नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 पिछले कुछ समय से चर्चा में बना हुआ है. यह विशेष रूप से असम तथा बांग्लादेश की सीमा से लगे उत्तर-पूर्वी राज्यों में विवाद का विषय बन गया है. कुछ समय पूर्व जब संयुक्त संसदीय समिति ने उत्तर-पूर्वी राज्यों का दौरा किया था तब इन सभी राज्यों में कई जगह इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन यहां भी सबसे ज्यादा विरोध प्रदर्शन असम में हुए.
नागरिकता अधिनियम-1955 में संशोधन करने वाले इस नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास ज़रूरी दस्तावेज़ हों या नहीं.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के प्रमुख तथ्य
• यह संशोधन ‘अवैध प्रवासी’ की इस परिभाषा में बदलाव करते हुए कहता है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पकिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को ‘अवैध प्रवासी’ नहीं माना जाएगा.
• यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है.
• भारत के वर्तमान नागरिकता कानून के तहत नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो.
• प्रस्तावित विधेयक के माध्यम से अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष के बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें. इससे वे ‘अवैध प्रवासी’ की परिभाषा से बाहर हो जाएंगे.
| नागरिकता (संशोधन) विधेयक और असम की समस्या |
|
|
असम आंदोलन और असम समझौता
1971 में पूर्वी बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच हिंसक युद्ध आरंभ हुआ, उस दौरान लगभग 10 लाख लोगों ने असम तथा निकटवर्ती इलाकों में शरण ले ली. बांग्लादेश बनने के बाद काफी लोग तो लौट गये लेकिन लगभग एक लाख लोग असम में ही रह गये. इसके फलस्वरूप वर्ष 1978 में असम के छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (AAGSP) द्वारा व्यापक आंदोलन आरंभ किया गया जिसका उद्देश्य प्रवासियों को वापिस भेजे जाने की मांग की गई. इसी के चलते वर्ष 1983 में विधानसभा चुनावों में बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया तथा राज्य में हिंसक झडपें हुईं. 1983 की इस भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई तथा 15 अगस्त 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है.
• इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फैसला हुआ.
• वर्ष 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया.
• इस समझौते का पैरा 5.8 कहता है: 25 मार्च, 1971 या उसके बाद असम में आने वाले विदेशियों को कानून के अनुसार निष्कासित किया जाएगा.
• ऐसे विदेशियों को बाहर निकालने के लिये तात्कालिक एवं व्यावहारिक कदम उठाए जाएंगे.
| भारतीय नागरिकता कैसे मिलती है? |
भारतीय नागरिकता की समाप्ति
|
नागरिकता को लेकर असम दो धड़ों में बंटा हुआ है, इस विधेयक को लेकर ब्रह्मपुत्र घाटी तथा बराक घाटी के लोगों में मतभेद है. बराक घाटी में ज़्यादातर लोग इस विधेयक के पक्ष में हैं, जबकि ब्रह्मपुत्र घाटी में लोग इसके विरोध में हैं. बराक घाटी के हिंदुओं में एक बड़ी आबादी बांग्लादेश से आए विस्थापितों की है और इन बांग्लाभाषियों ने इस विधेयक का समर्थन किया है. जबकि ब्रह्मपुत्र घाटी के लोगों (मूल असमिया) को लगता है कि यह विधेयक क्षेत्र के जातीय अनुपात को बदलने का जरिया है और इस आधार पर ये इसके विरोध में हैं. सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर 31 दिसंबर, 2017 को असम के लिये नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न का मसौदा जारी किया गया जिसमें दो करोड़ से ज्यादा लोगों के नाम हैं.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation