अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के वैश्विक उत्सर्जन पर 13 मार्च 2015 को आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक साल 2014 में ऊर्जा क्षेत्र से वैश्विक CO2 का उत्सर्जन नहीं बढ़ा है.
जारी किए गए प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार साल 2014 में CO2 का वैश्विक उत्सर्जन 32.3 बिलियन टन हुआ जो कि साल 2013 में भी वही था.
इसके अलावा आंकड़े बताते हैं कि पहले सोचे गए की तुलना में जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रयासों का उत्सर्जन पर अधिक स्पष्ट प्रभाव हो सकता है.
CO2 के उत्सर्जन के न बढ़ने की वजह
आईईए के मुताबिक CO2 के उत्सर्जन के न बढ़ने की वजह चीन और आर्थिक सहयोग एवं विकास ( OECD) देशों में उर्जा खपत का बदलता पैटर्न है.
चीन में साल 2014 में ऊर्जा के अक्षय स्रोतों जैसे पनबिजली, सौर और पवन से बड़े पैमाने पर बिजली का उत्पादन किया गया और कोयला कम जलाया गया.
दूसरी तरफ OECD अर्थव्यवस्थाओं में साल 2014 में ऊर्जा दक्षता और अक्षय ऊर्जा के अधिक उत्पादन के जरिए स्थायी विकास को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयास देखा गया.
CO2 का उत्सर्जन और आर्थिक विकास को अलग करना
40 वर्षों में यह पहली बार है कि CO2 का उत्सर्जन वैश्विक अर्थव्यवस्था के साल 2014 में 3 फीसदी के बढ़ोतरी के बावजूद नहीं हुआ है या फिर कम हुआ है. यानि यह पहली बार है कि CO2 का उत्सर्जन आर्थिक विकास से अलग हो गया.
साल 1973 में 29 सदस्यों वाले आईईए का वियना में गठन के बाद से सिर्फ तीन बार वैश्विक कार्बन उत्सर्जन नहीं हुआ या पिछले वर्ष की तुलना में कम हुआ है. ऐसा 1980 के दशक के शुरुआत में 1992 और 2009 में हुआ था और ये सभी तीन वर्ष वैश्विक आर्थिक मंदी से जुडे हैं.
इस विकास का महत्व
आईईए के मुख्य अर्थशास्त्री फेथ बीरोल के अनुसार ये राष्ट्रों को जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में एक साथ लाने में मदद करेगा और दिसंबर 2015 में पेरिस में वार्ताकारो के लिए वैश्विक जलवायु सौदा तैयार करने में महत्वपूर्ण गति प्रदान करेगा. (फेथ बीरोल को हाल ही में मारिया वैन डेर होइवन की जगह आईईए के अगले कार्यकारी निदेशक के तौर पर नामित किया गया था).
विकासशील और विकसित देशों को 31 मार्च 2015 तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा करनी होगी ताकि वैश्विक तापमान में पूर्व–औद्योगिक क्रांति स्तर पर बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस ( 3.6 डिग्री फारेनहाइट) तक सीमित किया जा सके.
यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से 2030 तक उत्सर्जन में 40 फीसदी की कमी को अपनाया है जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2005 के अपने स्तर से साल 2025 तक उत्सर्जन में 26 से 28 फीसदी तक की कमी करने की घोषणा की है और उत्सर्जन को 28 फीसदी तक कम करने के लिए पूरा प्रयास करने की बात कही है. विकासशील देशों के बीच चीन 2030 तक CO2 के अधितम उत्सर्जन को कम करने का लक्ष्य हासिल करने की मंशा रखता है और इसे समय से पहले हासिल करने के लिए प्रयास कर रहा है. चीन का इरादा 2030 तक प्राथमिक ऊर्जा खपत में गैर– जीवाश्म इंधन की हिस्सेदारी को बढ़ाकर करीब 20 फीसदी करना है.
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक, भारत ने 2009 में कोपेनहेगन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में आर्थिक उत्पादन की मात्रा के अनुसार कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कमी करना यानि साल 2020 तक 2005 के स्तर के मुकाबले 20 से 25 फीसदी की कमी कर अपने कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में कटौती की प्रतिज्ञा की थी.
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