स्वतंत्रता के बाद पहली बार वर्ष 2021 की जनगणना में ओबीसी जातियों के लोगों के आंकड़े जुटाए जाएंगे. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 31 अगस्त 2018 को 2021 की जनगणना की तैयारियों की समीक्षा की. उसके बाद यह फैसला किया गया.
इसके अलावा सरकार ने जनसंख्या के आंकड़ों को पूरी तरह जारी करने का समय भी 5 साल से कम करके 3 साल कर दिया है. इसका अर्थ यह हुआ कि वर्ष 2021 की जनगणना के पूरे आंकड़े 2024 में सामने आ जाएंगे.
निर्णय के मुख्य बिंदु
• वर्ष 2021 की जनगणना के लिए नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा.
• तीन साल की समय सीमा में यह काम पूरा करने के लिए 25 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.
• इस बार घरों, गांवों और आवासिय क्षेत्रों की गणना में उनके पहचान के लिए तकनीकी नक्शे और सेटेलाईट मैपिंग को भी शामिल किया जाएगा.
• गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सेंसस कमिश्नर और ऑफिस ऑफ रजिस्ट्रार जनरल के काम की समीक्षा की. इस दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू, होम सेक्रटरी राजीव गाबा और मंत्रालय के अन्य सीनियर अधिकारी भी मौजूद थे.
पृष्ठभूमि
भारत में लंबे समय से पिछड़ी जातियों की जनगणना कराने की मांग की जा रही थी, ताकि आरक्षण और अन्य विकास योजनाओं में उनकी सही भागीदारी सुनिश्चित की जा सके. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) ने 2006 में एक सैंपल सर्वे रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बताया गया था कि देश की कुल आबादी में से 41 प्रतिशत ओबीसी की है. संगठन ने देश के 79,306 ग्रामीण घरों और 45,374 शहरी घरों का सर्वे कर यह रिपोर्ट तैयार की थी.
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