उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हवा, पानी व ज़मीन पर रहने वाले जीव-जंतुओं की सुरक्षा के लिए उन्हें इंसानों की तरह कानूनी दर्जा देते हुए राज्य के नागरिकों को उनका स्थानीय अभिभावक घोषित किया है.
हाईकोर्ट ने कहा है कि जानवरों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों में मशीन इस्तेमाल नहीं होती इसलिए उन्हें अन्य वाहनों से पहले रास्ता पाने का अधिकार होगा.
वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई. इस दौरान कोर्ट ने पर्यावरण प्रदूषण, नदियों के सिकुड़ने इत्यादि कारणों से लुप्त हो रही प्राणियों और वनस्पतियों की जैव विविधता पर भी चिंता जताई.
हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश:
- कोर्ट ने जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण को ध्यान में रखते हुए समस्त जीवों को विधिक व्यक्ति का दर्जा देते हुए उन्हें मनुष्य की तरह अधिकार, कर्तव्य और जिम्मेदारियां देते हुए लोगों को उनका संरक्षक घोषित किया है.
- कोर्ट ने अपने आदेश में नेपाल से भारत आने वाले घोड़े-खच्चरों का परीक्षण करने, सीमा पर एक पशु चिकित्सा केंद्र खोलने के निर्देश दिए हैं.
- कोर्ट ने अपने आदेश में जानवरों के नाक, मुंह में लगाम लगाने पर रोक, केवल मुलायम रस्सी से गर्दन से बांधने की अनुमति दी है.
- कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जानवरों को हर दो घंटे में पानी, चार घंटे में भोजन एक बार में 2 घंटे से ज्यादा पैदल चलाने पर रोक लगा दी गई है.
- कोर्ट ने कहा कि पशुओं को पैंदल केवल 12 डिग्री से 30 डिग्री तापमान के दौरान ही चलाया जा सकता है.
- 37 डिग्री से ज्यादा 5 डिग्री से कम तापमान के दौरान हल जोतने पर भी कोर्ट ने प्रतिबंध लगाया है.
- कोर्ट ने पशुओं को हांकने के लिए चाबुक, डंडे सहित किसी भी प्रकार की अन्य विधि पर भी रोक लगाई है.
कोर्ट ने पशुओं द्वारा भार ढोने की सीमा निर्धारित की
कोर्ट ने पशुओं द्वारा भार ढोने की सीमा निर्धारित की जिसमें छोटा बैल या भैंसा 75 किलो, मध्यम बैल या भैंसा 100 किलो, बड़ा बैल या भैंसा 125 किलो, टट्टृ 50 किलो, खच्चर 35 किलो, गधा 150 किलो, ऊंट 200 किलो हैं.
पृष्ठभूमि:
दरअसल, सीमांत चम्पावत में नेपाल सीमा से सटे बनबसा कस्बे से जनहित याचिका दायर की थी. इस जनहित याचिका मार्ग पर घोड़ा, बुग्गी, तांगा, भैंसा गाड़ियों का उल्लेख करते हुए उनके चिकित्सकीय परीक्षण, टीकाकरण के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था.
याचिका में यह भी कहा गया था कि बुग्गियों, तांगों व भैंसा गाडिय़ों से यातायात प्रभावित होता है और इन गाड़ियों के माध्यम से मानव तस्करी व ड्रग्स तस्करी की आशंका बनी रहती है.
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने सभी जीवों को विधिक अस्तित्व का दर्जा दिया है.
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