पिछले दो वर्षों में डिजिटल स्पेस प्रमुख परिवर्तनों का साक्षी रहा है तथा उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार इसमें विकास जारी रहेगा. फिलवक्त डिजिटल जगत में इंटरनेट ऑफ थिंग्स की अवधारणा बहुत तेजी से विकसित हो रही है. अमेरिका, दक्षिण कोरिया तथा चीन जैसे देश तो पहले से ही इस तकनीक का लाभ उठाने की पूरी तैयारी में है. हालांकि इंटरनेट ऑफ थिंग्स के जरिये हो रहे बदलाव सिर्फ विकसित देशों तक ही सीमित नहीं है.
भारत में भी सार्वजनिक एवं निजी दोनों ही क्षेत्र प्रशासनिक विधाओं और और व्यापार को और समृद्ध बनाने के लिए कुशल और प्रभावी तरीके से उसमें सुधार हेतु तकनीक को अपनाने के लिए हमेशा तैयार है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स क्या है ?
इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक वैसी नेटवर्किंग है जिसमें आपके उपयोग की सभी चीजें टेलीविजन से लेकर मोबाइल तक इंटरनेट से जुड़ी होती है. उदाहरण के लिए, अगर आप इंटरनेट ऑफ थिंग्स के दायरे में हैं तो आपका डिवाइस आपके घर और किचेन में रखे अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को कमांड देता है.
इस तकनिकी से हम अपने दैनिक जीवन में इस्तेमाल कर रहे सभी पदार्थों को डिवाइस विशिष्ट ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ इंटरनेट से जोड़कर स्मार्ट बनाकर उनसे मनोवांछित कार्य करा सकते हैं.
इन उपकरणों में सेंसर द्वारा एकत्र डेटा की बड़ी मात्रा क्लाउड पर इंटरनेट के माध्यम से दूरस्थ सर्वर पर रखे जाते हैं . इस डेटा को विभिन्न संगठनों, व्यापार,सूचना के प्रचार और प्रसार के लिए उपयोग में लाया जाएगा.
उदाहरण के लिए एक कार बीमा कंपनी अपनी पॉलिसी धारकों को (कार में सेंसर के माध्यम से एकत्र आकड़ों के माध्यम से )अगर उसे पता चल गया कि वह चक्रवात वाले एरिया की तरफ बढ़ रहा है तो उसे चेतावनी देकर उसे उधर जाने से मना कर सकता है.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स तकनीक तीन चरणों में कार्य करती है
सेंसर ( जो डेटा संग्रह करता है )
एक एप्लीकेशन (एकत्रित डेटा के विश्लेष्ण हेतु )निर्णय लेना तथा निर्णय लेने वाले सर्वर तक डेटा का संचरण.
निर्णय प्रक्रिया के लिए एनालिटिकल इंजन तथा बहुत अधिक संख्या में डेटा का प्रयोग किया जाता है.
सेंसर ( जो डेटा संग्रह करता है )
इंटरनेट ऑफ थिंग्स और इसकी व्यापारिक क्षमता
वर्ष 2011 में पृथ्वी पर निवास कर रहे 7 बिलियन आबादी से अधिक यहां इंटरनेट से जुड़े उपकरणों की संख्या 12.5 बिलियन है. वैश्विक स्तर पर 2020 तक से जुड़े उपकरणों की संख्या 26 बिलियन से 50 बिलियन के मध्य होने की संभावना है.
इस पृष्ठभूमि में इंटरनेट ऑफ थिंग्स बेहतर (आईओट लाइफस्टाइल की दिशा में एक और कदम है जिसका जीवन की वास्तविक समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है पर अब हॉस्पिटल्स रोजमर्रा के लाइफस्टाइल से जुड़ी इस टेक्नोलॉजी को लोग तेजी से अपना रहे हैं.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक वैसी नेटवर्किंग है जिसमें आपके उपयोग की सभी चीजें (मोबाइल से लेकर टीबी तक) इंटरनेट से जुड़ी होती है. उदाहरण के लिए, अगर आप इंटरनेट ऑफ थिंग्स के दायरे में हैं तो आपका डिवाइस आपके घर और किचेन में रखे अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को कमांड देता है. इस प्रकार यह आगामी दशकों में आईटी उद्योग और इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली कंपनियां इसका समुचित लाभ उठा सकती हैं.
इंटरनेट ऑफ थिंग्स का अनुप्रयोग
यह तकनीक हरित क्षेत्र,स्मार्ट ग्रिड, स्मार्ट निर्माण, औद्योगिक निगरानी, कृषि, स्मार्ट शहरों, स्वास्थ्य सेवा, कनेक्टेड घरों, टेलीमैटिक्स और आपूर्ति श्रृंखला, वन और वन्य जीवन सुरक्षा, मोटर वाहन, प्राकृतिक आपदाओं, आदि में प्रयोग में लायी जा सकती है.
भारत में स्थिति क्या है?
केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2014 में इंटरनेट ऑफ थिंग्स पर मसौदा नीति जारी की थी.
डिऔर जिटल इण्डिया स्मार्ट सिटी पहल के साथ तालमेल की परिकल्पना के साथ अप्रैल 2015 में कुछ संशोधनों के साथ इसे जारी किया गया.
इस नीति के तहत 2020 तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का इंटरनेट ऑफ थिंग्स उद्योग बनाने की परिकल्पना है.
इसके अलावा सरकार की तैयारी आईओटी सेंटर्स को भी डेवलप करने की है.
2020 तक आंध्रप्रदेश को मुख्य आई टी हब में परिवर्तित करने के उद्देश्य से आंध्रप्रदेश की सरकार ने भारत की पहली इंटरनेट ऑफ थिंग्स नीति 2016 को मंजूरी प्रदान की
यहां तक कि निजी क्षेत्र में अगस्त 2015 में रिलायंस कम्युनिकेशन लिमिटेड ने संयुक्त राज्य अमेरिका आधारित जैस्पर टेक्नोलॉजीज के साथ एक समझौता कर भारत में इंटरनेट ऑफ थिंग्स सेवाओं में प्रवेश करने की कोशिश किया.
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