केंद्र सरकार ने एनडीएफबी और एबीएसयू के साथ बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए

Jan 27, 2020, 17:30 IST

केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने हाल ही में कहा कि यह एक ऐतिहासिक समझौता है. उन्होंने यह दावा भी किया कि इससे बोडो मुद्दे का व्यापक हल मिल सकेगा.

Bodo agreement
Bodo agreement

केंद्र सरकार ने 27 जनवरी 2020 को असम के खतरनाक उग्रवादी समूहों में से एक नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. लंबे समय से अलग बोडो राज्य की मांग करते हुए आंदोलन चलाने वाले ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किये.

इसी के साथ इन संगठनों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने की बात की और बोडोलैंड की मांग नहीं करने का दावा किया है. गृहमंत्री अमित शाह ने बोडो समुदाय के साथ त्रिपक्षीय समझौते को पूर्वोत्तर के विकास और स्थिरता के लिए ऐतिहासिक बताया.

त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर

त्रिपक्षीय समझौते पर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, एनडीएफबी के चार गुटों के नेतृत्व, एबीएसयू, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग तथा असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा ने गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में हस्ताक्षर किये.

बोडो समझौते की मुख्य विशेषताएं

• केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक समझौता है. उन्होंने यह दावा भी किया कि इससे बोडो मुद्दे का व्यापक हल मिल सकेगा.

• गृहमंत्री ने बताया कि बोडोलैंड आंदोलन के 1550 कैडर अपने 130 हथियारों के साथ 30 जनवरी को सरेंडर करेंगे. गृहमंत्री ने कहा कि बोडो समुदाय के लोगों के समावेशी विकास का प्रयास किया जाएगा.

• गृहमंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थिरता आई है और समावेशी विकास की राह पर क्षेत्र चला है.

• इस समझौते के बाद केंद्र सरकार को उम्मीद है कि एक संवाद और शांति प्रकिया के अंतर्गत उग्रवादियों का मुख्य धारा में शामिल करने का सिलसिला शुरू होगा.

• इस समझौते के अंतर्गत इस गुट के सदस्यों को आर्थिक सहायता भी सरकार की ओर से मुहैया करवाई जाएगी, इसकी मांग ये गुट पिछले कई दिनों से कर रहा था.

• केंद्र सरकार ने इस समझौते से पहले ये साफ किया है कि असम की एकता बरकरार रहेगी तथा उसकी सीमाओं में कोई बदलाव नहीं होगा.

बोडो समझौते का इतिहास

बोडोलैंड आंदोलन लंबे समय से अपने लिए अलग राज्य की मांग करता रहा है. इस समझौते का घोषणा करते हुए गृहमंत्री ने कहा कि असम के विभाजन की सभी संभावनाएं आज शून्य हो गई हैं. इस समझौते के साथ ही लगभग 50 साल से चला रहा बोडोलैंड विवाद समाप्‍त हो गया जिसमें अब तक लगभग 2823 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. यह पिछले 27 साल में तीसरा 'असम समझौता' है.

ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू और भारत सरकार ने साल 1993 में पहले समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के परिणामस्वरूप कुछ राजनीतिक शक्तियों के साथ एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का निर्माण हुआ. भारत सरकार और चरमपंथी समूह बोडो लिबरेशन टाइगर्स (BLT) के बीच साल 2003 में दूसरे बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

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बोडो विवाद क्‍या है?

असम में बोडोलैंड का मुद्दा तथा इससे जुड़ा विवाद छह दशक पुराना है. बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है. वे साल 1960 से अपने लिए अलग राज्य की मांग करती आई है. बोडो का कहना है कि उसकी जमीन पर दूसरे समुदायों की अनाधिकृत मौजूदगी बढ़ती जा रही है जिससे उसकी आजीविका एवं पहचान को खतरा है.  

साल 1980 के बाद बोडो आंदोलन हिंसक होने के साथ तीन धाराओं में बंट गया था. नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने पहली धारा का नेतृत्व किया जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था. दूसरा संगठन बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ) है जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की. तीसरा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) था जिसने समस्या के राजनीतिक समाधान की मांग की.

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