नासा के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ग्लोबल वार्मिंग का एक बड़ा व नया कारण खोज निकाला. वैज्ञानिक एरिक काट के नेतृत्व में आर्कटिक के वातावरण का कई स्तरों पर अध्ययन किया गया. इस अध्ययन में यह पाया गया कि आर्कटिक के नीचे एक खतरनाक ग्रीनहाउस गैस मीथेन का विशाल भंडार है. यह अथाह भंडार अब आर्कटिक पर जमी बर्फ को पिघला रहा है. इसी गैस से वातावरण भी गर्म हो रहा है.
वैज्ञानिक एरिक काट की टीम ने पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव के 8.7 मील के देशांतर में वातावरण यानी वायु, जल और थल का गहन अध्ययन किया. वर्ष 2009 से वर्ष 2010 तक नासा, एनसीएआर और नेशनल ओशनिक एटमॉस्फीयरिक मेजरमेंट्स के संकलित आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया. वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की प्रणाली में ग्रीनहाउस गैसों की उत्पत्ति और स्वाभाविक भंडार पर गहन अध्ययन किया. वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि मीथेन गैस के स्तर में बढ़ोतरी कम देशांतरों पर ही होती है. वायु में भी मीथेन की मात्रा कम देशांतर वाले आर्कटिक महासागर, उत्तर में स्थित चुकची सागर और बीयोफोर्ट सागर के ऊपर हवा में सर्वाधिक है. वैज्ञानिकों ने पाया कि मीथेन वहां के प्राकृतिक संसाधनों में मौजूद नम प्रदेशों में ही संरक्षित है. बर्फ में पड़ रही दरारों से मीथेन पानी में घुलकर हवा के संपर्क में आ रही है. जिस कारण आर्कटिक क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी तापमान बढ़ रहा है.
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