Paralympics 2024: दृष्टिबाधित कपिल ने अपने जूडो दाव से भारत को दिलाया कांस्य, पढ़ें संघर्ष से चमक तक की कहानी

Paralympics 2024: पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में कपिल परमार ने जूडो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया, जिससे भारत को इस खेल में पहला पैरालंपिक पदक मिला. मध्य प्रदेश के छोटे से गांव शिवोर से आने वाले कपिल की यह यात्रा संघर्षों से भरी रही. बचपन में बिजली के झटके से उनका जीवन बदल गया, लेकिन हौसला नहीं टूटा. अपने कठिन परिश्रम और आत्मविश्वास से उन्होंने देश का नाम रोशन किया है.

Sep 6, 2024, 09:14 IST
Paralympics 2024: पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में कपिल परमार ने जूडो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया
Paralympics 2024: पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में कपिल परमार ने जूडो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया

Paris Paralympics 2024: पैरा-एथलीट कपिल परमार ने इस शिक्षक दिवस अपने गुरु (कोच) सहित पूरे भारत को गौरवान्वित होने का मौका दिया है. कपिल परमार ने पेरिस पैरालंपिक में इतिहास रचते हुए जूडो में पैरालंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय एथलीट बन गए. 

24 वर्षीय भारतीय जूडोका ने J1 क्लास इवेंट में चैंप-डे-मार्स एरिना में कांस्य पदक मैच 10-0 से जीता. कांस्य पदक मैच में कपिल ने ब्राजील के एलील्टन डी ओलिवेरा को मैट पर मात दी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दृष्टिबाधित एथलीटों को J1 श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है. वे सामान्य दृष्टि वाले किसी व्यक्ति की तुलना में बहुत कम देखने में सक्षम होते हैं. 

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संघर्ष से जीत तक का सफर:

शिक्षक दिवस के दिन देश को ख़ुशी का अवसर देने वाले कपिल स्कूल के दिनों में अपने दोस्तों से अक्सर लड़ाई-झगड़े में पड़ जाते थे, लेकिन गुरु की सही सलाह के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान अपने खेल पर लगाया जो आ रंग लायी है. उनके शिक्षकों ने उन्हें अपनी ऊर्जा को सही दिशा में लगाने की सलाह दी थी.    

जुडो में भारत का पहला पदक: 

ब्लाइंड जुडोका कपिल परमार ने एलियलटन डी ओलिवेरा को हराकर इस खेल में देश का पहला पदक जीता. बता दें कि कपिल की इस यात्रा में उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन उनकी कहानी प्रेरणादायक रही है. 

कपिल परमार ने ibsasport.org से बात करते हुए कहा, "मैं इस खेल में इसलिए आया क्योंकि स्कूल में हमेशा अपने दोस्तों से लड़ता रहता था, और मेरे शिक्षकों ने मुझे सलाह दी कि मुझे अपनी ऊर्जा को सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए कोई खेल अपनाना चाहिए."

कौन हैं कपिल परमार? 

कपिल परमार मध्य प्रदेश के शिवोर गांव के रहने वाले है, और पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. उनके पिता टैक्सी ड्राइवर हैं, जबकि उनकी बहन एक निजी स्कूल में काम करती हैं. कपिल का अपने मंझले भाई से गहरा रिश्ता रहा है, जो खुद एक जुडो खिलाड़ी थे और कपिल उनके साथ ही ट्रेनिंग करते थे. 

लेकिन एक दुखद दुर्घटना ने कपिल की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया, जब खेलते वक्त गलती से पानी की मोटर को छूने से उन्हें जोरदार बिजली का झटका लगा. एक गांववाले ने उन्हें बेहोश हालत में पाया और तुरंत अस्पताल पहुंचाया, जहां वह छह महीने तक कोमा में रहे थे.

छह महीने तक कोमा में थे कपिल:

बता दें कि बिजली वाले हादसे के बाद भी जुडो के प्रति उनका प्रेम कायम रहा, जिसे वे स्कूल के दिनों में पसंद करते थे. ठीक होने के दौरान डॉक्टरों ने उन्हें वजन बढ़ाने की सलाह दी, और तभी उनकी मुलाकात ब्लाइंड जुडो से हुई. अपने गुरु भगवान दास और मनोज सर के मार्गदर्शन में उन्होंने जुडो को प्रतियोगितात्मक रूप से खेलना शुरू किया.

अपने सफर में कपिल ने कई कठिनाइयों का सामना किया. एक समय तो उन्होंने और उनके भाई ने आर्थिक तंगी से निपटने के लिए चाय की दुकान भी चलाई. उनके भाई ललित ने उन्हें आर्थिक सहायता दी और खेल में सफल होने के लिए हमेशा उनका साथ दिया. 

कपिल परमार का अगला लक्ष्य:

कपिल परमार, जिन्होंने पेरिस पैरालंपिक्स 2024 में ब्लाइंड जूडो में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा, अब अपने अगले लक्ष्यों की ओर अग्रसर होंगे. उनके अगले बड़े लक्ष्य में एशियन पैरालंपिक गेम्स और 2028 लॉस एंजिल्स पैरालंपिक्स शामिल है. 

जूडो में भारत की स्थिति: 

जूडो में भारत की स्थिति हाल के वर्षों में धीरे-धीरे बेहतर होती जा रही है, लेकिन यह अब भी विश्व स्तर पर शीर्ष देशों के मुकाबले उतनी मजबूत नहीं है. जूडो की शुरुआत भारत में 20वीं सदी में हुई थी, और भारतीय जूडो फेडरेशन की स्थापना 1965 में हुई. 

हालांकि, भारत ने एशियाई स्तर पर कुछ सफलताएँ हासिल की हैं. भारतीय जूडो खिलाड़ी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं जैसे एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और पैरालंपिक में पदक जीतने में सफल रहे हैं. इसके बावजूद, भारत को विश्व स्तरीय प्रतियोगिताओं, जैसे ओलंपिक में अभी और बेहतर प्रदर्शन की आवश्यकता है.

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