प्रसिद्ध बिरहा गायक पद्मश्री हीरालाल यादव का निधन

May 13, 2019, 13:09 IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिरहा गायक हीरालाल यादव के निधन पर शोक प्रकट किया तथा ट्वीट कर लिखा कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वाराणसी के बिरहा गायक हीरालाल यादव जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ.

Famous Birha singer Padmashri Hiralal Yadav passes away
Famous Birha singer Padmashri Hiralal Yadav passes away

भारत के प्रसिद्ध बिरहा गायक हीरालाल यादव का 12 मई 2019 को वाराणसी में निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे तथा पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहे थे. वे पिछले कुछ समय से बीमार थे, और उनका इलाज चल रहा था. हीरालाल के परिवार में उनकी पत्नी, छह बेटे तथा तीन बेटियां हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिरहा गायक हीरालाल यादव के निधन पर शोक प्रकट किया तथा ट्वीट कर लिखा कि पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित वाराणसी के बिरहा गायक हीरालाल यादव जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ. उनका निधन लोकगायकी के क्षेत्र के लिए अपूरणीय क्षति है. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके प्रशंसकों और परिवार के साथ हैं.

गौरतलब है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 16 मार्च 2019 को हीरालाल को पद्मश्री से सम्मानित किया था. अस्वस्थता के बाद भी वह सम्मान ग्रहण करने राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे. पिछले 70 वर्षों में पहली बार बिरहा को सम्मान मिला था.

प्रमुख बिंदु

•    हीरालाल का जन्म वर्ष 1936 में चेतगंज स्थित सरायगोवर्धन में हुआ था. उन्होंने गरीबी में अपना बचपन गुजारा था.
•    वे आम तौर पर शौकिया ही गाते थे लेकिन अपनी सशक्त आवाज़ के चलते उन्हें एक अलग जगह मिली तथा राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने में कामयाब हुए. आगे चलकर वे बिरहा सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हुए.
•    वे अपने साथी बुल्लू के साथ हीरा-बुल्लू जोड़ी से लगभग सात दशकों तक गांव-गांव जाकर लोगों को बिरहा से परिचित कराते रहे.
•    उन्होंने वर्ष 1962 से आकाशवाणी व दूरदर्शन से बिरहा की प्रस्तुति देना आरंभ की जिसे देश भर में लोगों ने बेहद सराहा था.
•    हीरालाल को वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया.

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बिरहा गायन के बारे में

•    पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बिहार के भोजपुरीभाषी क्षेत्र में बिरहा लोकगायन की एक प्रचलित विधा है.
•    बिरहा की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी आरंभ में मानी जाती है. विशेषकर जब ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन कर महानगरों में मजदूरी करने की प्रवृत्ति बढ़ गयी थी. ऐसे श्रमिकों को रोजी-रोटी के लिए लम्बी अवधि तक अपने घर-परिवार से दूर रहना पड़ता था.
•    दिन भर के कठोर श्रम के बाद रात्रि में अपने विरह व्यथा को मिटाने के लिए छोटे-छोटे समूह में ये लोग बिरहा का ऊँचे स्वरों में गायन किया करते थे.
•    बिरहा गायन के दो प्रकार सुनने को मिलते हैं. पहले प्रकार को खड़ी बिरहा कहा जाता है और दूसरा रूप है मंचीय बिरहा.
•    खड़ी बिरहा में वाद्यों की संगति नहीं होती जबकि मंचीय बिरहा में वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया जाता है.
•    उत्तर प्रदेश और बिहार में पर्वों-त्योहारों अथवा मांगलिक अवसरों पर 'बिरहा' गायन की परम्परा रही है. किसी विशेष पर्व पर मन्दिर के परिसरों में 'बिरहा दंगल' का प्रचलन भी रहा है.

Gorky Bakshi is a content writer with 9 years of experience in education in digital and print media. He is a post-graduate in Mass Communication
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