अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी तथा वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन द्वारा दावा किया गया है कि उन्होंने विश्व की पहली बायोइलेक्ट्रिक मेडिसिन विकसित की है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दवा को शरीर में इम्प्लांट किया जा सकता है. यह एक बायोडिग्रेडेबल वायरलेस डिवाइस है जो तंत्रिकाओं के रीजनरेशन तथा क्षतिग्रस्त तंत्रिकाओं के उपचार में सहायक है. माना जा रहा है कि यह खोज भविष्य में तंत्रिका कोशिकाओं के उपचार के लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती है.
खोज के मुख्य बिंदु
• बायोइलेक्ट्रॉनिक दवा एक किस्म की वायरलेस डिवाइस होती है, इसे शरीर के बाहर एक ट्रांसमीटर द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है.
• माना जा रहा है कि एक बार इम्प्लांट करने के बाद यह अगले दो सप्ताह तक शरीर में कार्य कर सकती है.
• इस अवधि के उपरांत यह दवा स्वतः ही शरीर में अवशोषित हो जाती है.
• इसका आकार एक छोटे सिक्के जितना होता है तथा मोटाई कागज के समाज होती है.
• वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसका प्रयोग चूहों पर किया गया जिसके बाद सकरात्मक परिणाम पाए गये.
• प्रयोग के बाद पाया गया कि चूहों में बायोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइस सर्जिकल रिपेयर प्रक्रिया के बाद नियमित रूप से तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त हिस्से को इलेक्ट्रिक इम्पल्स देती है.
• इससे उन चूहों की टांगों में तंत्रिका कोशिकाओं में पुनः वृद्धि हुई और बाद में उनकी मांसपेशी की मज़बूत व नियंत्रण में भी वृद्धि हुई.
टिप्पणी
• इस प्रकार की दवा से सीधे ही शरीर के क्षतिग्रस्त भाग अथवा उपचार की आवश्यकता वाले भाग पर कार्य किया जा सकता है.
• पारंपरिक दवा से होने वाले साइड इफ़ेक्ट की तरह इसमें यह खतरा कम होगा.
• इस इम्प्लांट को शरीर में स्थापित करने के बाद उसकी देखरेख करने की अधिक चिंता नहीं होगी क्योंकि यह स्वतः ही अवशोषित हो जाती है.
• भविष्य में इस प्रकार की दवा फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में एक नई क्रांति का कारण बन सकती है.
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