केरल की कुरान सुन्नत सोसाइटी की महासचिव जमीदा ने 26 जनवरी 2018 को जुमा की नमाज अदा कराकर इतिहास रचा. भारत में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी महिला इमाम ने जुमे की नमाज अदा कराई हो.
जमीदा ने जुमा (शुक्रवार) को होने वाली नमाज में इमाम की भूमिका में महिलाओं सहित लगभग 80 लोगों को नमाज पढ़ाई. जमीदा ने कहा कि पवित्र कुरान मर्द और औरत में कोई भेदभाव नहीं करता है और इस्लाम में महिलाओं के इमाम बनने पर कोई रोक नहीं है.
जमीदा के इस कार्यफलस्वरूप वे उलमा के निशाने पर आ गई हैं. उलमा का कहना है कि इस्लाम में औरत मर्दों की इमाम नहीं हो सकती, इसलिए मर्दों का किसी औरत के पीछे नमाज पढऩा जायज नहीं है. इमाम जमीदा ने मीडिया को दी जानकारी में कहा है कि पवित्र कुरान महिला व पुरुष में भेदभाव नहीं करता है और न ही इस्लाम महिलाओं को इमाम बनने से रोकता है.
संबंधित विवाद
महिलाओं को समानता के अधिकार से रोकने वाले एक ऐसे ही निर्णय में सऊदी अरब में महिलाओं पर मर्दों का फुटबॉल मैच देखना हराम करार दिया गया. इस फतवे पर देवबंदी के उलमा ने भी अपनी सहमति जताई थी.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने महिलाओं को स्टेडियम में जाकर मैच देखने की इजाजत दी थी. इसके बाद से बड़ी तादाद में महिलाएं मैच देखने स्टेडियम पहुंची. इसके मद्देनजर सऊदी अरब सरकार में धार्मिक मामलों के पूर्व अध्यक्ष शेख साद अल हजीरी ने एक फतवे में कहा था कि फुटबाल मैच में औरत की नजर फुटबाल खिलाडिय़ों के घुटनों और जांघों पर पड़ती है, जिसे देखना गुनाह है. इस फतवे के बाद इस्लामी जगत तथा सोशल मीडिया में बहस छिड़ गई है.
उलमा काउंसिल
उलमा इस्लाम धर्म के ज्ञाता माने जाते हैं. इस परिपाटी के संरक्षक होने के नाते वे धार्मिक, कानूनी और अध्यापन सम्बन्धी जिम्मेदारी निभाते हैं. उलमा से यह अपेक्षा की जाती है कि वे शासन में शरिया का पालन करवायेंगे. प्राय: उलमा को विभिन्न देशों में काजी, न्यायाधीश, अध्यापक आदि के पदों पर नियुक्त किया जाता है. उलमा काउंसिल विभिन्न देशों में इस्लाम की रीतियों के संरक्षण का कार्य करती है. यह संस्था समय-समय पर इस्लाम के कायदों के यथावत पालन न हो पाने की स्थिति में जानकारी प्रदान करती रहती है.
यह भी पढ़ें: वर्ष 2018 के पदम् पुरस्कारों की विस्तृत सूची
Comments
All Comments (0)
Join the conversation