भारत कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में दुनिया में चौथे पायदान पर है. हाल ही में ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किये गये अध्ययन से यह बात पता चला.
इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन 2018 के अवसर पर जारी किया गया. इस रिपोर्ट में 2018 में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि होने का अंदेशा जताया गया है. इसका मुख्य कारण तेल तथा गैस के उपयोग में वृद्धि है.
अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य:
• भारत ने वर्ष 2017 में विश्व का 7 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया था. विश्व के चार सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जकों ने 58 प्रतिशत किया है, जिसमे चीन ने 27 प्रतिशत, अमेरिका ने 15 प्रतिशत और यूरोपीय संघ ने 10 प्रतिशत किया है.
• भारत ने वर्ष 2018 में 6.3 प्रतिशत की औसत वृद्धि की है. विश्व के दस शीर्ष उत्सर्जक चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत, रूस, जापान, जर्मनी, ईरान, सऊदी अरब, और दक्षिण कोरिया है.
• इस अध्ययन में यह सामने आया है कि भारत और चीन अभी भी काफी हद तक कोयले पर निर्भर हैं, जबकि अमेरिका और यूरोपीय संघ धीरे-धीरे कम कार्बन उत्सर्जन कर रहे हैं.
• भारत कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए सौर उर्जा पर निरंतर कार्य कर रहा है, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत को अंतर्राष्ट्रीय सोलर संगठन में अपनी सशक्त भूमिका निभानी होगी.
• चीन, भारत और यूरोपीय संघ वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 40 फीसदी का प्रनितिधित्व करते हैं.
भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में कोयला अभी भी मुख्य भूमिका निभा रहा है और ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा से बिजली बनाने का काम इसकी जगह ले सकता है. हालांकि भारत ने वर्ष 2020 तक ईंधन मुक्त रणनीति का घोषना किया है.
सौर उर्जा की ओर बढ़ता भारत कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का गठन किया गया. भारत भी सौर ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. भारतीय अर्थव्यवस्था को कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन से प्रत्येक वर्ष 210 अरब डॉलर का नुकसान होता है.
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