देश इस साल आजादी के 75 साल पूरा कर रहा है. 15 अगस्त 2021 को देश को आजाद हुए 75 साल पूरे हो जाएंगे. हम जानते हैं कि देश की आजादी के लिए हजारों लोगों ने अपने जानमाल की कुर्बानियां दी थीं. ऐसी ही कहानी महान स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस की है. स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ के साथ-साथ खुदीराम बोस को याद करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 11 अगस्त को ही 1908 में उनको फांसी हुई थी.
खुदीराम बोस की शहादत दिवस के मौके पर मुजफ्फरपुर जेल को पूरी तरह सजाया गया था. जिस स्थान पर बोस को 18 वर्ष की उम्र में फांसी दी गई थी, वहां कई सुगंधित फूलों से सजाया गया और अधिकारियों ने उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की.
कुछ अनसुनी बातें
• अमर शहीद खुदीराम बोस को वतन के लिए मर मिटने का जज्बा कुछ ऐसा था कि उनके बगावती सुर सुनकर अंग्रेज भी घबरा गए थे. बता दें आज ही के दिन अंग्रेजों ने मात्र 18 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी पर लटका दिया था.
• खुदीराम बोस का जन्म 03 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था. वहीं जब वह काफी छोटे थे उनके माता-पिता का निधन हो गया. माता-पिता के निधन के बाद खुदीराम को उनकी बड़ी बहन ने ही पाला-पोसा.
• खुदीराम बोस ने 1905 में ही रेवोल्यूशन पार्टी ज्वॉइन कर ली और जगह-जगह अंग्रेजों के खिलाफ पर्चे बांटने लगे. वहीं साल 1906 में पहली बार अंग्रेजों ने उन्हें पर्चे बांटते पकड़ लिया. जिसके बाद काफी जद्दोजहद के बाद वह अंग्रेजों की पकड़ से भाग निकले.
• खुदीराम बोस चर्चा में तब आए जब क्रांतिकारियों के खिलाफ सख्त फैसले देने वाले एक जज किंग्सफोर्ड पर उन्होंने हमला किया था. इसमें किंग्सफोर्ड बच गए थे और उनकी पत्नी मारी गई थीं. उन पर मुकदमा चलाया गया और कुछ सुनवाई के बाद ही जुलाई 1908 में खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई. इसके बाद 11 अगस्त 1908 को उनको फांसी दे दी गई.
• जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी उम्र 18 साल 8 महीने और 8 दिन थी. 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गई. अपनी शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हुए कि बंगाल में उनके नाम की धोती बुनी जाने लगीं और युवा उस धोती को पहना करते थे.
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