पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी जानकारी के अनुसार वर्ष 2016 से 2018 के बीच तीन वर्षों में 49 हाथी रेल दुर्घटनाओं में मारे जा चुके हैं. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन्हीं तीन वर्षों के दौरान तीन बाघों की सड़क दुर्घटनाओं में तथा आठ बाघों की मौत रेल दुर्घटनाओं में हुई है.
MoEFCC द्वारा जारी जानकारी
• MOEFCC द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015-16 में 9, 2016-17 में 21 और 2017-18 में कुल 19 हाथियों की मौत रेल दुर्घटनाओं में हुई.
• दिसंबर 2018 में गुजरात के अमरेली ज़िले में एक ट्रेन दुर्घटना में तीन शेरों की मौत हो गई थी.
• इससे पहले 2016-2018 के बीच रेलवे और सड़क दुर्घटनाओं में 10 शेरों की मौत हो गई थी.
• ट्रेन की पटरियों पर मारे गए हाथियों की कुल संख्या 49 में से 37 हाथियों की मौत केवल दो राज्यों पश्चिम बंगाल और असम में हुई है.
दो राज्यों में रेल दुर्घटनाओं में मारे गये हाथी
वर्ष | पश्चिम बंगाल | असम |
2015-16 | 5 | 3 |
2016-17 | 3 | 10 |
2017-18 | 2 | 14 |
आंकड़ें एक नज़र
• 2009 से नवंबर 2017 के बीच बिजली के तारों के संपर्क में आने से होने वाली हाथियों की मौत से संबंधित आँकड़ों के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि हर साल लगभग 50 हाथी बिजली का करेंट लगने के कारण मर जाते हैं.
• ओडिशा में 90, असम में 70, पश्चिम बंगाल में 48 और छत्तीसगढ़ में 23 हाथियों की मौत करेंट लगने से हुई.
• हाथियों की अखिल भारतीय जनगणना के अनुसार, 2017 में हाथियों की कुल 27, 312 थी. हाथियों की उच्चतम आबादी वाले राज्य हैं- कर्नाटक (6,049), असम (5,719) और केरल (3,054).
सरकार द्वारा उठाये गये कदम
• पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 28 मई 2018 को गारो पर्वतों में स्थित तूरा नामक गांव से ‘गज यात्रा’ का शुभारंभ किया गया. इसका आयोजन वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) द्वारा पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर किया जा रहा है. बॉलीवुड अभिनेत्री दिया मिर्ज़ा ने भी हरी झंडी दिखाकर यात्रा की शुरुआत की.
• गज यात्रा का उद्देश्य भारत में मौजूद हाथियों की आवाजाही के लिए उन्हें सुरक्षित मार्ग उपलब्ध कराना है. गज यात्रा के तहत भारत में 100 ‘एलीफैंट कॉरिडोर’ बनाए जायेंगे. इसमें से चार मेघालय में स्थित हैं, जिसमें से एक सिजू-रेवाक कॉरिडोर है जहां रोजाना लगभग 1,000 हाथी बालपक्रम एवं नोकरेक राष्ट्रीय उद्यानों के बीच आते-जाते हैं.
• उत्तर-पूर्व भारत में यह अभियान विशेष रूप से गारो पहाड़ियों में लॉन्च किया गया. इस स्थान पर लोगों ने सामुदायिक वनों का निर्माण किया है ताकि इस क्षेत्र में मौजूद हाथियों को संरक्षित किया जा सके तथा लोगों के साथ उनका बेहतर ताल-मेल स्थापित हो सके.
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