अफगानिस्तान ने 19 अगस्त 2014 को अपना 95वां स्वतंत्रता दिवस मनाया. इसने वर्ष 1919 में हुए एंग्लो–अफगान संधि पर हस्ताक्षर होने की खुशी में स्वतंत्रता दिवस मनाया क्योंकि इसकी वजह से ही देश को ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्ण स्वतंत्रता मिली थी.
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मौके पर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई को भारत सरकार और भारतवासियों की तरफ से शुभकामनाएं दीं.
अफगानिस्तान की स्वतंत्रता के बारे में
प्राचीन काल से ही कई शासकों जिसमें सिकंदर महान, मंगोल शासक और तुर्की साम्राज्य भी शामिल है, ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया .
हालांकि, अठारहवीं शताब्दी में अहमत शाह दुर्रानी ने अपने कई पड़ोसी सीमाओं पर कब्जा किया और कांधार को अपनी राजधानी बनाया था.
अफगानिस्तान कभी भी ब्रिटिश साम्राज्य के पूर्ण नियंत्रण में नहीं रहा लेकिन ब्रिटिशों ने अफगानिस्तान के साथ तीन युद्ध किए. ये युद्ध थे–
एंग्लो–अफगान युद्ध
- पहला एंग्लो– अफगान युद्ध वर्ष 1839 से वर्ष 1842 के बीच हुआ और ब्रिटिश नीत भारतीय आक्रमणकारियों को अकबर खान की अफगान बलों ने हरा दिया.
- दूसरा एंग्लो– अफगान युद्ध, ब्रिटिशों ने पहली बार जीत का स्वाद चखा और युद्ध में कांधार पर जीत हासिल की. उन्होंने अब्दुर्ररहमान खान को मित्रवत एंग्लो–अफगान रिश्तों के लिए अमीर नियुक्त किया. रुस और फारसियों से संरक्षण के एवज में अफगानिस्तान ने ब्रिटेन को विदेश मामलों का नियंत्रण दे दिया. यह युद्ध वर्ष 1878 में हुआ था.
- तीसरा एंग्लो– अफगान युद्ध– ब्रिटेन ने अफगानिस्तान के विदेश मामलों पर नियंत्रण छोड़ दिया जिसके परिणामस्वरुप वर्ष 1919 में एंग्लो–अफगान समझौते पर सहमति हुई, इसे रावलपिंडी समझौता भी कहते हैं, जिसमें इस बात पर सहमति बनी कि ब्रिटिश भारत कभी भी खैबर दर्रे का विस्तार नहीं करेगा औऱ अफगानिस्तान को ब्रिटिश सब्सिडी बंद कर दिया.
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