आईएएस प्रारंभिक परीक्षा 2014

Aug 29, 2013, 16:20 IST

जब यूपीएससी ने मेन्स यानी मुख्य परीक्षा में इंग्लिश लैंग्वेज और कॉम्प्रिहेंशन को मैंडेटरी करने का नोटिफिकेशन जारी किया था, तो सडक से लेकर संसद तक खूब हंगामा हुआ था। आयोग को फैसला वापस लेना पडा था...

यूपीएससीजब यूपीएससी ने मेन्स यानी मुख्य परीक्षा में इंग्लिश लैंग्वेज और कॉम्प्रिहेंशन को मैंडेटरी करने का नोटिफिकेशन जारी किया था, तो सडक से लेकर संसद तक खूब हंगामा हुआ था। आयोग को फैसला वापस लेना पडा था। इसके बावजूद इंग्लिश लैंग्वेज और कॉम्प्रिहेंशन को चुपके से सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट यानी सीसैट के अंतर्गत प्रिलिम्स में शामिल कर दिया गया। इतना ही नहीं, सीसैट का बाकी सिलेबस भी कुछ इस तरह से तैयार किया गया कि हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स के बीच भारी कंफ्यूजन क्रिएट हुआ। इसका असर प्रिलिम्स के रिजल्ट पर दिखा, जहां सक्सेस पाने वाले हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स की संख्या लगातार गिरती जा रही है। 2013 के प्रिलिम्स के भी करीब 16 हजार सक्सेसफुल कैंडिडेट्स में हिंदी मीडियम वालों की तादाद हजार के आसपास रह गई है। आखिर ये सिचुएशन बनी कैसे? कौन रिस्पॉन्सिबल है और क्या रीजन्स हैं। पहला तो समझ में आ गया। सीसैट के सिलेबस को लेकर कंफ्यूजन। दूसरा कारण प्रिलिम्स में इंजीनियर, डॉक्टर, मैनेजमेंट के स्पेशलाज्ड प्रोफेशनल्स की एंट्री है और तीसरी वजह प्रिलिम्स में इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंशिव स्किल्स से जुडे 20 क्वैश्चंस, जो टोटल 40 मा‌र्क्स के करीब हैं। सिविल सर्विस के टॉप लेवल के इस कॉम्पिटिशन में जहां एक-एक नंबर की मारा-मारी होती है, वहां हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स पर ये सवाल ही काफी भारी पड जाते हैं।

सिलेबस चेंज

2008 के सिविल सर्विस मेन्स एग्जाम में सक्सेस रहे 11,320 कैंडिडेट्स में से 5117 स्टूडेंट्स हिंदी मीडियम और 5822 इंग्लिश मीडियम और दूसरी लैंग्वेजेज के थे। इन आकडों के मुताबिक हिंदी और इंग्लिश के रिजल्ट में डिफरेंस इसके बाद से लगातार बढ ही रहा है। अगर सिलेबस या पैटर्न चेंज होने की बात करें, तो यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन समय-समय पर एग्जाम के पैटर्न में चेंज करता रहा है। 60 के दशक के आखिरी सालों तक सिविल सर्विसेज एग्जाम पर इंग्लिश मीडियम कैंडिडेट्स का दबदबा था। किसी दूसरी लैंग्वेज में एग्जाम नहींदिया जा सकता था। 1979 में पहली बार हिंदी की एंट्री हुई थी। उसी साल कोठारी कमेटी की रिपोर्ट की सिफारिशों के तहत यूपीएससी का रिक्रूटमेंट प्रॉसेस अडॉप्ट किया गया, जो 2010 तक चला। वैसे, 2008 में प्रिलिम्स से ऑप्शनल सब्जेक्ट को हटाने की बात हुई थी। सेकंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉ‌र्म्स कमीशन यानी 2-एआरसी की रिपोर्ट में भी सिफारिश की गई थी कि प्रिलिम्स में जनरल स्टडीज के दो कंपल्सरी पेपर्स हों। आखिरकार तीन साल बाद यूपीएससी ने 2011 में प्रिलिम्स से ऑप्शनल सब्जेक्ट को ही हटा दिया। 2011 से पहले जीएस का एक पेपर 150 मा‌र्क्स का हुआ करता था, जबकि 300 मा‌र्‌र्क्स का ऑप्शनल पेपर। सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी करने वाले कुल 23 ऑप्शनल सब्जेक्ट्स में से अपना फेवरेट या हाई स्कोरिंग सब्जेक्ट सेलेक्ट कर लेते थे और उनकी पीटी क्लियर हो जाती थी। सीसैट लागू होने पर ये फॉर्मूला फेल हो गया।

इंग्लिश पैसेज निकला खिलाडी


सीसैट में प्रिलिम्स के दोनों ही पेपर्स जीएस से मिलते-जुलते हो गए हैं। 100 क्वैश्चन के जीएस का पहला पेपर 200 मा‌र्क्स का हो गया और 80 क्वैश्चन का सीसैट पेपर भी इतने ही मा‌र्क्स का कर दिया गया। सीसैट में कॉम्प्रिहेंशन, इंटरपर्सनल स्किल्स, लॉजिस्टिक रीजनिंग, डिसीजन मेकिंग, प्रॉब्लम सॉल्विंग, बेसिक न्यूमेरेसी और इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंशन स्किल्स जैसे सब्जेक्ट्स शामिल किए गए। इसमें बाकी सवालों का हिंदी ट्रांसलेशन तो दिया जाता है, लेकिन इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंशन स्किल्स टेस्ट करने के लिए इंग्लिश का जो पैसेज दिया जाता है, उसका ट्रांसलेशन क्वैश्चन पेपर में नहीं होता, यानी हिंदी मीडियम के स्टूडेंट की अगर बेसिक इंग्लिश ठीक न हो तो वह इस पैसेज में फंसकर रह जाता है। वैसे, स्पेशलिस्ट बताते हैं कि पीटी में सक्सेसफुल कैंडिडेट्स के मा‌र्क्स फाइनल ऑर्डर ऑफ मेरिट में काउंट नहीं होते। फिर भी अगर इंग्लिश के कारण हिंदी मीडियम के स्टूडेंट स्क्रीनिंग में ही पीछे छूट जाते हैं, तो उसके लिए कौन रेस्पॉन्सिबल कहलाएगा? मेन क्वैश्चन तो यही है।

कंफ्यूजन से नहींलिया अटेंप्ट

हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स ट्रेडिशनल मेथड से सिविल सर्विसेज की तैयारी करते आ रहे हैं। ऐसे में जब 2010 में सीसैट को 2011 से लागू करने की घोषणा हुई, तो कैंडिडेट्स के मन में कई तरह के मिथ बैठ गए। एकदम से पैटर्न चेंज होने से वे परेशान थे। नए सिलेबस में क्या-क्या होगा, कैसे क्वैश्चंस होंगे, किस सब्जेक्ट पर फोकस होगा? इन जैसे तमाम क्वैश्चन्स के आंसर में वे उलझ गए। नतीजा ये हुआ कि कई सालों से तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स ने अटेंप्ट ही नहीं लिया, जबकि कुछ ने ट्रायल के तौर पर एग्जाम दिया। कई साल से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे मनोज कहते हैं, यूपीएससी एग्जाम के एप्लीकेशन फॉर्म भरने का मतलब है कि एक अटेंप्ट कम होना। ऐसे में हिंदी मीडियम के जिन स्टूडेंट्स का 2013 में लास्ट अटेंप्ट था, उन्होंने फॉर्म ही नहीं भरा। जाहिर है, जब तैयारी ही ठीक नहीं हुई, तो रिजल्ट पर असर पडना ही था और वह हुआ भी।

नहींकोई फिक्स फॉर्मेट

2008 से सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे मनोज कहते हैं, सीसैट में एप्टीट्यूड पर खासा जोर है, लेकिन इसका कोई फिक्स्ड पैटर्न नहीं डेवलप किया गया है। 2011 के प्रिलिम्स में मैथ्स और रीजनिंग से काफी क्वैश्चन आए थे, लेकिन 2012 में मैथ्स के क्वैश्चन कम हो गए, जबकि इस साल मैथ्स से फिर काफी सवाल पूछे गए। ऐसे में हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स इंग्लिश के साथ-साथ रीजनिंग और मैथ्स में भी मात खा रहे हैं।

टेंशन है ऑनलाइन फॉर्म

इस साल प्रिलिम्स में सक्सेस हासिल करने वाले शशिकांत कहते हैं कि कुछ स्टूडेंट्स तो यूपीएससी का ऑनलाइन फॉर्म भरते-भरते ही परेशान हो जाते हैं क्योंकि फॉर्म में काफी इन्फॉर्मेशन देनी होती है, जबकि हर 5 मिनट में लॉग-इन टाइम एक्सपायर हो जाता है।

सरकारी हिंदी ने रुलाया

कहने के लिए सिविल सर्विस के प्रिलिम्स के क्वैश्चन हिंदी और इंग्लिश दोनों में होते हैं। लेकिन हिंदी ट्रांसलेशन इतनी पेचीदा है कि खुद हिंदी मीडियम के स्टूडेंट उसमें उलझ कर रह जाते हैं। इस साल प्रिलिम्स क्लियर करने वाले धरमवीर पांडे कहते हैं, हिंदी मीडियम स्टूडेंट्स सिर्फ इंग्लिश ही नहीं, संस्कृतनिष्ठ हिंदी में पूछे जाने वाले क्वैश्चन से भी मार खा रहे हैं।

गाइडेंस देने वाले भी कंफ्यूज्ड

सिविल सर्विसेज की ही तैयारी में जुटे निपुन कहते हैं कि गाइड करने वाले टीचर्स में भी सीसैट को लेकर कंफ्यूज हैं। वे खुद समझ नहीं पा रहे कि एग्जाम में मेंटल एबिलिटी या रीजनिंग के कैसे क्वैश्चन पूछे जाएंगे। जीएस के पैटर्न को लेकर क्लैरिटी नहीं है। इसके अलावा, अब केस स्टडीज के जरिए पढाने का ट्रेडिशन ही नहीं रहा है, जिससे मुश्किल हो रही है। जहां तक हिंदी मीडियम स्टूडेंट्स की कम होते सक्सेस रेट की बात है, इसके लिए काफी हद तक स्टूडेंट्स ही जिम्मेदार हैं, जो तैयारी से पहले ही रिजल्ट के बारे में सोचने लगे हैं।

इसके अलावा उनका कंसनट्रेशन लेवल भी दिनों दिन कम होता जा रहा। छोटे शहरों के लडके दिल्ली जैसे मेट्रोज में आ रहे पर यहां कंफ्यूजन की गुंजाइश बहुत होने से तैयारी पर असर पड रहा है। आईएएस के इंटरव्यू के लिए कैंडिडेट्स को गाइड करने वाले प्रभाकर मणि त्रिपाठी भी इसे मानते हैं। वे कहते हैं कि एप्लीकेशन बेस्ड क्वैश्चन फॉर्मेट होने से टीचर्स को भी गाइड करने में प्रॉब्लम आ रही है। कम्युनिकेशन स्किल्स को लेकर उनमें कंफ्यूजन है। कॉम्प्रिहेंशन सॉल्व करने के लिए कैसे लॉजिकल थिंकिंग, इंफ्रेंस और एजम्पशन ड्रॉ करने की जरूरत होती है, टीचर्स उसे समझने और समझाने में परेशानी महसूस कर रहे हैं, जिसका असर तैयारी पर पड रहा।

प्रोफेशनल्स की एंट्री

एक टाइम था जब सिविल सर्विसेज में ह्यूमैनिटीज और आ‌र्ट्स वाले कैंडिडेट्स का दबदबा था, लेकिन बीते सालों से प्रोफेशनल और टेक्निकल बैकग्राउंड वालों का सिविल सर्विसेज में क्वॉलिफाई करने का सक्सेस रेट काफी देखा जा रहा है। टॉप 20 सक्सेसफुल कैंडिडेट्स में इंजीनियरिंग और मेडिकल फील्ड के कैंडिडेट्स छा रहे हैं। हिंदी मीडियम के स्टूडेंट और 2013 का प्रिलिम्स क्लियर करने वाले संदीप ठाकुर कहते हैं, साइंस बैकग्राउंड वालों को निश्चित तौर पर थोडी एज मिल रही है। मैथ्स या इंजीनियरिंग के स्टूडेंट्स एनालिटिकल या रीजनिंग के क्वैश्चन आसानी से सॉल्व कर लेते हैं। वहीं, कैंडिडेट्स को इंटरव्यू के लिए तैयार कराने वाले प्रभाकर मणि त्रिपाठी ने बताया कि हाल के सालों में पंजाब और हरियाणा से मेडिकल बैकग्राउंड वाले कैंडिडेट्स बडी संख्या में सिविल सर्विसेज में आ रहे हैं, यानी प्रोफेशनल कोर्सेज करने वालों का अट्रैक्शन इस फील्ड में आने को लेकर अब बढा है, जिससे कॉम्पिटिशन का लेवल काफी बढ गया है।

डिले इन नोटिफिकेशन

सिविल सर्विसेज के एग्जाम सालाना ऑर्गेनाइज किए जाते हैं। अमूमन एग्जाम का नोटिफिकेशन दिसंबर में निकल जाता है और अगले मई में प्रिलिम्स तथा अक्टूबर-नवंबर तक मेन्स के एग्जाम हो जाते थे। लेकिन 2013 के प्रिलिम्स एग्जाम का नोटिफिकेशन जारी करने में ही सबसे ज्यादा देर हुई। जिससे प्रिलिम्स के बाद मेन्स की तैयारी के लिए कैंडिडेट्स को ज्यादा वक्तनहीं मिल पाएगा। फ्रेशर्स अटेंप्ट फाइटर ग्रुप के सज्जन कुमार कहते हैं, 2011 में होने वाले प्रिलिम्स के 15 महीने पहले प्रिलिम्स का पैटर्न चेंज होने का एलान किया गया था, लेकिन पांच मार्च 2013 को इसका नोटिफिकेशन जारी होने के पहले तक एग्जाम पैटर्न को लेकर किसी तरह की इन्फॉर्मेशन नहीं दी गई। जबकि 1979 के बाद पहली बार यूपीएससी ने इतने बडे स्ट्रक्चरल चेंजेज किए, खासकर जनरल स्टडीज के पेपर में। जाहिर है, जब तैयारी कर रहे कैंडिडेट्स को ही कमीशन की ओर से सही इन्फॉर्मेशन नहीं दी गई, तो रिजल्ट कैसे बेहतर आ सकते थे।

रिटायर्ड आईपीएस और यूपी के एक्स डीजीपी विक्रम सिंह मानते हैं कि जब नई चीज स्टार्ट करते हैं, तो उसकी इन्फॉर्मेशन पहले देते हैं। सीसैट लागू करने से पहले यूपीएससी को कर्टेन रेजर तैयार करना चाहिए था। वेबसाइट पर गाइडलाइंस देनी चाहिए थी, जिससे कंफ्यूजन नहीं रहता।

क्या हैं सॉल्यूशंस?

एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि सिविल सर्विस के प्रिलिम्स के सिलेबस और एग्जाम पैटर्न में चेंज के बाद से फिलहाल एक ट्रांजिशन फेज चल रहा है। कॉम्पिटिशन की तैयारी करने वालों को नया फॉर्मेट समझने का पूरा समय ही नहीं मिल सका है। कोचिंग इंस्टीट्यूट्स चलाने वालों से लेकर खुद कैंडिडेट्स तक फील करते हैं कि साल दो साल के अंदर, सीसैट का कन्फ्यूजन दूर हो जाएगा। तैयारी करने का तरीका बदलेगा, नोट्स और गाइड्स पर डिपेंडेंसी घटेगी और कैंडिडेट्स अपनी थिंकिंग एबिलिटी और प्रैक्टिकल नॉलेज को डेवलप करेंगे, इंटरपर्सनल स्किल्स को समझेंगे, फिर इंग्लिश मीडियम वालों की तरह हिंदी वालों का परफॉर्मेस भी आज की तुलना में कहीं अधिक सुधर जाएगा।

यूपीएससी में चेंजेज

-1979 में स्पेशल नोटिफिकेशन जारी कर सिविल सर्विसेज के पैटर्न में चेंज का एलान किया गया था। नए पैटर्न के तहत एग्जाम के स्ट्रक्चर और स्कीम्स के बारे में जानकारी दी गई थी।

-1979 में ही जनरल कैटेगरी के कैंडिडेट को तीन अटेंप्ट देने की छूट दी गई थी और साथ ही मैक्सिमम एज लिमिट 26 से बढाकर 28 साल की गई थी।

-1990 में एक नया नोटिफिकेशन जारी कर जनरल कैंडिडेट के अटेंप्ट की संख्या 4 कर दी गई, जबकि एज लिमिट को 28 से 31 साल कर दिया गया। वैसे, ये एज लिमिट सिर्फ 1990 के लिए ही की गई थी।

-1991 में यूपीएससी ने नया नोटिफिकेशन जारी कर एज लिमिट को 31 से घटाकर फिर 28 कर दिया।

-1992 में अटेंप्ट की संख्या 5 कर दी गई और एज लिमिट 33 साल। ये नियम भी सिर्फ 1992 के लिए ही लागू किए गए थे।

-1993 में अटेंप्ट को फिर से घटाकर 4 कर दिया गया और एज लिमिट 28 साल।

-1994 में यूपीएससी एग्जाम में ओबीसी रिजर्वेशन लागू किया गया और एक ओबीसी कैंडिडेट को 7 अटेंप्ट की छूट दी गई।

-1995 में फिजिकली हैंडीकैप्ड को 3 परसेंट रिजर्वेशन दिया गया।

-1998 में जनरल कैटेगरी के लिए 4 और ओबीसी के लिए 7 अटेंप्ट रखे गए, लेकिन जनरल कैटेगरी की एज लिमिट 28 से 30 साल कर दी गई।

-2011 में ऑप्शनल पेपर की जगह प्रिलिम्स में एप्टीट्यूड को इंट्रोड्यूस किया गया।

-2012 तक 2013 में होने वाले चेंज पर कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया गया।

 

-2013 में फ्रेश अटेंप्ट या एज में रिलैक्सेशन को लेकर किसी तरह की घोषणा नहीं की गई।

प्रिलिम्स का नया पैटर्न

प्रिलिमनरी एग्जाम में क्वैश्चंस ऑब्जेक्टिव टाइप के होंगे। एक पेपर दो घंटे का होगा और कुल 400 मा‌र्क्स के दोनों पेपर होंगे।

पेपर -1 (जनरल स्टडीज) ( 200 मा‌र्क्स)

-करेंट इवेंट्स ऑफ नेशनल एंड इंटरनेशनल इंपॉटर्ेंस

-हिस्ट्री ऑफ इंडिया एंड इंडियन नेशनल मूवमेंट

-इंडियन एंड व‌र्ल्ड ज्योग्रफी, फिजिकल, सोशल, इकोनॉमिक, ज्योग्राफी ऑफ इंडिया एंड व‌र्ल्ड

-इंडियन पॉलिटी एंड गवनर्ेंस, कांस्टीट्यूशन पॉलिटिकल सिस्टम, पंचायती राज, पब्लिक पॉलिसी, राइट्स, इश्यूज

-इंक्लूजन, डेमोग्राफिक्स,सोशल सेक्टर इनिशिएटिव्स

-जनरल इश्यूज ऑन एनवायरनमेंटल इकोलॉजी, बायो डाइवर्सिटी एंड क्लाइमेट चेंज

-जनरल साइंस

पेपर - 2 (सीसैट) ( 200 मा‌र्क्स)

-कॉम्प्रिहेंशन

-इंटरपर्सनल स्किल्स, कम्युनिकेशन स्किल्स

- लॉजिकल रीजनिंग एंड एनालिटिकल एबिलिटी

- डिसीजन मेकिंग एंड प्रॉब्लम सॉल्विंग -जनरल मेंटल एबिलिटी

-बेसिक न्यूमेरेसी (नंबर्स एंड रिलेशन, ऑर्डर्स ऑफ मैग्नीट्यूड- सेकंडरी लेवल)

-इंटीप्रेटेशन (चा‌र्ट्स, ग्राफ्स, टेबल्स, डाटा सफिशिएंसी- सेकंडरी लेवल)

-इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंशन स्किल्स (सेकंडरी लेवल)

एथिक्स का सैंपल पेपर

इस साल से परीक्षा में कई मूलभूत परिवर्तन किए गए हैं। अब जनरल स्टडीज के 250 मा‌र्क्स के 5 पेपर होंगे। अभी तक 300 के दो पेपर होते थे। ऑप्शनल पेपर सिर्फ दो, और दोनों 250-250 मा‌र्क्स के होंगे। अब तक 300 मा‌र्क्स के 4 पेपर होते थे। यानी कुल मा‌र्क्स में जनरल नॉलेज का वेटेज बढाकर दोगुना और ऑप्शनल सब्जेक्ट्स का घटाकर आधा कर दिया गया है। अब जनरल स्टडीज में स्टूडेंट्स की एथिक्स, इंटीग्रिटी और एप्टीट्यूड की परख होगी। इसके सेंपल पेपर यूपीएससी ने जारी कर दिए हैं। इसमें इससे रिलेटेड सैंपल क्वैश्चंस दिए गए हैं। इसमें केस स्टडी के अलावा कई तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप यूपीएसससी की वेबसाइट ह्वश्चह्यष्.द्दश्र1.द्बठ्ठ देख सकते हैं।

एक्सपर्ट बाइट

एक्यूरेसी की है कमी

हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स की सक्सेस रेट में गिरावट की वजह सीसैट या इंग्लिश नहीं है। आज एग्जाम में सक्सेसफुल होने के लिए स्पीड के साथ-साथ एक्यूरेसी भी जरूरी है। जो कैंडिडेट्स इन प्वाइंट्स पर ध्यान नहीं दे रहे, उन्हें ही परेशानी आ रही है। इसके अलावा हिंदी मीडियम के कुछ स्टूडेंट्स खुद हिंदी की वर्तनी के इस्तेमाल और रीडिंग हैबिट डेवलप न करने के कारण पीछे छूट रहे हैं। ऐसे ही स्टूडेंट्स इंग्लिश से भी घबरा रहे हैं। मेरी इन्फॉर्मेशन के अनुसार अगले साल (2014) से जीएस में कट ऑफ मा‌र्क्स तय हो सकता है। इससे उन स्टूडेंट्स को फायदा होगा, जो एक्यूरेसी पर ध्यान देते हुए तैयारी करेंगे।

रट्टे से नहींबनेगी बात

प्रिलिमिनरी एग्जाम का पैटर्न बदल गया है। अब रट्टा मार टेक्निक से तैयारी का मतलब नहीं है, जैसा कि पीटी में ऑप्शनल सब्जेक्ट के रहने पर हुआ करता था। आज एप्टीट्यूड पर मैक्सिमम फोकस है। साथ ही प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड, डाटा इंटरप्रिटेशन, केस स्टडीज के आधार पर डिसीजन मेकिंग, एथिक्स से रिलेटेड क्वैश्चंस से कैंडिडेट को जज किया जा रहा है। ऐसे में जो कैंडिडेट इस फॉर्मेट को समझ रहे हैं, उन्हें कामयाबी मिल रही है। खासकर मेडिकल और टेक्निकल बैकग्राउंड से आने वाले स्टूडेंट्स को।

फॉर्म रिजेक्ट होने से घटी संख्या

जहां तक हिंदी मीडियम या हिंदी बेल्ट के स्टूडेंट्स के घटते सक्सेस रेट का सवाल है, तो इसके पीछे कई रीजंस हैं, जिनमें से कई बहुत इंपॉर्टेट हैं। इनमें एक कारण एप्लीकेशन फॉर्म का बडी संख्या में रिजेक्ट होना भी है। अफसोस ये है कि पहले फॉर्म रिजेक्ट होने पर यूपीएससी द्वारा इन्फॉर्मेशन दी जाती थी, जो आज नहीं दी जाती। जबकि फॉर्म रिजेक्ट होने का मतलब एक अटेंप्ट का कम होना है। जहां तक सिलेबस में चेंज की बात है, यूपीएससी ने सीसैट का फॉर्मेट जल्दबाजी में लागू कर दिया। ऑप्शनल का पेपर एकदम से खत्म करके पीटी में दोनों पेपर्स जनरल स्टडीज पैटर्न में कर दिए गए। एप्टीट्यूड और रीजनिंग पर ज्यादा फोकस कर दिया गया, जिससे कैंडिडेट्स को ठीक से तैयारी करने का मौका नहीं मिला। खासकर हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स को। इसके अलावा 2009-10 में लडाई हुई थी कि प्रिलिमनरी एग्जाम के आंसर शीट को जारी किया जाए, लेकिन यूपीएससी ने इसे माना नहीं। आंसर्स पूरे एग्जाम प्रॉसेस के खत्म होने के बाद ही जारी किए जाते रहे, जिसका कोई कारगर मतलब नहीं दिखाई दिया है। इसीलिए अब सीसैट का ऐसा फॉर्मेट बना दिया गया है कि कमीशन को आंसर ही न देना पडे। इस तरह की व्यवस्था का कोई मतलब नहीं समझ आता।

इंग्लिश को इंपॉर्टेस

सीसैट को लेकर कहीं कोई कन्फ्यूजन नहीं है, बल्कि इसमें शामिल सब्जेक्ट को लेकर चिंता होती है। सीधी बात है कि इसमें जनरल नॉलेज को अधिक इंपॉर्टेस मिलनी चाहिए थी, लेकिन इंपॉर्टेस मिल रही है इंग्लिश को। इसका नुकसान कहीं न कहीं तो स्टूडेंट्स को होगा ही। मेरे हिसाब से यह प्रॉब्लम सभी स्टूडेंट्स की है। इससे किसी का भी भला नहीं होने वाला है।

गाइडेंस की कमी

पैटर्न को लेकर भ्रम की एक बडी वजह स्टूडेंट्स को सही गाइडेंस न मिल पाना है। सिविल सर्विसेज में सीसैट लागू होने के बाद कोचिंग इंस्टीट्यूट्स ने जिस पैटर्न पर स्टूडेंट्स को पढाया, उससे एग्जाम में क्वैश्चन्स ही नहीं पूछे गए। पिछले एग्जाम में पूछे गए क्वैश्चन्स का क्राइटेरिया भी एकदम अलग था। ऐसे में सीसैट की तैयारी का अभी कोई डिसाइडेड फार्मूला कोचिंग इंस्टीट्यूट्स के पास भी नहीं है। यही कारण है कि हिंदी बेल्ट के स्टूडेंट्स के सामने सीसैट की तैयारी एक बडा क्वैश्चन बना हुआ है।

हिंदी ट्रांसलेशन है टफ

दुर्भाग्य से सीसैट का खामियाजा हिंदी भाषी स्टूडेंट्स को उठाना पड रहा है। कॉम्प्रिहेंशन के जो क्वैश्चन अंग्रेजी और हिंदी दोनों लैंग्वेज में होते हैं, उन्हें अंग्रेजी के स्टूडेंट तो झटपट हल कर देते हैं जबकि इन क्वैश्चन का हिंदी ट्रांसलेशन कठिन होता है। जिसके कारण हिंदी भाषी स्टूडेंट इसमें उलझ जाते हैं और मा‌र्क्स और टाइम दोनों वेस्ट कर देते हैं।

कोचिंग पैटर्न कमजोर

सीसैट के लिए दोनों ही जिम्मेदार हैं। चाहे वो आयोग हो या फिर कोचिंग संचालक। आयोग को सिलेबस में बदलाव लाने के पहले ये ध्यान में रखना चाहिए कि क्या यूपी के स्टूडेंट्स इतनी अंग्रेजी जानते हैं। इसके अलावा हमारे यहां का कोचिंग पैटर्न भी अलग है। नार्थ इंडिया के बजाय साउथ इंडिया का कोचिंग पैटर्न ज्यादा डेवलप और मॉडर्न है।

सीसैट को लेकर चल रहे कन्फ्यूजन के बारे में वो कहते हैं इतने सारे कोचिंग सेंटर्स की वजह से स्टूडेंट्स की दिक्कतें और भी बढ गई हैं।

गवर्नमेंट जिम्मेदार

सीसैट को लेकर हिंदी मीडियम में जो कंफ्यूजन है, उसके लिए गवर्नमेंट जिम्मेदार है। मैं अंग्रेजी का विरोध नहीं करता लेकिन हम हिंदी भाषी देश में रहते हैं। कई रीजनल लैंग्वेजेज भी बहुत बडी पॉपुलेशन बोलती है। हमें उन्हें भी ध्यान में रखना चाहिए। एग्जाम का जो भी पैटर्न हो, वह पूरी तरह संतुलित होना चाहिए।

मातृ भाषा पर गर्व होना चाहिए

ये शर्म की बात है कि इंग्लिश के जरिए टैलेंट सर्च किया जा रहा है। इंग्लिश के कारण कभी भी टैलेंटेड कैंडिडेट को नुकसान नहींहोना चाहिए। अगर लैंग्वेज ही चेक करनी है, तो किसी भी भाषा में कॉम्प्रिहेंशन दिया जा सकता है। मातृभाषा हटाकर इंग्लिश को बढावा देना समझ से परे है। हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए। इसे प्रोत्साहन देना पूरे राष्ट्र और समाज की रिस्पॉन्सिबिलिटी है। इसके लिए देश में माहौल बनाना होगा। लैंग्वेज को लेकर अफेक्शन क्रिएट करना होगा क्योंकि यूनिटी इन डाइवर्सिटी बनाए रखने के लिए लैंग्वेज का जिंदा रहना जरूरी है। सिविल सर्विस के प्रिलिम्स के क्वैश्चन पेपर में सरकारी अनुवाद की भाषा नहीं, आम बोलचाल की भाषा होनी चाहिए। इसी तरह लैंग्वेज के जरिए जो भेदभाव किया जा रहा है, वह बंद होना चाहिए। सभी को अपॉ‌र्च्युनिटिज मिलनी चाहिए, इक्वैलिटी ऑफ सक्सेस होना चाहिए। किसी भी स्टूडेंट को भाषा सीखने से कभी परहेज नहींहोता, बशर्ते उसे मौका दिया जाए।

भाषा से नहींआंक सकते टैलेंट

लैंग्वेज क्वॉलिटी सिर्फ अंग्रेजी से नहींजांची जा सकती। प्रिलिम्स में इंग्लिश के कारण टैलेंट को मौका न देना सही नहींहै। उन्हें विकास का चांस देना होगा। सीसैट के जरिए इंग्लिश के इलीट वर्ग को रिजर्वेशन देने की साजिश की जा रही है। इससे न सिर्फ हिंदी, बल्कि दूसरी लैंग्वेजेज के साथ भी भेदभाव होगा। दरअसल, इंग्लिश शासक वर्ग की लैंग्वेज है। इसलिए इलीट लोग इसे लिंक लैंग्वेज का दर्जा दे रहे हैं। लेकिन 2001 की सेंसेस रिपोर्ट देखें, तो पाएंगे कि 103 करोड की आबादी में से करीब एक परसेंट के पचासवें हिस्से की ही प्रथम लैंग्वेज इंग्लिश है, जबकि हिंदी बोलने वाले 43 परसेंट हैं। मेरी मानें तो एडमिनिस्ट्रेटिव वर्क में हिंदी को प्रमोट करना होगा। हिंदी राष्ट्रभाषा है।

अंग्रेजी में परफेक्शन जरूरी नहीं

लैंग्वेज और एप्टीट्यूड दो अलग-अलग चीजें हैं। ये एप्टीट्यूड टेस्ट है, तो इंग्लिश जरूरी नहीं है, लेकिन थॉट्स कलोनियल हैं इसलिए लैंग्वेज को लेकर डिबेट होती है। इंग्लिश कम्युनिकेशन की लैंग्वेज है। जरूरी नहीं कि आप इसमें परफेक्ट हों। ये एक स्किल है, जो आसपास के माहौल से भी सीखी जा सकती है। इंग्लिश को संविधान ने एक लिंक लैंग्वेज माना है और वह है भी।

इसलिए एक अच्छे एडमिनिस्ट्रेटर को बाइलिंग्वल होना चाहिए। सिविल सर्विस में फाइनल सेलेक्शन के बाद ऑफिसर को लैंग्वेज ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन इसके लिए कैंडीडेट का बेस होना यानी बेसिक लैंग्वेज की नॉलेज होनी जरूरी है।

लैंग्वेज को लेकर न हो विवाद

लैंग्वेज को लेकर किसी तरह की कंट्रोवर्सी नहींखडी करनी चाहिए। एक ऑफिसर को जब कैडर अलॉट होता है, तो उसे उस स्टेट की लैंग्वेज सीखनी होती है। मेरी जब असम में पोस्टिंग होनी थी, तो मुझे असमिया और बांग्ला लैंग्वेज में पास होना पडा था। इंडिपेंडेंस से पहले ब्रिटिश ऑफिसर्स को भी हिंदी सीखनी पडती थी। जैपनीज को इंग्लिश नहीं आती, फिर भी वहां एक से बढकर एक साइंटिस्ट हैं। मैंने खुद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है और सिविल सर्विसेज के सक्सेफुल कैंडिडेट्स के इंटरव्यू बोर्ड में इनवाइटी रहा हूं। जहां मैंने देखा है कि हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स भी बेहद काबिल होते हैं और कॉन्फिडेंटली आंसर भी देते हैं। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि इंग्लिश को निगलेक्ट किया जाए।

कंपल्सरी न हो

देश को कार्यकुशल और दक्ष नौकरशाह चाहिए, तो अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की जानी चाहिए। इसकी जगह रीजनल लैंग्वेजेज का विकास किया जाना चाहिए।

कनेक्टिंग लैंग्वेज है इंग्लिश

गवर्नमेंट के काम, रूल्स, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में इंग्लिश यूज होती है। एक आइएएस, आइपीएस ऑफिसर को इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल होने से लेकर नॉन हिंदी स्टेट्स में ड्यूटी करनी होती है। ऐसे में इंग्लिश ही एक कनेक्टिंग लैंग्वेज है।

इंग्लिश से क्यों डरें

ग्लोबलाइज्ड व‌र्ल्ड में इंग्लिश आना बेहद जरूरी है। चीन, कोरिया जैसे देशों में इंग्लिश पर जोर दिया जा रहा है। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि कैंडिडेट को इंग्लिश लिटरेचर की पूरी इन्फॉर्मेशन होनी चाहिए। लैंग्वेज आना इंपॉटर्ेंट है। इसी तरह कॉम्प्रिहेंशन भी। एक ऑफिसर को पोस्टिंग के दौरान साउथ से लेकर नॉर्थ ईस्ट इंडिया कहीं भी भेजा जा सकता है। यहां हिंदी नहीं, बल्कि इंग्लिश कम्युनिकेशन की लैंग्वेज होती है। सिविल सवर्ेंट को इंग्लिश नॉलेज होनी चाहिए।

अनिवार्यता गैर-जरूरी

जमाने के हिसाब से अंग्रेजी नॉलेज जरूरी है, लेकिन यूपीएससी द्वारा अंग्रेजी के क्वैश्चन्स की अनिवार्यता गैर जरूरी है। भाषा चाहें जो हो एग्जाम में सक्सेस केवल टैलेंट पर ही बेस रहती है।

नॉलेज जरूरी है

अंग्रेजी की नॉलेज जरूरी है। सर्विस के दौरान फॉरेन से भी लोग आते हैं। उनसे बात करनी होती है, लेकिन इतना नहीं कि टैलेंट को नजरअंदाज कर दिया जाए। इंग्लिश आती है, तो काफी अच्छा है।

स्टूडेंट्स व्यूज

अलग-अलग क्वैश्चन पेपर हो

बदले फॉर्मेट में जीएस के क्वैश्चंस पूछने का तरीका बदल गया है। एप्टीट्यूड पर ज्यादा जोर है। इसी तरह इंग्लिश कॉम्प्रिहेंशन पर। पीटी में हिंदी का जो ट्रांसलेशन दिया जा रहा, उसे समझने में हिंदी मीडियम के कैंडिडेट को ही काफी दिक्कत हो रही क्योंकि ट्रांसलेशन भावानुवाद नहीं, बल्कि सरकारी हिंदी में किया जा रहा। जिससे हिंदी वाले नुकसान में हैं।


ऑब्जेक्टिविटी में मात खाती हिंदी

हिंदी या इंग्लिश मीडियम के कैंडिडेट्स में नॉलेज लेवल पर कोई डिफरेंस नहीं है। हिंदी बैकग्राउंड वालों में सब्जेक्टिविटी ज्यादा होती है, जबकि टेक्निकल बैकग्राउंड वालों में ऑब्जेक्टिविटी। जहां तक डिसीजन मेकिंग की बात है, तो इसे हिंदी या इंग्लिश से जोडा नहीं जा सकता। गवर्नमेंट स्कूल में पढाई करने वालों को शुरू से ही अच्छी इंग्लिश नहीं सिखाई जाती है। एक हिंदी मीडियम स्टूडेंट अपनी मेहनत से सीखता है।


सक्सेस के लिए स्पीड जरूरी


मैंने संस्कृत से ग्रेजुएशन किया है और पीएचडी भी कर रहा हूं। इस बार (2013) का प्रिलिमनरी एग्जाम क्लियर किया है। मुझे सीसैट के फॉर्मेट से परेशानी नहीं हुई। इंग्लिश कॉम्प्रिहेंशन में दिक्कत नहीं हुई क्योंकि मेंटली इसकी तैयारी करके गया था।

सीसैट की रीजनिंग है टफ


जो कैंडिडेट ट्रेडिशनल मेथड से तैयारी कर रहे थे, उन्हें सीसैट के नए पैटर्न से थोडी परेशानी हुई है। एकदम से पैटर्न बदलने से कुछ लोगों ने इस बार अटेंप्ट नहीं लिया। इससे रिजल्ट पर असर पडा है। वैसे, अगर सीसैट के क्वैश्चंस की बात करें, तो इसमें रीजनिंग का लेवल हाई रखा गया है, जिससे मैथ्स बैकग्राउंड वालों को फायदा हुआ है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स कहीं से भी इंग्लिश वालों से कमतर हैं।


उलझा रहा इंग्लिश पैसेज

सीसैट को लेकर बहुत कंफ्यूजन है। पैसेज, इंग्लिश और रीजनिंग में हिंदी मीडियम के कैंडिडेट्स मार खा रहे हैं, जबकि मैथ्स बैकग्राउंड वालों को फायदा हो रहा। मुझे समझ में नहीं आ रहा कि जब मेन्स से इंग्लिश को हटा लिया गया, तो पीटी में उसे इतनी इंपोटर्ेंस क्यों दी जा रही है। मनोज कुमार, दिल्ली

अब सब क्लीयर है

सीसैट को लेकर शुरुआत में तो कन्फ्यूजन था, लेकिन अब सब क्लियर है। जहां तक सीसैट में इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंसिव स्किल को कंपल्सरी करने की बात है, तो यह बिल्कुल बेतुका है। क्या अभी तक आइएएस व आइपीएस काबिल नहीं होते थे? यह सब एक वर्ग विशेष को ध्यान में रख कर किया जा रहा है।


कंपल्सरी सब्जेक्ट नहीं


कुछ राज्यों में तो मैट्रिक या इंटर में अनिवार्य सब्जेक्ट के रूप में इंग्लिश नहीं है। कई स्टूडेंट ऑप्शनल तौर पर भी इसे नहीं लेते। ऐसे में किस तर्क से यह सीसैट का पैटर्न बनाया गया है। समझ नहीं आता है।

सिर्फ क्वॉलिफाइंग हो

2010 में आइपीएस और 2011 में आइएएस में मेरा सेलेक्शन हो चुका है। मुझे लगता है कि पीटी में इंग्लिश को सिर्फ क्वॉलिफाइंग ही रखना चाहिए। इससे हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स को नुकसान हो रहा है।

मेन रीजन यही है

हैदराबाद पुलिस अकादमी में मैं ट्रेनिंग ले रहा हूं। मुझे लगता है कि हिंदी मीडियम के स्टूडेंट का सिविल सर्विसेज के एग्जाम में कम सेलेक्ट होने का सबसे बडा कारण सीसैट में अंग्रेजी लागू होना है। आयोग ने 2011 की आइएएस एग्जाम में सीसैट लागू किया और पीटी से सब्जेक्ट हटा दिया।

पीटी से सब्जेक्ट का हटना

हिंदी भाषी एरिया से स्टूडेंट कम सेलेक्ट होते हैं, इसका रीजन है कि पीटी एग्जाम से सब्जेक्ट हटा लिया गया है। हिंदी मीडियम के स्टूडेंट्स की सब्जेक्ट पर पकड होने से वे अच्छे मा‌र्क्स लाकर मेन एग्जाम देते थे और सेलेक्ट हो जाते थे।

कोई प्रॉब्लम नहीं


सीसैट हिंदी एरिया के स्टूडेंट्स के लिए प्रॉब्लम बन रहा है। 80 में से अंग्रेजी के 8 क्वैश्चन ही तो होते हैं, वह भी हाईस्कूल लेवल के। इसमें फिर कैसी प्रॉब्लम?

शुरुआत स्कूली एजुकेशन से

तार्किक सोच और फेक्ट्स बेस पर डिसीजन लेने में समर्थ ऑफिसर्स की खोज के लिए यूपीएससी ने पैटर्न में चेंज किया है। मगर इसकी शुरुआत स्कूली एजुकेशन के सिलेबस से हो। तभी इसका सही रिजल्ट मिलेगा।

नेचुरल प्रॉब्लम्स पता हों


सीसैट में शामिल इंग्लिश लैंग्वेज कॉम्प्रिहेंशिव कम्पल्सरी नहीं होना चाहिए। इसके बजाय नेचुरल प्रॉब्लम्स के बारे में पता हो।

Jagran Josh
Jagran Josh

Education Desk

    Your career begins here! At Jagranjosh.com, our vision is to enable the youth to make informed life decisions, and our mission is to create credible and actionable content that answers questions or solves problems for India’s share of Next Billion Users. As India’s leading education and career guidance platform, we connect the dots for students, guiding them through every step of their journey—from excelling in school exams, board exams, and entrance tests to securing competitive jobs and building essential skills for their profession. With our deep expertise in exams and education, along with accurate information, expert insights, and interactive tools, we bridge the gap between education and opportunity, empowering students to confidently achieve their goals.

    ... Read More

    आप जागरण जोश पर सरकारी नौकरी, रिजल्ट, स्कूल, सीबीएसई और अन्य राज्य परीक्षा बोर्ड के सभी लेटेस्ट जानकारियों के लिए ऐप डाउनलोड करें।

    Trending

    Latest Education News