सर्वोच्च न्यायालय ने 6 मई 2014 को दिये गए एक निर्णय में कहा कि, 6 से 14 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा देने का शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर लागू नहीं होगा.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय ‘संविधान पीठ’ ने इस निर्णय में कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) अल्पसंख्यक स्कूलों में लागू करना संविधान का उल्लंघन है. इसके साथ ही साथ इस पीठ ने कहा कि बाकी सभी गैर सहायता प्राप्त स्कूलों पर यह कानून लागू होगा.
पृष्ठभूमि
संविधान पीठ ने आरटीई कानून को चुनौती देने वाली अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की याचिकाएं स्वीकारते हुए वर्ष 2012 में दिए गए तीन न्यायाधीशों का फैसला खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर आरटीई कानून लागू होगा और उन्हें भी गरीब तबके के 25 प्रतिशत बच्चों को प्रवेश देना होगा.
इस संबंध में संविधान पीठ ने कहा कि, अल्पसंख्यक संस्थानों पर आरटीई कानून लागू करने से संविधान के अनुच्छेद 30(1) का उल्लंघन होगा, जिसके तहत अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को विशेष दर्जा दिया गया है.
शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई)
शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) 26 अगस्त 2009 को भारत सरकार द्वारा 93वें संविधान संशोधन अधिनियम-2005 के तहत बना. इस कानून के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी है. इसके तहत निजी विद्यालयों को भी अपने कुल छात्र संख्या का 25 प्रतिशत नामांकन गरीब छात्रों का करना अनिवार्य कर दिया गया. यह कानून संविधान के अनुछेद 21-ए के तहत मौलिक अधिकार में शामिल हो गया. यह कानून 1 अप्रैल 2010 से पूरे देश में लागू हुआ.
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