फिनलैंड और स्वीडन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सदस्य देश बनने के और ज्यादा करीब पहुंच गए हैं. यूक्रेन पर जारी रूसी हमले के बीच फिनलैंड की सरकार ने 15 मई को नाटो का सदस्य बनने की अपनी चाहत का खुलेआम घोषणा कर दिया.
स्वीडन की सत्ताधारी पार्टी ने भी इसके कुछ घंटों बाद नाटो सदस्यता के लिए एक योजना का समर्थन कर दिया. रूस के लिए इस बीच एक और चुनौती स्वीडन और फिनलैंड बढ़ाने वाले हैं. दोनों देशों ने रूस के साथ सीमा साझा करने वाले नाटो की सदस्यता लेने का घोषणा कर दिया है.
अब स्वीडन और फिनलैंड की संसद इस संबंध में प्रस्ताव पारित करेगी तथा फिर नाटो संगठन के समक्ष आवेदन पेश किया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह पूरी प्रक्रिया दो सप्ताह में पूरी हो सकती है. रूस ने इस बीच स्वीडन और फिनलैंड के प्लान को लेकर धमकी दी है कि यह गलती होगी तथा उसके रिजल्ट भी भुगतने पड़ेंगे.
तुर्की के राष्ट्रपति ने क्या कहा?
तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा कि स्वीडन या फिनलैंड, दोनों में किसी देश का आतंकी संगठनों के विरुद्ध साफ स्टैंड नहीं है. उन्होंने स्वीडन को ‘आतंकियों का पालन गृह’ करार दिया.
सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम
बता दें नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है. इसका तात्पर्य ‘एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है.
नाटो क्या है?
यह सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है. इसमें वर्तमान में 30 सदस्य देश शामिल हैं. नाटो का मूल एवं स्थायी उद्देश्य राजनीतिक और सैन्य साधनों द्वारा अपने सभी सदस्यों की स्वतंत्रता तथा सुरक्षा की गारंटी प्रदान करना है. लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा नाटो देता है. नाटो किसी भी विवादों को शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है.
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