स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा हाल ही में वैश्विक व्यस्क तंबाकू सर्वेक्षण (Global Adult Tobacco Survey - GATS) रिपोर्ट जारी की गई. यह इस सर्वेक्षण का दूसरा चरण था जिसे GATS-2 नाम से भी जाना जाता है.
सर्वेक्षण के दूसरे चरण की रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश और झारखंड की 30 से 40 प्रतिशत आबादी विभिन्न रूपों में तंबाकू का सेवन करती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में तंबाकू के उपभोग में लगातार कमी आ रही है लेकिन उत्तर-पूर्व और हिंदी भाषी राज्यों में तंबाकू उपभोग अब भी खतरनाक स्तर पर बना हुआ है.
GATS-2 रिपोर्ट के मुख्य तथ्य |
वर्ष 2009-10 से 2016-17 के दौरान भारतीय वयस्कों में तंबाकू की लत 34.6 फीसदी से घटकर 28.6 प्रतिशत हो गई है. उत्तर-पूर्व के राज्यों में 50 फीसदी और हिंदी भाषी राज्यों में 40 फीसदी वयस्क तंबाकू के आदी हैं. रिपोर्ट के अनुसार गोवा के सबसे कम 9.7 फीसदी वयस्क तंबाकू का उपभोग करते हैं, जबकि त्रिपुरा के सबसे अधिक 64.5 फीसदी वयस्क इसके आदी हैं। सबसे अधिक 11.2 फीसदी लोग खैनी के रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं. वहीं, 7.7 फीसदी लोग बीड़ी और 6.8 फीसदी वयस्क गुटखे के रूप में तंबाकू का उपभोग करते हैं. |
रिपोर्ट के अनुसार भारत में 26.7 करोड़ वयस्क तंबाकू का सेवन करते हैं, इनमें से भी दो तिहाई हिंदी भाषी राज्यों में रहते हैं. जनसंख्या के मामले में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तंबाकू का सेवन करने वाले वयस्कों की संख्या 30 से 40 प्रतिशत के बीच है. यानी अकेले यूपी में छह से आठ करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं. इसी श्रेणी में तीन और हिंदी भाषी राज्य झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ शामिल हैं. इसी तरह, 10 करोड़ की आबादी वाले बिहार के 20 से 30 फीसदी वयस्क तंबाकू का सेवन करती हैं. इस श्रेणी में राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड भी शामिल हैं. |
वह राज्य जिनमें सबसे कम तम्बाकू उपभोग होता है उनमें गोवा, केरल, पंजाब, हिमाचल और तेलंगाना शीर्ष पर हैं. इसके बाद वह राज्य जिनमें तंबाकू उपभोग सबसे अधिक होता है उनमें त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, ओडिशा, असम शामिल हैं.
टिप्पणी
भारत में सिगरेट-बीड़ी के पैकेट पर बड़ी सचित्र चेतावनी, गुटखे पर प्रतिबंध और बीड़ी समेत सभी तंबाकू उत्पादों को जीएसटी की सबसे ऊंची दर में रखना काफी कारगर साबित हो रहा है. हिंदी भाषी राज्यों में खैनी के प्रचलन के चलते अब भी यहां तंबाकू उपभोग खतरनाक स्तर पर बना हुआ. सरकार को इस पर खास ध्यान देने की जरूरत है.
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