विश्वभर में पुरजोर विरोध चलने के बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा यरूशलम को इज़रायल की राजधानी के तौर पर मान्यता प्रदान की गयी. व्हाइट हाउस ने 6 दिसंबर 2017 को इस घोषणा की पुष्टि की. इस घोषणा के परिणामस्वरुप अमेरिका द्वारा दूतावास को तेल अवीव से बदलकर यरुशलम किया जायेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति की इस घोषणा से विभिन्न देशों की अलग-अलग प्रतिक्रिया सामने आई हैं. ट्रंप के इस फैसले से पहले ही अरब देश इसके विरोध में उतर चुके हैं. अरब देशों के अतिरिक्त तुर्की ने अमेरिका को सख्त चेतावनी भी दी है. अमेरिका ने अपने नागरिकों से इज़राइल की यात्रा पर न जाने की चेतावनी जारी की है.
विपक्ष में देश
डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा की गयी इस घोषणा की अरब देशों में पुरजोर निंदा हो रही है. उनके इस निर्णय का अरब लीग के 57 देशों ने विरोध किया है. अरब लीग के देशों ने कहा है कि वे 12 दिसंबर को इस संबंध में बैठक करेंगे.
ट्रम्प के इस फैसले के विरोध में सऊदी अरब, सीरिया, जॉर्डन, तुर्की, मिस्र, ईरान सहित 10 से अधिक खाड़ी देशों ने अमेरिका को चेतावनी दी है. जबकि फिलिस्तीन ने दुनिया के सभी देशों से मदद की अपील की है.
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यरुशलम के बारे में
यरुशलम यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की पवित्र नगरी है. यरुशलम यहूदियों का परमपवित्र सुलेमानी मन्दिर हुआ करता था, जिसे रोमनों ने नष्ट कर दिया था. यह स्थान ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है तथा यरुशलम हज़रत मुहम्मद से भी जुड़ा रहा है. इस शहर में 158 गिरिजाघर तथा 73 मस्जिदें स्थित हैं.
यरूशलम को लेकर इज़रायल और फलस्तीेन दोनों ही काफी संवेदनशील रहे हैं. दरअसल यरूशलम ईसाइयों, मुस्लिमों और यहूदियों के लिए बेहद पवित्र जगह है. यही वजह है कि चारों तरफ दीवारों से घिरे इस शहर को जिन्हें दुनिया के पवित्रतम स्थलों में शुमार किया जाता है. वैसे भी यह दुनिया के सबसे पुराने शहरों में एक है. हिब्रू में इसे येरुशलाइम और अरबी में अल-कुद्स के नाम से जाना जाता है.
इज़रायल यरुशलम को अपनी राजधानी बताता है, वहीं दूसरी तरफ फलस्तीेन भी इजरायल को अपने भविष्य के राष्ट्र की राजधानी बताता है. संयुक्त राष्ट्र और विश्व के अधिकतर देश यरुशलम पर इज़रायल के दावे को मान्यता नहीं देते.
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