टीबी पेशेंट्स की आशा

ऑब्सट्रेटिक्स और गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा मेडिकल व‌र्ल्ड में जाना-पहचाना नाम हैं.

Nov 6, 2013, 12:46 IST

ऑब्सट्रेटिक्स और गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. शैली बत्रा मेडिकल व‌र्ल्ड में जाना-पहचाना नाम हैं। बीते दो दशक से ये दिल्ली के स्लम एरियाज में लोगों का फ्री में ऑपरेशन करने के साथ, उन्हें दवाइयां और दूसरी हेल्थ सर्विसेज भी उपलब्ध करा रही हैं। डॉ. शैली बत्रा ने टीबी उन्मूलन कार्य ऑपरेशन आशा कैंपेन के जरिए हेल्थ सेक्टर को एक नई पहचान दी है। आज ऑपरेशन आशा प्राइवेट सेक्टर में इंडिया का सबसे बडा टीबी कंट्रोल प्रोग्राम बन चुका है। इसके मॉडल देश ही नहीं, विदेश में भी अपनाए जाने लगे हैं और वे सक्सेसफुल भी रहे हैं।

सोशल चेंज का पहला स्टेप


डॉ. शैली के मुताबिक, वे गवर्नमेंट हॉस्पिटल में काम कर रही थीं, जहां बहुत से चैलेंजेज थे। स्टाफ कम था, बेसिक मेडिकल इक्विपमेंट्स नहीं थे। कई बार मोमबत्ती की रोशनी में ऑपरेशन तक करने पडते थे। डॉ. शैली ने बताया कि ये सब देखकर उन्हें काफी अफसोस हुआ और उन्होंने महसूस किया कि अंडरप्रिविलेज्ड कम्युनिटी को उनकी जरूरत है। उन्होंने साउथ दिल्ली के स्लम एरियाज में फ्री मेडिकल कंसल्टेंसी देने का फैसला लिया। इस काम में हॉस्पिटल्स, नर्सिंग होम्स, पैथोलॉजिस्ट्स, फार्मास्युटिकल कंपनियों और गवर्नमेंट ऑफिशियल्स से भी उन्होंने मदद ली।

ऑपरेशन आशा की शुरुआत

अपने काम के दौरान डॉ. शैली ने पाया कि भारत में टीबी के मरीज काफी संख्या में हैं। सरकार ने उनके लिए टीबी के अस्पताल तो खोले हैं, लेकिन सोसायटी में इस बीमारी को लेकर टैबू की वजह से मरीज टीबी की दवा लेने के लिए हेल्थ सेंटर जाने से कतराते हैं। डॉ. शैली कहती हैं, साल 2006 की बात है। भारत में एचआईवी और पोलियो को लेकर काफी एनजीओ काम कर रहे थे। उन्हें विदेश से अच्छा-खासा फंड भी मिलता था, लेकिन उन्होंने टीबी से लडने का फैसला किया क्योंकि इसकी वजह से बहुत सारे लोग भेदभाव के शिकार हो रहे थे। उन्हें नौकरी नहीं मिलती थी और कोई सुनने वाला नहीं था। इस तरह डॉ. शैली और उनके एक साथी ने मिलकर ऑपरेशन आशा की शुरुआत की।

ऐसे चलता है कैंपेन

ऑपरेशन आशा एक कम्युनिटी बेस्ड मॉडल है, जिसके तहत बाकायदा कम्युनिटी से ही लोगों को चुनकर उन्हें ट्रेन किया जाता है, उसके बाद यही हेल्थ वर्कर्स स्लम एरियाज में जाते हैं, मरीजों से बात करते हैं और उन्हें टीबी को लेकर अवेयर करते हैं। डॉ. शैली कहती हैं कि अर्बन एरियाज में उनके हेल्थ वर्कर्स दुकानों, मंदिरों, स्कूलों और फैक्ट्रियों के आसपास रहते हैं और मरीजों को दवा देते हैं। इसी तरह गांव में साइकिल और मोटरबाइक से वर्कर्स लोगों के घर जाते हैं यानी जहां-जहां ऑपरेशन आशा चल रहा है, वहां मरीजों को किसी हेल्थ सेंटर पर जाने की जरूरत नहीं पडती, बल्कि टीबी की दवा उनके घर तक पहुंच जाती है। इससे लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।

ऑपरेशन का इंपैक्ट

डॉ. शैली का कहना है कि ऑपरेशन आशा की वजह से तकरीबन 50 हजार टीबी पेशेंट पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। इस साल अब तक साढे 13 हजार के करीब पेशेंट्स का इलाज हो चुका है, जबकि साल के अंत तक इसे 15 हजार करने की कोशिश है। इसके अलावा, आज ऑपरेशन आशा दिल्ली के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी चलाया जा रहा है। यही नहीं, इंटरनेशनल लेवल पर यूगांडा और कंबोडिया में ऑपरेशन आशा मॉडल काफी सक्सेफुल रहा है। यूगांडा में अब टीबी से मौतें नहीं हो रही हैं। इसी तरह कंबोडिया में आठ परसेंट मरीजों का इलाज हो चुका है।

 

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Education Desk

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