वॉएजर-2: सूर्य की सीमा के पार पहुंचने वाला दूसरा यान बना

Nov 6, 2019, 10:28 IST

इससे पहले नासा का ही वॉएजर-1 इस सीमा के पार पहुंचा था. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के शोधकर्ताओं के मुताबिक, वॉएजर-2 आइएसएम में पहुंच गया है.

Voyager-2
Voyager-2

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का वॉएजर-2 (Voyager 2) सूर्य की सीमा के पार पहुंचने वाला इतिहास का दूसरा अंतिरक्ष यान बन गया है. नासा के नाम एक और बहुत बड़ी उपलब्धि जुड़ गई है. नासा का वॉएजर-2 यान चार दशक से लंबे सफर के बाद सौरमंडल की परिधि के बाहर पहुंचने वाला दूसरा यान बन गया है.

नासा का ही वॉएजर-1 इससे पहले इस सीमा के पार पहुंचा था. अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ आयोवा के शोधकर्ताओं के अनुसार, वॉएजर-2 इंटरस्टेलर मीडियम (आइएसएम) में पहुंच गया है. विज्ञान पत्रिका नेचर एस्ट्रोनॉमी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, वॉएजर-2 ने 05 नवंबर 2018 को आइएसएम में प्रवेश किया था.

आइएसएम क्या है?

सूर्य से बाहर की तरफ बहने वाली हवाओं से सौरमंडल के चारों तरफ एक बुलबुले जैसा घेरा बना हुआ है. इस घेरे को हेलियोस्फेयर तथा इसकी सीमा से बाहर के अंतरिक्ष को इंटरस्टेलर मीडियम (आइएसएम) कहा जाता है.

आइएसएम में वॉएजर-2

यह निष्कर्ष यान पर लगे प्लाज्मा वेव उपकरण से मिली प्लाज्मा घनत्व की रीडिंग के आधार पर निकाला गया है. वैज्ञानिकों ने पाया कि प्लाज्मा की बढ़ी हुई घनत्व अंतरिक्ष यान की ठंडी और उच्च प्लाज्मा घनत्व में मौजूदगी का स्पष्ट प्रमाण है. इंटरस्टेलर स्पेस एक ऐसा स्थान है जहां सौर हवाओं का गर्म और कम घनत्व वाला प्लाज्मा हमेशा बना रहता है.

वॉएजर-2 से जिस तरह के प्लाज्मा घनत्व के डाटा मिले हैं, उसी तरह के डाटा वॉएजर-1 से भी मिले थे, जब उसने आइएसएम में प्रवेश किया था. वॉएजर-1 ने साल 2012 में सूर्य की सीमा को पार किया था.

वॉएजर-2 के बारे में

• वॉएजर-2 एक अमेरिकी मानव रहित अंतरग्रहीय शोध यान है. वॉएजर-2 को 20 अगस्त 1977 को नासा द्वारा प्रक्षेपित किया गया था.

• वॉएजर-2 काफी कुछ अपने पहले वाले संस्करण यान वॉएजर-1 के समान ही था. वॉएजर-2 की चाल 57,890 किलोमीटर प्रतिघंटा है.

• दोनों यान को उद्देश्य और पथ में अंतर के साथ धरती से परे ग्रहों व अंतरिक्ष के अध्ययन के लिए लांच किया गया था. पिछले 42 साल से दोनों यान काम कर रहे हैं.

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हेलियोस्फेयर क्या है?

वॉएजर-2 पर लगे उपकरणों से हेलियोस्फेयर को समझने की दिशा में अन्य कई अहम जानकारियां भी मिल रही हैं. वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष यान पर लगे भिन्न-भिन्न उपकरणों से प्राप्त डेटा का आकलन कर यह निर्धारित किया कि इस मिशन ने 5 नवंबर को हेलियोस्फेयर के अंतिम छोर को पार किया है.

यह हैलियोपाउज़ नामक एक ऐसा स्थान है जहाँ कमज़ोर, गर्म सौर हवा तारों के बीच के ठंडे तथा घने माध्यम से मिलती है. इसे सौरमंडल का छोर भी कहा जाता है. सूर्य से निकलने वाली चुंबकीय रेंज एक ऐसे गैसीय वातावरण का संरचना करती है जो ग्रहों की कक्षाओं से बहुत दूर तक फैली हुई हो. यह चुंबकीय क्षेत्र ही हेलियोस्फेयर है. हेलियोस्फेयर एक लंबे वात शंकु के आकार का होता है.

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Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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