जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में किए गए समझौते मामले में फ्रांस ने किसी भी तरह के पुनर्विचार से इन्कार कर दिया. फ्रांस के अनुसार पेरिस समझौते से अमेरिका के हटने का प्रभाव पड़ेगा किन्तु यह समझौता जलवायु परिवर्तन पर सभी वैश्विक कार्रवाई की नींव रहेगा. पेरिस समझौते का उद्देश्य धरती को औद्योगिक काल की शुरुआत के तापमान से दो डिग्री अधिक गर्म होने से बचाना है.
जलवायु परिवर्तन को लेकर वर्ष 2015 में पेरिस में किए गए समझौता से अमेरिका ने फैसले से हटने की घोषणा कर दी. इसकी औपचारिक जानकारी संयुक्त राष्ट्र को भी दे दी. समझौते की शर्तों के अनुसार, अमेरिका चार नवंबर 2020 तक इस समझौते से पूरी तरह अलग नहीं हो सकता. फ्रांस की मंत्री के अनुसार अमेरिका के फैसले के करीब एक महीना बाद फ्रांस ने जलवायु संबंधी एक और महत्वाकांक्षी योजना पेश की.
फ्रांस की इकोलॉजिकल और इंक्लूसिव ट्रांजिशन राज्य मंत्री ब्रुनी पोयर्नसन के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग की मार झेल रहे छोटे देश अमेरिका के फैसले से निराश हैं. कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन वाले दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश के हटने से प्रभाव तो पड़ेगा ही.
आशा व्यक्त की गई है कि जर्मनी के बॉन में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की सीओपी-23 बैठक में पेरिस समझौते के नियमों और तकनीकियों को लागू करने की दिशा में ठोस प्रगति होगी.
इंक्लूसिव ट्रांजिशन राज्य मंत्री ब्रुनी पोयर्नसन के अनुसार जी-7 और जी-20 शिखर बैठक के दौरान नेताओं ने कहा था कि पेरिस समझौते पर फिर से बातचीत नहीं होगी. दिसंबर 2015 में 190 देशों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए.
जून 2016 में पद संभालने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने समझौते से हटने और इस पर फिर से बातचीत करने की घोषणा की.
फ्रांस ने जीवाश्म ईंधन पर प्रतिबंध के लिए संसद में विधेयक भी पेश किया. ऐसा करने वाला फ़्रांस दुनियाँ का पहला देश है. नवीकरण ऊर्जा और इलेक्टि्रक वाहन पर जोर देकर भारत ने भी ऐसी ही दृढ़ता दिखाई है
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