NGT: जोशीमठ आपदा के बाद, अब इस हिल स्टेशन के लिए ‘स्पेशल’ अध्ययन का आदेश
जोशीमठ आपदा (Joshimath disaster) के बाद, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मसूरी हिल स्टेशन का एक विशिष्ट अध्ययन करने के निर्देश जारी किये हैं. इसके लिए ट्रिब्यूनल ने नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है.

National Green Tribunal: जोशीमठ आपदा (Joshimath disaster) के बाद, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मसूरी हिल स्टेशन का एक विशिष्ट अध्ययन (Specific study) करने के निर्देश जारी किये हैं. इसके लिए ट्रिब्यूनल ने नौ सदस्यीय समिति का गठन किया है.
इस नौ सदस्यीय समिति का गठन मसूरी (Mussoorie) में पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए किया गया है. उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में संयुक्त समिति का गठन किया गया है.
ट्रिब्यूनल ने स्वत: लिया संज्ञान:
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था, जहां ट्रिब्यूनल एक मीडिया रिपोर्ट के मद्देनजर स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश जारी किया है.
ट्रिब्यूनल ने आगे कहा कि हाल ही में जोशीमठ आपदा मसूरी के लिए एक चेतावनी है जहां अनियोजित निर्माण जारी है. ट्रिब्यूनल ने कहा कि सभी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों में अध्ययन की आवश्यकता को कमतर आंके बिना यह आदेश जारी किया जा रहा है.
जस्टिस ए के गोयल की बेंच ने दिया आदेश:
जस्टिस ए के गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों की वहन क्षमता का सम्पूर्ण अध्ययन पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है. इस बेंच में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल (A Senthil Vel) तथा अफरोज अहमद (Afroz Ahmad) भी शामिल थे.
संयुक्त समिति में कौन है शामिल?
उत्तराखंड के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित इस समिति के अन्य सदस्यों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, एसीएस पर्यावरण, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, गोविंद बल्लभ पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय एंड एनवायरनमेंट, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स से शामिल होंगे.
यह समिति नागरिक समाजों के निवासियों/सदस्यों सहित हितधारकों के साथ बातचीत करने के लिए स्वतंत्र होगी. समिति मीडिया रिपोर्ट पर भी विचार कर सकती है.
इस आदेश के पीछे NGT का तर्क:
NGT बेंच ने कहा कि, अनियोजित मानव बस्तियों के निर्माण के कारण प्राकृतिक पारिस्थितिकी और जलभृतों का पुनर्भरण प्रभावित होता है और कंक्रीटीकरण से भूस्खलन का खतरा होता है. साथ ही यह भी कहा गया कि प्रस्तावित सुरंग मसूरी के लिए खतरनाक है.
NGT ने कहा कि देहरादून से मसूरी तक रोपवे भी प्रस्तावित है. बेंच ने आगे कहा कि रोपवे और सुरंग ने जोशीमठ को क्षतिग्रस्त कर दिया है. ट्रैफिक की भीड़ पहाड़ी सड़कों पर बोझ बनती जा रही है और अत्यधिक निर्माण कार्य मसूरी की क्षमता से बाहर हैं.
30 अप्रैल तक रिपोर्ट पेश करने का आदेश:
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने समिति को दो महीने के भीतर अपना अध्ययन पूरा करने और 30 अप्रैल तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया है. बेंच के आदेशानुसार, समिति किसी अन्य विशेषज्ञ या संस्थान से सहायता मांग सकती है. एनजीटी ने मामले में आगे की कार्यवाही के लिए 16 मई की तारीख निर्धारित की है.
मसूरी की वहन क्षमता का अध्ययन:
मसूरी की वहन क्षमता का अध्ययन 2001 में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (LBSNAA) द्वारा किया गया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि आगे कोई निर्माण व्यवहार्य नहीं था.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार, मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (MDDA) कथित तौर पर उक्त अध्ययन को मानने और निवारक और उपचारात्मक उपाय करने में विफल रहा.
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