71 साल के जापानी साइंटिस्ट योशिनोरी ओशुमी को चिकित्सा क्षेत्र में बॉडी सेल पर नए शोध हेतु नोबेल पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की. ओशुमी ने बॉडी सेल की 'सेल्फ ईटिंग या ऑटोफैगी' प्रोसेस को नए तरीके से समझाया है. योशिनोरी की खोज से भविष्य में पार्किंसन, डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों के उपचार मदद मिलेगी. ओसुमी सेल बायोलॉजिस्ट हैं.
योशिनोरी ओसुमी को ऑटोफैगी के क्षेत्र में नवीनतम शोध हेतु यह नोबेल प्रदान किया जाएगा. उन्होंने शरीर से विषैले तत्व को खत्म व मरम्मत करने वाली मानव शरीर की कोशिकाओं पर शोधकार्य किया है. पुरस्कारों की घोषणा स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट में में की गयी.
ऑटोफैगी के बारे में-
- ऑटोफैगी कोशिका शरीर विज्ञान की एक मौलिक प्रक्रिया है.
- ऑटोफैगी एक शारीरिक प्रक्रिया है जो शरीर में कोशिकाओं के होने वाले क्षरण /नाश से निपटती है.
- उन्हें बाधित करने पर पार्किनसन और मधुमेह जैसी बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है.
- ऑटोफैगी का मानव स्वास्थ्य एवं बीमारियों के लिए बड़ा निहितार्थ है. अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार सबसे पहले 1960 के दशक में पता लगा कि कोशिकाएं अपनी सामग्रियों को झिल्लियों में लपेटकर और लाइसोजोम नाम के एक पुनर्चक्रण कंपार्टमेंट में भेजकर नष्ट कर सकती हैं.
- ऑटोफैगी की सबसे पहली चर्चा 1974 में क्रिटियन डे ड्यूव ने की थी. ऑटोफैगी से ही ऑटोफोबिया शब्द बना है, जिसका मतलब होता है अकेले रह जाने का डर.
- ऑटोफैगी एक नेचुरल डिफेंस है, जो शरीर के जिंदा रहने में मदद करता है.
- ये शरीर को बिना खाने के रहने में मदद करता है, साथ ही बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में मदद करता है.
- ऑटोफैगी प्रॉसेज के नाकाम होने के कारण ही इंसान में बुढ़ापा और पागलपन जैसी चीजें बढ़ती हैं.
नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था ने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस संबंध में ट्वीट कर जानकारी दी. नोबेल प्राइस कमिटी के अनुसार जापानी शोध करता योशिनोरी ओशुमी ने ऑटोफैजी के क्षेत्र में बेहद नई खोजें की हैं. इसके लिए उन्हें वर्ष 2016 के चिकित्सा के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. योशिनोरी ओसुमी 1990 से इस शोधकार्य में लगे थे.
नोबेल पुरस्कार-
- 'मेकानिज्म फॉर ऑटोफेगी' के लिए योशिनोरी ओहसुमी को 18000 यूरो (सवा 6 करोड़ रु. /936,000 डॉलर) राशि पुरस्कार मनी दी जायेगी.
- वर्ष 2015 में चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों विलियम सी कैम्पबेल, सतोषी ओमुरा और योतो तु के मध्य साझा किया गया.
- तीनों वैज्ञानिकों को मलेरिया और ट्रॉपिकल बीमारियों का उपचार विकसित करने हेतु नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया.
- मेडिसिन की श्रेणी में 1905 में शुरू हुए नोबेल पुरस्कार का यह 107वां पुरस्कार है.
- जापान ने यह 25वां और लगातार तीसरे साल नोबेल पुरस्कार जीता है. ओशुमी नोबेल पुरस्कार पाने वाले चौथे जापानी हैं.
शोध के लाभ-
- ओशुमी की रिसर्च से कई बीमारियों को समझने और नई दवाएं तैयार करने में मदद मिलेगी.
- इससे उम्र के बढ़ने और सेल के डैमेज होने का भी सही तरीके से पता लगाया जा सकता है.
- अभी इन बीमारियों की मेडिसिन डेवलप करने को लेकर दुनियाभर में रिसर्च चल रही हैं.
योशिनोरी ओसुमी के बारे में-
- योशिनोरी ने टोक्यो यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की.
- उन्होंने ने रॉकफेलर यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टरल की डिग्री की.
- 1977 में रिसर्च एसोशिएट के पद पर काम करने वाले ओहसुमी को 1986 में टोक्यो यूनिवर्सिटी में लेक्चरर पद पर नियुक्त किया गया. 1974 में उन्होंने इसी इंस्टीट्यूट से पीएचडी की.
- 1986 में उन्होंने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ बेसिक बॉयोलॉजी में काम करना शुरू किया, जहां उन्होंने प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया.
1960 में जन्मी थी ऑटोफैगी की अवधारणा-
- ऑटोफैगी की अवधारणा का जन्म सन् 1960 में हुआ था, जब पहली बार यह सामने आया कि कोशिका खुद को एक भित्ती के अंदर बंद कर अपनी सामग्री को नष्ट कर सकती है और इस प्रक्रिया में एक थैली जैसी पुटिकाओं का निर्माण होता है, जो लाइसोसोम तक जाता है, जो इसे नष्ट कर देता है.
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