मई 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नीत एनडीए सरकार ने अध्यादेशों की लगातार घोषणा की है. अभी तक एनडीए सरकार नौ अध्यादेश ला चुकी है. इसमें कोयला खदान अध्यादेश, बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाने के लिए अध्यादेश, भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन हेतु अध्यादेश, खान अधिनियम में संशोधन हेतु अध्यादेश एवं अन्य शामिल हैं.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के मुताबिक राष्ट्रपति के पास संसद सत्र नहीं चलने के दौरान आवश्यकता पड़ने पर अध्यादेश की घोषणा करने का अधिकार है.
एक तरफ यह तर्क दिया जाता है कि अध्यादेशों की घोषणा करना हाल ही में संसद के दोनों सदनों में देखे गए नीतिगत दुर्बलता को दूर करने के लिए जरूरी है. इससे बुनियादी ढांचा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को निवेश के लिए आकर्षित करने में मदद मिलेगी. इससे आर्थिक विकास में मदद मिलेगी जिसमें पिछले पांच वर्षों से ठहराव आ गया है.
दूसरी तरफ, यह तर्क दिया जाता है कि अध्यादेशों की घोषणा संसदीय लोकतंत्र जहां लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि विभिन्न कानूनों पर चर्चा और बहस करते हैं, के लिए खतरा है. यह प्रक्रिया इस बात को सुनिश्चित करता है कि अधिनियमित कानून लोगों की इच्छा होती है. वैकल्पिक प्रक्रियाओं या शॉर्ट कट को चुनना दीर्घ काल में बिलों को पारित करने की संवैधानिक प्रक्रिया के लिए खतरा पैदा कर सकता है.
इस प्रकार यह जरूरी है कि संसदीय लोकतंत्र के मानदंड जो कि पिछले 60 वर्षों से बहुत सफल रहा है, उसे विकास प्रक्रिया की तेज गति के नाम पर छोड़ नहीं दिया जाना चाहिए. अंततः लोगों की इच्छा शक्ति मायने रखती है. सामाजिक– आर्थिक– राजनीतिक परिवेश में समय की मांग को न्यायसंगत एवं सहभागी विकास को सुनिश्चित करके ही पूरा किया जा सकता है.
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