दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी एडमिशन पर जारी गतिरोध को दूर करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 07 मई 2014 को स्कूलों को 24 बच्चों को आईएसटी (इंटर स्टेट ट्रांसफर) कोटे के तहत एडमिशन देकर दाखिला प्रक्रिया जारी ऱखने का आदेश दिया.
अपने ताजा फैसले में दिल्ली सरकार के पूर्व में दिये गए फैसले को रद्द करते हुए देश की शीर्ष अदालत ने नर्सरी एडमिशन पर जारी अनिश्चितता की स्थिति को समाप्त कर दिया.इससे पहले दिल्ली सरकार ने आईएसटी कोटे को रद्द करते हुए बच्चों की संख्या के अनुसार स्कूलों को सीटें वढ़ाने का आदेश दिया था. फैसला देते हुए न्यायमूर्ति एम वाई इकबाल ने कहा कि-“ इस आदेश का लाभ उन्हीं लोगों के मिलेगा जिन्होने दिल्ली सरकार के विरुद्ध कोर्ट की शरण ली थी. सरकार के फैसले के संदर्भ में कोर्ट न जाने वाले या सरकारी फैसले के प्रति उदासीन रवैया रखने लोगों को इस फैसले का लाभ नही मिलेगा”
कोर्ट में वादी अभिवावको का पक्ष रखने वाले अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने बताया कि –इस मामले में कोर्ट पहले भी यह स्पष्ट कर चुका है,कि इस मामाले में वादी नही रहे अभिवावकों को किसी भी प्रकार की राहत नही मिलेगी.
विदित हो कि श्री गुप्ता ने आईएसटी कोटे के संदर्भ में दिल्ली हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का रुख करना वाले अभिवावको के बच्चों की सूची एक दिन पहले ही सौंपी थी . श्री गुप्ता ने यह भी कहा कि इस फैसले से उन अभिवावको को काफी राहत मिलेगी, जो 18 दिसम्बर,2013 को नर्सरी एडमिशन की अधिसूचना जारी होने और 27 फरवरी,2014 को इसके रद्द होने के बाद से परेशान थे.फैसला देने वाली बेंच ने यह भी कहा कि एक बार एडमिशन प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद प्रशासन द्वारा उसकी प्रक्रिया में बदलाव करना उचित नही था.और इसके बाद चयन प्रक्रिया में अयोग्य पाये गए अभ्यर्थी प्रक्रिया पर सवाल नही उठा सकते.
विदित हो कि कोर्ट द्वारा ही ११ अप्रैल को अभिवावको द्वारा अपील किये जाने पर दाखिला प्रक्रिया को रोक दिया गया था.जबकि अब पहले जारी की गई अधिसूचना के आधार पर ही दाखिले होंगे.कोर्ट ने यह भी कहा है कि दाखिला पाये स्कूलों में बच्चों की पढ़ायी जारी रहेगी.इसके साथ ही उपरोक्त न्यायिक फैसले के संदर्भ में स्कूलों को अतिरिक्त सीटें भी वढ़ानी होंगी. कोर्ट ने वादी पक्ष के अधिवक्ता गुप्ता के इस तर्क से सहमति जताई कि- जिन बच्चों के माता-पिता का तबादला विभिन्न राज्यों से दिल्ली में हुआ है, उन्हे दाखिला न दिया जाना न्यायसंगत नही है.विदित हो कि प्रारंभिक शिक्षा उपलब्ध कराना राज्य और शैक्षिक संस्थाओं का संवैधानिक दायित्व है.
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