सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च 2018 को दो अलग धर्मों या जातियों के व्यस्कों के बीच आपसी रजामंदी से होने वाली शादी के मामले में खाप पंचायत जैसे समूह के दखल को पूरी तरह गैरकानूनी करार देते हुए इन पर पाबंदी लगा दी. इससे पहले फरवरी में हुई सुनवाई में ऑनर किलिंग पर बेहद सख्त रुख अपनाते हुए खाप पंचायतों को फटकार लगाई थी.
यह निर्णय चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय बेंच ने इस तरह के हस्तक्षेप को रोकने के लिए गाइडलाइन जारी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में संसद से कानून बनने तक उसका ये गाइडलाइन लागू रहेगा.
मुख्य तथ्य:
• सर्वोच्च कोर्ट का यह फैसला गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) शक्ति वाहिनी की उस याचिका पर आया है, जिसके तहत एनजीओ ने 'ऑनर किलिंग' की घटनाओं को रोकने, खाप पंचायतों द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन और शादी करने के इच्छुक वयस्कों के सम्मान की रक्षा करने हेतु कहा गया था.
• सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति, पंथ या धर्म कोई भी हो, अगर दो वयस्कों ने विवाह करने का निर्णय लिया है, तो कोई तीसरा पक्ष इसमें दखल नहीं दे सकता है.
खाप पंचायत:
खाप लोगों का समूह होता है. एक गोत्र या जाति के लोग मिलकर एक खाप-पंचायत बनाते हैं, जो पांच या उससे ज्यादा गांवों की होती है. इन्हें कानूनी मान्यता नहीं है. इसके बावजूद गांव में किसी तरह की घटना के बाद खाप कानून से ऊपर उठ कर फैसला करती हैं. खाप पंचायतें देश के कुछ राज्यों के गांवों में काफी लंबे वक्त से काम करती रही हैं.
पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में हुई सुनवाई में कहा था कि बालिग लड़का या लड़की अपनी मर्जी से शादी कर सकते हैं. कोई पंचायत, खाप पंचायत, सोसायटी या कोई शख्स इस पर सवाल नहीं कर सकता. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से अंतरजातीय अंतरधर्म विवाह करने वाले जोड़ों को खाप पंचायतों के फरमान और अन्य से भी सुरक्षा मिलेगी.
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