भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश से बाहर धन भेजने की उदारीकृत प्रेषण योजना (एलआरएस) की जानकारी देने के नियमों को और कड़ा कर दिया है. इस योजना के तहत कोई व्यक्ति एक वर्ष में ढाई लाख डॉलर तक विदेश भेज सकता है.
उद्देश्य:
मानदंडों को कड़ा करने का उद्देश्य निगरानी में सुधार करना और उदारीकृत प्रेषण योजना की सीमाओं का अनुपालन सुनिश्चित करना है. ये कदम देश से बाहर गैरकानूनी ढंग से धन बाहर भेजने पर रोक लगाने के उद्देश्य से उठाया गया है.
नियमों से संबंधित मुख्य तथ्य:
• प्रेषक द्वारा की गई घोषणा के आधार पर बैंक योजना के तहत लेनदेन की अनुमति देते हैं.
• इस सीमा के पालन की निगरानी केवल प्रेषक द्वारा की गई घोषणा तक ही सीमित है.
• इसकी स्वतंत्र रूप से कोई पुष्टि नहीं की जाती. इसके बारे में सूचना का कोई विश्वसनीय स्रोत भी नहीं होता है.
हाल ही में जिस तरह से तमाम बैंकों में वित्तीय अनियमितता देखने को मिली और इससे बैंकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, जिसके बाद आरबीआई ने धोखाधड़ी को रोकने के लिए नियमों को सख्त करने का फैसला लिया है.
उदारीकृत प्रेषण योजना के बारे में:
• यह आरबीआई द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधा है. यह सभी व्यक्तियों के लिए है.
• इसमें मौजूदा और पूंजीगत खाते के प्रयोजनों या दोनों के संयोजन के लिए अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में कुछ राशि तक स्वतंत्र रूप से छूट प्रदान करना शामिल है.
• यह योजना फरवरी 2004 में शुरू की गई थी तथा इसका विनियम विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 के तहत किया जाता है.
पृष्ठभूमि:
धन भेजने पर निगरानी को बेहतर करने और एलआरएस सीमाओं के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय किया गया कि इस योजना के तहत धन भेजने वालों के लेनदेनों की जानकारी संबंधित प्राधिकृत डीलर बैंकों से रोजाना मंगाने की व्यवस्था को अमल में लाया जाए. इस तरह के लेनदेन करने वाले अन्य बैंकों को भी यह जानकारी सुलभ हो. बैंकों को अब रोजाना इस तरह के लेनदेन की सूचना अपलोड करनी होगी.
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