उच्चतम न्यायालय ने 06 जुलाई 2018 को स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश ‘मास्टर ऑफ रोस्टर’ होता है और उसके पास उच्चतम न्यायालय की विभिन्न पीठों के पास मामलों को आवंटित करने का विशेषाधिकार एवं प्राधिकार होता है.
यह आदेश पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर आया है जिन्होंने प्रधान न्यायाधीश द्वारा शीर्ष न्यायालय में मामलों को आवंटित करने की वर्तमान रोस्टर प्रणाली को चुनौती दी थी.
मास्टर ऑफ़ रोस्टर क्या है? |
नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने अहम फैसला दिया था जिसके तहत पांच जजों की पीठ ने अपने फैसले में मुख्य न्यायाधीश को 'मास्टर ऑफ द रोस्टर' बताया था. इसके अनुसार चीफ जस्टिस अपने विवेक से यह तय कर सकता है कि कौन से केस की सुनवाई किस जज की बेंच करेगी. 'मास्टर ऑफ रोस्टर थ्योरी' के तहत चीफ जस्टिस को अधिकार है कि वह जजों के बीच केसों का आवंटन कर सकता है. |
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
• सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश 'मास्टर ऑफ रोस्टर' हैं. मुख्य न्यायाधीश की भूमिका समकक्षों के बीच प्रमुख की होती है और उन पर मामलों को आवंटित करने का विशिष्ट दायित्व होता है.
• जस्टिस ए.के. सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों के आवंटन (रोस्टर) के लिए मुख्य न्यायाधीश ही अधिकृत हैं.
• जस्टिस सीकरी ने कहा कि लोगों के मन में न्यायपालिका का क्षरण होना न्यायिक व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
• साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि कोई भी तंत्र पुख्ता नहीं होता और न्यायापालिका की कार्यप्रणाली में भी सुधार की हमेशा गुंजाइश होती है.
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायधीश होने के नाते मुख्य न्यायाधीश ‘न्यायपालिका का नेता एवं प्रवक्ता’ होता है.
पृष्ठभूमि
प्रशांत भूषण ने अपनी जनहित याचिका में आरोप लगाया था कि मास्टर ऑफ रोस्टर ‘दिशानिर्देश विहीन और बेलगाम’ विशेषाधिकार नहीं हो सकता जिसका उपयोग मुख्य न्यायाधीश मनमाने ढंग से अपने चुनिंदा न्यायाधीशों की पीठ चुनने अथवा विशेष जजों को मामले आवंटित करने के लिए करे. गौरतलब है कि जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मामलों के आवंटन पर सवाल उठाए थे.
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