डजनन (oogenesis) :

शुक्रजनन (spermatogenesis) वृषण (testis) में होता हैं। इसके फलस्वरूप अगुणित शुक्राणुओं का निर्माण होता हैं।

अण्डजनन (oogenesis) अण्डाशय (ovary) में होता है! इसके फलस्वरूप अगुणित अंडाणु (ovum) बनते हैं!

यौवनारम्भ (Puberty) - किसी भी प्राणी के जनन करने योग्य हो जाने को यौवनारम्भ कहते हैं। इस स्थिति में शुक्राणुओं और अंणडाणुओ का निर्माण प्रारम्भ हो जाता हैं। उस बाह्य लक्षण को जिसके आधार पर पुरुष और स्त्री को पहचाना जा सकता है गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं।

यौवनारम्भ पर बालकों में होने वाले परिवर्तन :

(1) शिश्न तथा वृषणकोष के आकार में वृद्धि होने लगती हैं।

(2) कन्धे चौडे हो जाते हैं। अस्थियों तथा पेशियों मज़बूत होने लगती है।

(3) स्वर भारी हो जाता हैं। .

(4) मूँछ और दाढी निकलने लगती है, स्वभाव आक्रामक होने लगता हैं।

यौवनारम्भ पर बालिकाओं में होने वाले परिवर्तन :

(1) बाह्य जनन अंगों तथा स्तनों का विकास होने लगता हैं।

(2) आर्तव चक्र (रजोधर्म) ग्रारम्भ हो जाता हैं।

(3) नितम्ब, जाँघ तथा चेहरे पर वसा का संचय होने लगता है।

(4) आवाज में मधुरत्ता, स्वभाव में शालीनता आने लगती हैं।

UP Board Class 10 Science Notes : structure of human body, Part-III

Jagran Josh
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Education Desk

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