जाने क्या है सबरीमाला केस, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को सौंपा

Nov 14, 2019, 16:37 IST

सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी 2019 में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी.

Sabarimala review petitions
Sabarimala review petitions

सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर 2019 को केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के फ़ैसले के विरुद्ध दाख़िल की गई पुनर्विचार याचिका को पांच जजों की बेंच ने सात जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दी है. यह फैसला बेंच ने 3:2 से सुनाया है.

पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की बेंच में दायर की गई थीं. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस एएम खानविलकर ने केस बड़ी बेंच को भेजने का फैसला दिया. जस्टिस फली नरीमन तथा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने इसके खिलाफ फैसला दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी 2019 में मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी हटा दी थी.

पुनर्विचार याचिका का विरोध करते हुए केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि महिलाओं को रोकना हिन्दू धर्म में अनिवार्य नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद सबरीमाला मंदिर में केवल दो महिलाएं किसी तरह पहुंच पाई थीं. हालांकि इन दो महिलाओं के प्रवेश से केरल में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर 2018 को 4:1 के बहुमत से मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दी थी. सबरीमाला फैसले पर 56 पुनर्विचार समेत 65 याचिकाएं दायर की गई थीं. कोर्ट ने इन पर 06 फरवरी 2019 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी दिया था. कोर्ट ने कहा था की दशकों पुरानी हिंदू धार्मिक प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था की धर्मनिरपेक्षता का माहौल कायम रखने हेतु कोर्ट को धार्मिक अर्थों से जुड़े मुद्दों को नहीं छेड़ना चाहिए. जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था की शारीरिक वजहों से मंदिर आने से रोकना रिवाज का जरूरी हिस्सा नहीं है. ये सोच पुरूष प्रधान दर्शाता है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था की महिला को पीरियड्स के आधार पर प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है. यह मानवता के खिलाफ है.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं पर प्रतिबन्ध क्यों?

महिलाओं को पीरियड्स के दौरान हिंदू मान्यता में अपवित्र माना जाता है. जिसके अक्रन मंदिर में उनके प्रवेश पर रोक थी. कई महिला वकीलों ने साल 2006 में लैंगिक समानता को आधार बनाकर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका डाली थी. इस संबंध में उसके बाद कई और याचिकाएं डाली गईं. केरल हिंदू प्लेसेस ऑफ पब्लिक वर्शिप रूल्स, 1965 के नियम 3(बी) को पांच महिला वकीलों के समूह ने चुनौती दी थी. इस नियम में महिलाओं को पीरियड्स वाले आयुवर्ग के दौरान मंदिर में प्रवेश से रोके जाने का प्रावधान है. ऐसे में महिला वकीलों ने केरल हाईकोर्ट के बाद न्याय हेतु सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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सबरीमाला कार्यसमिति का आरोप

सबरीमाला कार्यसमिति ने आरोप लगाया था कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देकर उनके रीति-रिवाज तथा परंपराओं को नष्ट किया है. लोगों की मान्यता है कि 12वीं सदी के भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं. जिस कारण से मंदिर में 10 साल से 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित किया गया था.

Vikash Tiwari is an content writer with 3+ years of experience in the Education industry. He is a Commerce graduate and currently writes for the Current Affairs section of jagranjosh.com. He can be reached at vikash.tiwari@jagrannewmedia.com
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