केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने हाल ही में स्कूलों को मान्यता देने संबंधी अपने नियमों में बदलाव किये जाने की घोषणा की है. इन नये नियमों के अनुसार सीबीएसई ने अपनी भूमिका शैक्षणिक गुणवत्ता की निगरानी तक सीमित की है जबकि आधारभूत ढांचे के ऑडिट की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी है.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 18 अक्टूबर 2018 को इस विषय पर घोषणा की कि मान्यता देने वाले सीबीएसई के उप-कानूनों (bylaws) को पूरी तरह से बदल दिया गया है. उन्होंने कहा कि यह नियम इसलिए बदले गये हैं ताकि त्वरित, पारदर्शी, परेशानी मुक्त प्रक्रियाओं और बोर्ड का आसानी से काम करना सुनिश्चित किया जा सके.
मुख्य बिंदु
• उप-नियमों में बदलाव के साथ ही केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने मान्यता के लिए 8,000 लंबित पड़े आवेदनों को भी मंजूरी दे दी है.
• यह आवेदन 2007 से लंबित पड़े थे. अब स्कूलों को मान्यता लेने के लिए सिर्फ दो दस्तावेज जमा करने होंगे और आवेदन का निपटारा उसी साल हो जाएगा, जिस साल आवेदन किया है.
• वर्तमान में आरईटी कानून के तहत मान्यता और एनओसी देने के लिए राज्य शिक्षा प्रशासन स्थानीय निकायों, राजस्व और सहकारी विभागों से मिलने वाले कई सर्टिफिकेट्स का सत्यापन करता है. आवेदन मिलने के बाद सीबीएसई उनका पुन: सत्यापन करता है और इस प्रकार से पूरी प्रक्रिया लंबी हो जाती है. अब यह प्रक्रिया राज्यों पर छोड़ दी गई है.
• सीबीएसई ने अपनी भूमिका में भी बदलाव करते हुए इसे सिर्फ शैक्षिक गुणवत्ता की निगरानी तक सीमित किया है. साथ ही आधारभूत ढांचे के ऑडिट की जिम्मेदारी राज्यों को दे दी गई है.
• सीबीएसई बोर्ड अब उन पहलुओं को नहीं देखेगा जिनका निरीक्षण राज्य कर चुका है. अब सीबीएसई द्वारा स्कूलों का निरीक्षण परिणाम आधारित और शैक्षणिक तथा गुणवत्ता उन्मुख होगा.
टिप्पणी
गौरतलब है कि देश भर में 20,783 स्कूल सीबीएसई से मान्यता प्राप्त हैं. इनमें कम से कम 1.9 करोड़ छात्र और 10 लाख से अधिक शिक्षक हैं. मान्यता देने से जुड़े उप कानून 1998 में बने थे और अंतिम बार 2012 में उनमें बदलाव किया गया था. नये बदलावों से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही है.
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