सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर अपना अहम फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने समलैंगिक विवाह की मांग वाली याचिका को ठुकरा दिया है. सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की बेंच 3-2 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इस साल अप्रैल में इस मामले पर सुनवाई की थी और 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार मानने से भी इंकार कर दिया है.
#WATCH | Supreme Court refuses to give marriage equality rights to the LGBTQIA+ community in India
— ANI (@ANI) October 17, 2023
Lawyer Karuna Nundy says, "...There were some opportunities today that I believe has been pushed off to the legislators and the central govt has made their stand clear with regards… pic.twitter.com/BerEKzHmCY
क्या है पूरा मामला:
Same Sex Marriage को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 20 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी थी जिस पर अप्रैल महीने में सुनवाई की गयी थी और कोर्ट ने 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले की सुनवाई करने वाले पांच जजों की बेंच में सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एस. रवीन्द्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा शामिल है.
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LGBTQI+ समुदाय को झटका:
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने LGBTQI+ समुदाय के लोगों को झटका दे दिया है. समलैंगिक विवाह के मुद्दे कोर्ट ने कहा कि जब शादी का अधिकार वैधानिक होता है मौलिक नहीं तो इसे क़ानूनी तौर पर लागू नहीं किया जा सकता है. इस मुद्दे पर सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल पक्ष ने नजर आये जबकि जस्टिस एस. रवीन्द्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और पी.एस. नरसिम्हा ने इसके विरोध में अपना पक्ष रखा.
कोर्ट के फैसले की पांच प्रमुख बातें:
1. सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के अधिकारों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया है और इनके अधिकारों के लिए जागरुकता अभियान चलाने की बात कही है साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाये कि उनके साथ कोई भेदभाव न हो.
2. चीफ जस्टिस ने कहा कि जीवन साथी चुनने की आजादी अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी हुई है. साथ ही उन्होंने बराबरी के अधिकार की भी बात कही.
3. स्पेशल मैरिज एक्ट पर अपनी बात रखते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर इसे खत्म किया गया तो यह देश को आजादी से पहले वाले समय में ले जायेगा. स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव का अधिकार सरकार और संसद के पास है. साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोर्ट को विधायी मामलों में हस्तक्षेप से सावधान रहना चाहिए.
4. समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर चीफ जस्टिस ने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया है और साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए बेहतर कदम उठाने की बात कही है.
5. जस्टिस संजय किशन कौल ने भी सीजेआई के फैसले का समर्थन किया और कहा कि कोर्ट के पास विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करने का अधिकार नहीं है. वही जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि कोर्ट के पास समलैंगिकों के लिए कोई कानूनी ढांचा बनाने का अधिकार नहीं है.
कानून बनाने का अधिकार संसद को:
सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने साफ कर दिया कि किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार कोर्ट की नहीं है, यह अधिकार संसद के पास है. साथ ही कोर्ट ने साफ कर दिया कि विशेष विवाह अधिनियम (SMA) में संशोधन का अधिकार संसद के पास है. सीजेआई ने यह भी बताया कि Same Sex Marriage विशेष विवाह अधिनियम के दायरे में ही रहेगा.
केंद्र का क्या है पक्ष:
केंद्र सरकार भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में नहीं है. साथ ही केंद्र ने कहा था कि इसे मान्यता देना देश की परंपरा के खिलाफ है और इसके लिए कई कानूनों और प्रावधानों में बदलाव करना होगा. साथ ही सरकार की ओर से कहा गया कि सेम सेक्स मैरिज हमारे देश की सांस्कृतिक और सभ्यता से मेल नहीं खाती है.
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