लक्जमबर्ग में यूरोपियन कोर्ट ऑफ जस्टिस (ईसीजे), यूरोपीय संघ का सर्वोच्च न्यायालय, ने हाल ही में एक आदेश पारित किया है जिसमें कंपनियों को अपने कर्मचारियों को दिखाई देने वाले धार्मिक प्रतीकों , इसमें काम के दौरान पहने जाने वाला इस्लामिक गुलूबन्द/ सिर पर बांधने वाला रुमाल भी शामिल है, को पहनने पर प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी गई है.
हालांकि, अदालत ने, यह भी कहा है कि यदि कंपनी में कर्मचारियों द्वारा धार्मिक प्रतीकों के पहनने के बारे में कोई नीति नहीं है तो ग्राहक/ उपभोक्ता कामगारों/ कर्मचारियों से उनके गुलूबंद को हटाने की मांग नहीं कर सकता/सकते. यह नियम फ्रांस और बेल्जियम की दो महिलाओं द्वारा कार्यस्थल पर अपने गुलूबंद को हटाने से इनकार करने के कारण नौकरी से बर्खास्त किए जाने के मामले में संयुक्त न्याया के तौर पर जारी किया गया था.
मुख्य बातें:
• अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी प्रकार के राजनैतिक, दार्शनिक या धार्मिक प्रतीक के दृश्यमान स्थिति में पहनने पर रोक लगाता है, प्रत्यक्ष भेदभाव की वजह नहीं हो सकता.
• इसमें आगे कहा गया है कि, तटस्थ छवि प्रस्तुत करने की कंपनी की इच्छा वैध थी.
• पहला मामला, जो समायरा अब्बिटा का था, इसे बेल्जियम की अदालत ने ईसीजे में भेजा था. अब्बिटा को जून 2006 में सर से गुलूबंद हटाने से मना करने के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था और उनकी कंपनी ने कहा था कि उन्होंने धार्मिक प्रतीकों को पहनने के प्रतिबंध संबंधी अलिखित नियम को तोड़ा है.
• दूसरा मामला डिजाइन इंजीनियर– अस्मा बोगनाउई का था. अस्मा आईटी कंसल्टेंसी कंपनी में काम करती थीं लेकिन एक ग्राहक द्वारा काउंसिलिंग के दौरान अपने परिसर में सर पर पहने गए गुलूबंद के कारण उनके कर्मचारी को हुई शर्मिंदगी की शिकायत के बाद उनकी कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया था.
इस फैसले से कई धार्मिक समूहों को झटका लगा है. यह यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (ईसीएचआर के उस फैसले का विरोध करता है जिसमें कार्यस्थल पर ईसाई धर्म प्रतीक क्रॉस को पहनने की इजाजत देता है.
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