निरंतर पृथ्वी का तापमान बढ़ने से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बारिश अधिक होने की संभावना व्यक्त की गयी है. यह जानकारी नासा द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में सामने आई है. अध्ययन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग से बारिश की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि होगी.
यह अध्ययन नासा की अमेरिका स्थित जेट प्रोपलशन लैबोरेटरी के वैज्ञानिक हुई सू के नेतृत्व में किया गया. शोध के अनुसार, नासा के हालिया आकलनों में ऐसा देखा गया है कि अधिकतर वैश्विक जलवायु मॉडलों में उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के ऊपर ऊंचे बादलों की संख्या में आई कमी को कम करके आंका जाता है.
वैश्विक तौर पर बारिश सिर्फ उन बादलों से नहीं जुड़ी है, जो बारिश करवाने के लिए उपलब्ध हों. ये पृथ्वी के ‘‘ऊर्जा बजट’’- पृथ्वी से निकलने वाली ऊष्मीय उर्जा की तुलना में सूर्य से आने वाली ऊर्जा- से भी जुड़ी है.
अध्ययन के मुख्य तथ्य-
- ऊंचाई पर स्थित उष्णकटिबंधीय बादल वातावरण की गर्मी को रोककर रखते हैं.
- यदि भविष्य में इन बादलों की संख्या कम होती है तो उष्णकटिबंधीय वातावरण ठंडा हो जाएगा.
- हाल के दशकों में बादलों में आए बदलावों के आधार पर निष्कर्ष निकालते हुए ऐसा लगता है कि सतह की गर्मी बढ़ने के कारण वातावरण में ऊंचे बादलों का निर्माण कम हो जाएगा.
- इससे उष्णकटिबंधीय बारिश भी बढ़ेगी, जो बादलों के कम होने से पैदा हुई ठंडक को संतुलित करने के लिए हवा को गर्म करेगी.
ऊष्णकटिबंध के बारे में-
- ऊष्णकटिबंध (Tropics) दुनिया के उस क्षेत्र को कहते हैं जो भूमध्य रेखा से अक्षांश 23°26'16" उत्तर में कर्क रेखा और अक्षांश 23°26'16" दक्षिण में मकर रेखा तक सीमित है.
- यह अक्षांश पृथ्वी के अक्षीय झुकाव (Axial tilt) से संबन्धित है.
- कर्क और मकर रेखाओं में एक सौर्य वर्ष में एक बार और इनके बीच के पूरे क्षेत्र में एक सौर्य वर्ष में दो बार सूरज ठीक सिर के ऊपर होता है.
- विश्व की आबादी का एक बड़ा भाग (लगभग ४०%) इस क्षेत्र में रहता है और ऐसा अनुमानित है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण यह आबादी और बढ़ती ही जायेगी.
- पृथ्वी का यह सर्वाधिक गर्म क्षेत्र है क्योंकि पृथ्वी के अक्षीय झुकाव के कारण सूर्य की अधिकतम ऊष्मा भूमध्य रेखा और उसके आस-पास के इलाके पर केन्द्रित होती है.
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