
अंटार्कटिका का चौथा सबसे बड़ा हिमखंड (आइसबर्ग) जुलाई 2017 में टूट कर अलग हो गया. इससे अंटार्कटिका क्षेत्र के बड़े हिस्से में पर्यावरण नुकसान हो सकता है.
अंटार्कटिका के चौथे सबसे बड़े हिमखंड लार्सेन सी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अलग गया जिसका वजन खरबों टन बताया जा रहा है. यह संभवतः अब तक का सबसे बड़ा टुकड़ा है जो हिमपर्वत से अलग हुआ है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस हिमखंड का आकार लगभग 5,800 वर्ग किलोमीटर है जो भारत की राजधानी दिल्ली के आकार से चार गुना बड़ा है. यह गोवा के आकार से डेढ़ गुना बड़ा और अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर से 7 गुना बड़ा है. इस घटना का दुनिया के पर्यावरण पर असर पड़ने वाला है. वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र स्तर पर इस हिमखंड के अलग होने से तत्काल प्रभाव नहीं दिखेगा लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. यह लार्सेन सी हिमखंड के फैलाव को 12 प्रतिशत तक कम कर देगा. लार्सेन ए और लार्सेन बी हिमपर्वत से वर्ष 1995 और 2002 में ही ढहकर पहले ही खत्म हो चुके हैं.
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प्रभाव
वैज्ञानिकों ने कहा है कि हिमखंड के टूटने के लिए इस क्षेत्र में तथा वैश्विक स्तर पर हो रहे कार्बन उत्सर्जन कार्य उत्तरदायी हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं. भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि जल स्तर में अप्रत्याशित वृद्धि होती है तो इससे अंडमान और निकोबार के कुछ टापू और बंगाल की खाड़ी में सुंदरवन के कुछ हिस्से डूब सकते हैं. भारत की 7500 किलोमीटर लंबी तटीय रेखा को इसके दूरगामी प्रभावों से खतरा हो सकता है.
पृष्ठभूमि
अंटार्कटिका में पिछले कुछ वर्षों से तेजी से बर्फ पिघल रही है तथा विशाल हिमखंड टूट कर समुद्र में समा रहे हैं. इसके चलते समुद्र जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है और पूरे विश्व के लिए खतरा पैदा हो रहा है. डॉ. सीमा जावेद द्वारा लिखित तहलका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी अंटार्कटिका के लिए पाइन आइलैंड ग्लेशियर उतना ही पानी समुद्र में लेकर आता है जितनी की यूरोप की राइन नदी लेकर आती है. अंटार्कटिका प्रत्येक वर्ष समुद्र के जलस्तर में 0.3 मिलीमीटर बढ़ोतरी कर रहा है. उत्तरी ध्रुव के सबसे नजदीकी भूखंड ग्रीनलैंड का लगभग पूरा हिस्सा पिघल चुका है. पहले जो क्षेत्र सफेद बर्फ से ढका होता था वह अब हरा दिखता है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो के ओशनसैट उपग्रह के नतीजे इस तथ्य की पुष्टि करते हैं.
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