भारतीय थल सेना द्वारा हथियारों और टैंकों के गोला-बारूद का घरेलू स्तर पर उत्पादन करने के लिए 15,000 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी प्रदान की गई. अब गोला-बारूद का उत्पादन भारत में ही होगा तथा सेना की आवश्यकता अनुसार इसे उपलब्ध कराया जा सकेगा.
इस परियोजना का उद्देश्य गोला-बारूद के आयात में होने वाली लंबी देरी और इसका भंडार घटने की समस्या का हल करना है. पिछले कुछ वर्षों से जरुरी गोला-बारूद का भंडार तेजी से घट रहा था जिसके चलते सेना ने कई बार चिंता भी जाहिर की थी.
कैसे हुआ निर्णय? |
अप्रैल 2018 में थल सेना के शीर्ष कमांडरों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन में हथियारों के उत्पादन हेतु बनाई गई परियोजना पर चर्चा हुई. सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना के लिए हथियार और गोलाबारूद की खरीद प्रक्रिया में तेजी लाने पर जोर दिया तथा आत्मनिर्भर होने की राय व्यक्त की. सभी कमांडरों द्वारा राय पर सहमति व्यक्त की गई तथा इस परियोजना को अंतिम रूप दिया गया. |
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परियोजना की मुख्य विशेषताएं
• इस महत्वाकांक्षी परियोजना में 11 निजी कंपनियों को शामिल किया जाएगा. इसके क्रियान्वयन की निगरानी थल सेना और रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी करेंगे.
• इस परियोजना का त्वरित लक्ष्य गोला-बारूद का स्वदेशीकरण है. इसके तहत सभी बड़े हथियारों के लिए एक 'इंवेंट्री' बनाई जाएगी, ताकि सुरक्षा बल 30 दिनों का युद्ध लड़ सके जबकि इसका दीर्घकालीन उद्देश्य आयात पर निर्भरता घटाना है.
• परियोजना की कुल लागत 15,000 करोड़ रुपये है तथा गोला-बारूद की मात्रा के संदर्भ में अगले 10 साल का लक्ष्य निर्धारित किया है.
• आरंभिक चरण में विभिन्न रॉकेटों, हवाई रक्षा प्रणाली, तोपों, बख्तरबंद टैंकों, ग्रेनेड लॉन्चर और अन्य के लिए गोला-बारूद का उत्पादन समयसीमा के अंदर किया जाएगा.
• उत्पादन के लक्ष्यों को कार्यक्रम के क्रियान्वयन के प्रथम चरण के नतीजे के बाद संशोधित किया जाएगा.
पृष्ठभूमि |
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने जुलाई 2017 में संसद में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 152 प्रकार के गोला-बारूद में सिर्फ 61 प्रकार का भंडार ही उपलब्ध है और युद्ध की स्थिति में यह सिर्फ 10 दिन चलेगा. जबकि निर्धारित सुरक्षा प्रोटोकॉल के मुताबिक गोला-बारूद का भंडार एक महीने लंबे युद्ध के लिए पर्याप्त होना चाहिए. |
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