श्रीलंका ने भूमि-खदान प्रतिबंध संधि सम्मेलन की सदस्यता के लिए अपनी सहमति दे दी और इसके साथ ही यह इस सम्मलेन का 163वां सदस्य देश बन गया है.
श्रीलंका ने पिछले साल इस संधि सम्मेलन में भाग लेने और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को लैंडमाइन क्लीयरेंस प्रोग्राम पर अपना समर्थन देने का वादा किया था.
परमाणु प्रतिबंध संधि पर 50 से अधिक देशों ने हस्ताक्षर किये
क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
यह श्रीलंका का एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है क्योंकि यह ऐसे खानों का इस्तेमाल करने वाला प्रमुख देशों में से एक था. पर इसके बाद से इसने ऐसे खदानों को बंद करने का व्यापक और निरंतर प्रयास शुरू किया था.
श्रीलंका ने कहा कि वे इस कन्वेंशन को लागू करने और बढ़ावा देने के लिए तत्पर हैं, जिसमें क्षमता निर्माण और खदानों को निपटाना शामिल है.
जो भी सदस्य देश इस संधि या सम्मेलन का सदस्य बनता है, वे सभी देश इस संधि की सहमति पर हस्ताक्षर करने के 4 सालों के अन्दर, ऐसे खदानों को, जो उनके पास है या उनके क्षेत्र में आता है, नष्ट करने को प्रतिबद्ध होता है.
खदान निषेध संधि या ओटावा संधि के बारे में
‘खदानों का उपयोग, रोकथाम, उत्पादन और अंतर-कार्मिक खानों के हस्तांतरण और उनके विनाश पर रोक’ संधि, जो सामान्य रूप से भूमि-खदान प्रतिबंध संधि या ओटावा संधि के नाम से जाना जाता है, को 18 सितंबर 1997 को ओस्लो, नॉर्वे में आयोजित राजनयिक सम्मेलन ‘अंतर्राष्टीय भूमि-खदान पूर्ण प्रतिबन्ध’ में लागू किया गया था.
18-21 दिसंबर, 2017 की अवधि के दौरान वियना में आयोजित इस संधि के सदस्य राष्ट्रों की सोलहवीं मीटिंग की अध्यक्षता ऑस्ट्रिया करेगा.
लैंडमाइन्स को प्रतिबंधित करने की अंतर्राष्ट्रीय अभियान, जिसे नोबेल पुरस्कार दिया गया था, के रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल 8,605 खदानों या युद्ध के विस्फोटक अवशेषों की सूचना मिली, जिसमें कम से कम 2,089 लोग मारे गए थे.
श्रीलंका की सहमति के बाद, अब सिर्फ : भारत, नेपाल और पाकिस्तान तीन दक्षिण एशियाई देश बचे हैं जो अभी तक इस संधि में शामिल नहीं हुए हैं.
Comments
All Comments (0)
Join the conversation