बहुत चाहकर भी शिक्षा में सुधार के लिए कानूनी बदलावों में नाकाम सरकार उससे जुड़े विधेयकों को संसद से पारित करा पाने की उम्मीद छोड़ती जा रही है। शायद यही वजह है कि वह कुछ विधेयकों के प्रावधानों के लिए नए उपाय तलाश रही है। अलबत्ता, यूजीसी ने कुछ मामलों में तो रेगुलेशन भी बना दिए हैं, जबकि कुछ के लिए कवायद जारी है।
सूत्रों के मुताबिक, सरकार मानकर चल रही है कि संसद के आगामी मानसून सत्र में भी उच्च शिक्षा से जुड़े विधेयकों का पारित होना आसान नहीं है। राजनीतिक सक्रियता बढ़ने के साथ अगले लोकसभा चुनाव समय से पहले होने के आसार बनते जा रहे हैं। लिहाजा, मानव संसाधन विकास मंत्रलय उच्च शिक्षा से जुड़े विधेयकों के जरूरी प्रावधानों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के रेगुलेशन (नियमन) के जरिये प्रभावी बनाने के प्रयास में है। इसी क्रम में यूजीसी भारतीय उच्च शिक्षण संस्थानों के सहयोग से विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों को भारत में आने का रास्ता पहले ही खोल चुका है। जबकि, विदेशी शिक्षण संस्थान (प्रवेश एवं संचालन) विधेयक संसद में अर्से से लंबित है। इसके साथ ही सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को अनिवार्य मान्यता के लिए भी उसने रेगुलेशन बना दिया है। इस मामले में भी विधेयक आना था।
उच्च शिक्षण संस्थानों, खासकर मेडिकल, इंजीनियरिंग और प्रबंधन के मामले में संस्थानों की ओर से अवैध रूप से की जाने वाली उगाही को रोकने के लिए भी विधेयक संसद में लंबित है। मंत्रलय के सूत्रों की मानें तो अगले महीने संभावित संसद के मानसून सत्र में विधेयक पारित होने की नाउम्मीदी के चलते ही उसके दूसरे उपायों की तलाश जारी है। उसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम-1956 में संशोधन का रास्ता अख्तियार किया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि इन कोशिशों के बावजूद संसद का आगामी सत्र सुचारू रूप से चला तो लंबित विधेयकों को पारित कराने का प्रयास सरकार नहीं छोड़ेगी, लेकिन एहतियात के तौर पर अपनी तरफ से दूसरे उपायों पर भी उसकी नजर है। केंद्र सरकार काफी पहले से शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए आतुर है, लेकिन वर्तमान जो हालात उभर कर सामने आए हैं उससे केंद्र के प्रयासों को झटका लगा है।
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