उच्चतम न्यायालय ने दुर्घटना दावे के निर्धारण हेतु मानदंड निर्धारित किये

संविधान पीठ ने कहा है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत पीड़ि‍त परिवारों को दी जाने वाली मुआवजे की राशि तय करने से पहले यह ध्यान रखना जरूरी है कि वह तार्किक और समानता के सिद्धांत के अनुरूप हो.

Nov 2, 2017, 12:41 IST
Supreme court
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उच्चतम न्यायालय ने 31 अक्टूबर 2017 को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सड़क दुर्घटना में मारे गये व्यक्ति के आश्रितों को मुआवजे का आदेश देते समय मृतक की ‘भावी संभावनाओं’ पर विचार किया जायेगा. न्यायालय ने ऐसे दावों में मुआवजे के निर्धारण के लिये मानक आधार प्रतिपादित किये हैं.

उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा, सड़क दुर्घटनाओं में मारे या घायल होने वाले खुद का कारोबार करने वाले या जिनकी तय आमदनी हो, उन्हें मुआवजे देते वक्त उसकी आमदनी के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं पर भी विचार किया जाएगा.

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उच्चतम न्यायालय ने मुआवजे के इस सिद्धांत को हरी झंडी दी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा है कि वैसे तो मौत का विकल्प पैसा नहीं हो सकता लेकिन मुआवजे में एक समानता तो होनी ही चाहिए. बेंच ने कहा है कि इन दोनों के बीच संतुलन होना जरूरी है. सड़क दुर्घटना पीड़ि‍तों को मिलने वाले मुआवजे में एकसमानता होनी ही चाहिए.

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संविधान पीठ ने कहा है कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत पीड़ि‍त परिवारों को दी जाने वाली मुआवजे की राशि तय करने से पहले यह ध्यान रखना जरूरी है कि वह तार्किक और समानता के सिद्धांत के अनुरूप हो. पीठ ने कहा है कि दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति की आयु 40 साल से कम हो तो मृतक के वेतन का 50 फीसदी भविष्य की कमाई की संभावनाओं के तौर पर मिलना चाहिए. वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच के मृतकों के लिए यह 30 फीसदी जबकि 50 से 60 वर्ष के बीच की आयु के मृतक के लिए यह 15 फीसदी होनी चाहिए.

संविधान पीठ ने कहा है कि अगर मृतक का खुद का कारोबार हो या जिसकी निर्धारित आमदनी (टैक्स को छोड़कर) हो और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम हो तो उस वक्त जो वह कमा रहा था कि उसका 40 फीसदी अतिरिक्त मुआवजा मिलेगा. वहीं 40 से 50 वर्ष के बीच वाले लोगों के लिए यह 25 फीसदी और 50 से 60 वर्ष के बीच वाले मृतकों के लिए यह 10 फीसदी होगा.

संविधान पीठ ने यह फैसला यह देखते हुए दिया है कि पुराने कई आदेशों में सड़क दुर्घटना पीड़ि‍तों को मिलने वाले मुआवजों में ‘जोड़-घटा’ अलग-अलग रहा है. साथ ही पीठ ने संपदा के नुकसान पर 15 हजार रुपये, कंपनी के नुकसान के मद में 40 हजार रुपये और अंतिम संस्कार के लिए 15 हजार रुपये देने के लिए कहा है. हर तीन साल इन राशियों में 10 फीसदी का इजाफा होगा.

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