स्थानीय आदिवासियों से निर्मित बस्तरिया बटालियन सीआरपीएफ में शामिल

सीआरपीएफ की बस्तरिया बटालियन की पहली खेप में 189 महिला जवान शामिल हैं जबकि इस बटालियन में कुल जवानों की संख्या 534 है. इस बटालियन में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थान दिया गया है.

May 21, 2018, 09:19 IST
Bastariya battalion comprising locals ready to combat Naxals
Bastariya battalion comprising locals ready to combat Naxals

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों के रंगरूटों की बहुप्रतीक्षित बस्तरिया बटालियन 21 मई 2018 से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) की सेवा में आ गई है. केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह अंबिकापुर जिले में इसके पासिंग आउट परेड में शामिल हुए.

बस्तरिया बटालियन की विशेषता यह है कि इसमें इस क्षेत्र के स्थानीय आदिवासियों को शामिल किया गया है. यह सभी जवान यहां की स्थानीय भाषा और इलाके को भली-भांति समझते हैं, जबकि सीआरपीएफ ने ही इन जवानों को ट्रेनिंग दी है.

बस्तरिया बटालियन नाम क्यों?

सीआरपीएफ की 241वीं नंबर की इस नई बटालियन का नाम बस्तरिया इसलिए रखा गया है क्योंकि इस दल में सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बीजापुर, ओडिशा, तेलंगाना और आंध्र के सीमाई इलाकों के आदिवासियों को शामिल किया गया है. बस्तरिया शब्द को बस्तर से लिया गया है, जो कि यहां का सबसे अधिक नक्सल प्रभावित क्षेत्र है. बस्तरिया बटालियन के जवानों को 44 हफ्ते तक जंगल में युद्ध, हथियार, नक्शा पढ़ने, कानून और बिना हथियार के लड़ाई की ट्रेनिंग दी गई है.

बस्तरिया बटालियन में महिलाएं

सीआरपीएफ की बस्तरिया बटालियन की पहली खेप में 189 महिला जवान शामिल हैं जबकि इस बटालियन में कुल जवानों की संख्या 534 है. इस बटालियन में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थान दिया गया है. महिलाओं को इसमें शामिल करने का एक उद्देश्य यह भी है कि स्थानीय महिलाओं के सेना में आने से आदिवासियों के बीच एक बेहतर संदेश जाएगा और नक्सलवाद की ओर से उनका रुझान कम होगा. आदिवासियों को सरकार के साथ लाने में भी ये लड़ाके काम करेंगे, जिससे बस्तर क्षेत्र में शांति आएगी.

 

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बस्तरिया बटालियन से लाभ

•    सीआरपीएफ की इस विशेष बटालियन के जवान सुरक्षाबलों और स्थानीय लोगों के बीच कड़ी का काम कर सकेंगे.

•    सेना इस क्षेत्र में आसानी से गांव के लोगों से घुल-मिल सकते हैं तथा उनसे संपर्क स्थापित कर सकते हैं.

•    जवानों के लिए भाषा की दिक्कत खत्म होगी. बस्तरिया के जवान स्थानीय भाषा के ज्ञान के कारण बेहतर तरीके से कार्य कर पाएंगे.

•    बस्तरिया के जवानों को स्थानीय इलाकों की पूरी जानकारी होने के कारण सेना को अन्य स्रोतों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा.

•    बस्तरिया जवानों को स्थानीय परंपराओं की समझ होने के कारण पैरामिलिट्री के जवानों और स्थानीय आदिवासियों के बीच की कई तरह की गलत फहमियां दूर होंगी.

 

 

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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