इस्लामिक विद्वान, प्रगतिशील चिंतक, लेखक और समाज सुधारक असगर अली इंजीनियर का मुम्बई के सांताक्रूज पूर्व स्थित आवास में 13 मई 2013 को निधन हो गया. वह 73 वर्ष के थे. 1970 के दशक में बीएमसी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद वह दाऊद बोहरा समुदाय के सुधारवादी आंदोलन से जुड़ गए. उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक स्टडीज (1980) और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलरिज्म (1993) की स्थापना की.
इनका जन्म राजस्थान के सलम्बर में एक दाऊदी बोहरा आमिल परिवार में 10 मार्च 1939 को हुआ. उनके परिवार में एक पुत्र इरफान और एक पुत्री सीमा इंदौरवाला हैं. असगर अली इंजीनियर की पत्नी का पहले ही निधन हो गया था.
वर्ष 1940 में मध्य प्रदेश के इंदौर (विक्रम विश्वविद्यालय) से सिविल इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण करने के बाद असगर ने लगभग 20 वर्षों तक बृहन्मुम्बई नगर निगम (बीएमसी) में अपनी सेवाएं दी. उन्होंने विभिन्न विषयों पर लगभग 50 पुस्तकें लिखी. 1980 के दशक में ही उन्होंने भारत में इस्लाम और सांप्रदायिक हिंसा पर किताब भी लिखी. वह सभी धर्मो को बराबर का सम्मान देने में विश्वास रखते थे.
वर्ष 1980 से वह द इस्लामिक पर्सपेक्टिव नामक पत्रिका का संपादन करने लगे. वर्ष 1987 में उन्हें यूएसए इंटरनेशनल स्टूडेंट एसेंबली और यूएसए इंडियन स्टूडेंट एसेंबली की तरफ से प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 1990 में उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द के लिए डालमिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया और डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई. वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद इंजीनियर की प्रेरणा से सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेकुलरिज्म (सीएसएसएस) नामक संगठन की स्थापना की गई. जिसके अध्यक्ष असगर अली इंजीनियर थे.
असगर अली इंजीनियर को वर्ष 1997 का राष्ट्रीय सांप्रदायिक सौहार्द पुरस्कार और वर्ष 2003 में एसोसिएशन फॉर कम्युनल हारमोनी इन एशिया द्वारा यूएसए पुरस्कार प्रदान क्या गया. असगर अली इंजीनियर बोहरा मुस्लिम समुदाय से थे. उन्होंने धर्मग्रंथों की प्रगतिवादी विवेचना की जिसके कारण कई बार उनका कट्टरपंथी धर्मगुरुओं के साथ विवाद भी हुआ.
उन्होंने अपना सारा जीवन देश में साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने और सामाजिक सद्भाव के लिए समर्पित कर दिया था. इस्लाम और इस्लामिक न्यायशास्त्र की उनकी गहरी समझ के आधार पर उनके उदार तथा तर्कसंगत विचार प्रासंगिक है.
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