केंद्र सरकार ने देश के 16,795 जजों को यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर जारी किये हैं ताकि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सके. यह नंबर आधार नंबर की तर्ज पर ही विकसित किये गये हैं.
इस नंबर द्वारा जजों द्वारा दिए गये सभी निर्णयों तथा उनके द्वारा किस केस पर क्या निर्णय दिया गया सभी कुछ दर्ज रहेगा. इस नंबर को सभी राज्यों के जिला और अधीनस्थ न्यायालयों के जजों को जारी किया गया. इस नंबर से उच्च न्यायालय तथा सुप्रीम कोर्ट के जजों को विशेष राहत दी गयी है.
मुख्य बिंदु
• इस प्रक्रिया के लिए एक नेशनल जुडिश्यल डाटा ग्रिड बनाया गया है जहां न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित सभी रिकॉर्ड रखे जायेंगे.
• जजों ने अपने करियर में क्या अहम् टिप्पणी दी, कितने केसों पर फैसले दिए तथा उस जज के पास कितने केस विचाराधीन हैं आदि जानकारी नेशनल जुडिश्यल डाटा ग्रिड (डाटा बैंक) में रखी जायेंगी.
• इन सभी जजों को डिजिटल सिग्नेचर भी मुहैया कराये गये हैं ताकि वे ऑनलाइन ऑर्डर साइन कर सकें.
• न्यायिक अधिकारियों को लैपटॉप, प्रिंटर तथा इन्टरनेट सुविधा दी जा रही है ताकि वे अपने विचाराधीन मामलों को समय से निपटा सकें.
• अदालतों को ई-कोर्ट परियोजना के कारण डिजिटल बनाया जा रहा है.
• राष्ट्रीय सूचना केंद्र (एनआईसी) द्वारा अत्याधुनिक सॉफ्टवेयर केस इनफार्मेशन सिस्टम (सीआईएस) 2.0 को ई-कोर्ट परियोजना के लिए उपयोग किया जा रहा है.
ई-कोर्ट परियोजना का पहला चरण मार्च 2015 में पूरा कर लिया गया था जबकि इसके दूसरे चरण में 2482 जजों को यह नंबर दिए गये. सभी जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में विडियो-कांफ्रेंसिंग एवं इन्टरनेट सुविधा दी जा रही है.
गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में भी न्यायिक प्रक्रिया में हो रही देरी के चलते इस प्रकार के नंबर जारी किये गये थे. इससे वहां विचाराधीन पड़े मामलों की सुनवाई में 30 प्रतिशत की तेजी आई. साथ ही, इससे सभी जजों की जानकारियां सार्वजनिक होंगी तथा एक क्लिक पर उनके द्वारा सुनाये गये सभी फैसलों तथा विचाराधीन मामलों की जानकारी देखी जा सकेगी.
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