COVAXIN, जोकि भारत बायोटेक द्वारा निर्मित एक COVID-19 वैक्सीन है, उसे 05 अगस्त, 2021 को हंगरी के अधिकारियों से गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) अनुपालन का प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ है.
इस खबर को भारत बायोटेक द्वारा एक ट्वीट के माध्यम से साझा किया गया था जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि, यह यूरोपीय अधिकारियों से उनकी फर्म को प्राप्त पहला EUDRAGDMP अनुपालन प्रमाणपत्र है.
COVAXIN को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी एंड न्यूट्रिशन, हंगरी से COVID-19 वैक्सीन के निर्माण के लिए GMP प्रमाणपत्र प्राप्त करने की मंजूरी मिली.
एक आधिकारिक बयान में, भारत बायोटेक ने यह कहा है कि, इस अनुमोदन के साथ, फर्म ने वैश्विक गुणवत्ता मानकों पर टीकों के नवाचार और निर्माण में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल कर लिया है और हम कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ चल रही लड़ाई में आगे बढ़ रहे हैं.
कंपनी के इस बयान में आगे यह भी कहा गया है कि, हंगरी द्वारा मान्यता विश्व स्तरीय नवाचार को चलाने के साथ-साथ टीकों के अनुसंधान और विकास में अग्रणी होने के लिए, इस फर्म की प्रतिबद्धता का समर्थन करती है.
मुख्य विशेषताएं
• गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) का प्रमाणपत्र अच्छी मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस का सर्टिफिकेट है और अब EudraGMDP पर सूचीबद्ध है. यह यूरोपियन कम्युनिटी ऑफ मैन्युफैक्चरिंग अथॉरिटीज का डाटाबेस है.
• भारत बायोटेक दुनिया भर में कई अन्य देशों में आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (EUA) के लिए दस्तावेज जमा करने का इरादा भी रखता है.
भारत बायोटेक का कोवैक्सिन: प्रमुख सूचना
इस बीच, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के अध्ययन के अनुसार, जिन लोगों को COVID-19 वैक्सीन की पूरी खुराक मिल चुकी है, ऐसे लोगों में भारत बायोटेक के COVAXIN ने डेल्टा और डेल्टा AY.1 (डेल्टा प्लस) वेरिएंट की तुलना में 'न्यूट्रलाइज़िंग एक्टिविटी' में कम कमी दिखाई है.
इसका मतलब यह है कि, जिन लोगों को COVAXIN का टीका लगाया गया है, उन्हें मौजूदा वेरिएंट्स Delta, Delta AY.1, और B.1.6.17.3 से सुरक्षा मिल जाएगी.
COVAXIN एक कोरोना वायरस वैक्सीन है जिसे भारत बायोटेक द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के सहयोग से विकसित किया गया है. यह एक निष्क्रिय वायरस आधारित टीका है.
भारत की दवा नियामक संस्था द्वारा जनवरी, 2021 में इस वैक्सीन को आपातकालीन उपयोग प्राधिकार दिया गया था. सीरम इंस्टीट्यूट और फाइजर के बाद, यह तीसरा टीका था जिसके आपातकालीन उपयोग प्राधिकार के लिए आवेदन किया गया था.
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