भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 28 अप्रैल 2015 को तमिलनाडू के महेंद्रगिरी जिले के इसरो संचालन परिसर से स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया.
यह इंजन चार टन वजन वाले उपग्रहों को भू स्थैतिक कक्षा में पहुंचाने और भारत द्वरा चलाए जा रहे जांच एवं मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगा.
तिरूवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में यह परीक्षण 635 सेकेंड के लिए किया गया जो की सफल रहा.
क्रायोजेनिक इंजन के इस शक्तिशाली संस्करण का तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) से सफलतापूर्वक जमीनी परीक्षण किया गया.
निदेशक डी कार्थीकेसन की अध्यक्षता में इस परीक्षण का नेतृत्व किया गया.
भारत, अमेरिका, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, चीन और जापान के बाद क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने वाला छठा देश है. इससे पहले भारत ने पहले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन युक्त प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-D5 का जनवरी, 2015 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया था.
परन्तु इसकी क्षमता दो टन के उपग्रहों के प्रक्षेपित करने की थी.
क्रायोजेनिक इंजन के बारे में –
• क्रायोजेनिक इंजन को क्रायोजेनिक इंजन कहने के पीछे कारण यह है की यह इंजन क्रायोजेनिक तापमान पर कार्य करता है.
• -238 डिग्री फॉरेनहाइट को क्रायोजेनिक तापमान कहा जाता है.
• इतने कम तापमान पर इंजन में प्रयोग किए जाने वाले ईंधन यानी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन तरल अवस्था में आ जाते हैं.
• ईंधन के तरल होने के तीन लाभ हैं-
पहला यह की तरल प्रणोदक से 4.4 किमी प्रति सेकंड की गति प्राप्त की जा सकती है.
दूसरा तरल प्रणोदक के प्रयोग से अच्छा अपलिफ्ट मिलता है.
तीसरा यह की गैसीय अवस्था में इतने ज्यादा अपलिफ्ट को प्राप्त करने के लिए इंजन को बड़ा बनाना पड़ता जिससे प्रक्षेपण वाहन का भार बहुत बढ़ जाता और उसको गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रक्षेपित करना और जटिल हो जाता.
• क्रायोजेनिक ईंधन सर्वाधिक स्वच्छ ईधन है क्योंकि इससे जलने पर सिर्फ जल ही अपशिष्ट के तौर पर निकलता है.
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