अफगानिस्तान के विदेश मंत्री सलाहुद्दीन रब्बानी द्वारा 26 दिसंबर 2017 को चीन का दौरा किया गया. इस दौरान उन्होंने घोषणा की कि अफगानिस्तान भी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में शामिल होगा.
अफगानिस्तान बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट में सक्रिय रूप से शामिल होने और चीन से सहयोग बढ़ाने हेतु तैयार है. रब्बानी ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ से मुलाकात की. गौरतलब है कि बीजिंग ने पहले ही इस परियोजना में अन्य देशों को भी साझीदार बनने हेतु प्रस्ताव दिया था.
भारत का पक्ष
• भारत द्वारा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का विरोध किया जा रहा है, क्योंकि इसके तहत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के बड़े हिस्से में निर्माण प्रस्तावित है.
• भारत का मानना है कि यह कश्मीर के बड़े हिस्से में हाईवे और अन्य निर्माण भारत के भौगोलिक क्षेत्र में दखल है.
• भारत लगभग 60 अरब डॉलर के सीपीईसी को लेकर अपनी संप्रभुता की चिंताओं के कारण इस वर्ष मई में बेल्ट ऐंड रोड फोरम (बीआरएफ) में भी शामिल नहीं हुआ था.
• चीन और पाकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान को परियोजना में शामिल करना चाहते थे.
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चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी)
यह एक वृहद वाणिज्यिक परियोजना है, जिसका उद्देश्य दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान से चीन के उत्तर-पश्चिमी स्वायत्त क्षेत्र शिंजियांग तक ग्वादर बंदरगाह, रेलवे और हाइवे के माध्यम से तेल और गैस की कम समय में वितरण करना है. यह आर्थिक गलियारा चीन-पाक संबंधों में केंद्रीय महत्व रखता है, गलियारा ग्वादर से काशगर तक लगभग 2442 किलोमीटर लंबा है. 18 दिसम्बर 2017 को चीन और पाकिस्तान ने मिलकर इस आर्थिक गलियारे की योजना को मंजूरी दी. इस योजना के तहत चीन और पाकिस्तान वर्ष 2030 तक आर्थिक साझेदार रहेंगे. भारत इस गलियारे को गैर-कानूनी मानता है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से भी होकर गुजरता है. विदित हो कि पीओके भारत का वह अहम भाग है जिस पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया है.
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