उच्चतम न्यायालय ने 15 जुलाई 2015 को राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण नीति, 2012 और ड्रग प्राइस कंट्रोल,2013 को असंगत और अतार्किक बताया.
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के औषधि विभाग से इस विषय पर विश्लेषण करने और स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है.
उच्चतम न्यायालय ने छह महीने के भीतर बाजार आधारित दवा मूल्य निर्धारण नीति की समीक्षा करने के आदेश दिए हैं.
बेंच ने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) को चुनौती देने वाली एनजीओ ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क से सरकार को विरोधपत्र देने के लिए कहा है, इसके अतिरिक्त मंत्रालय को छह महीने के अंदर तर्कपूर्ण आदेश जारी करने के निर्देश दिए गए हैं.
गैर सरकारी संगठन की याचिका में तर्क
• इसके अनुसार बाजार आधारित दवा मूल्य निर्धारण नीति का प्रयोग किसी भी कीमत नियामक उद्देश्यों के लिए नहीं किया गया. कई मामलों में साधारण औसत मूल्य, बाजार मूल्य से अधिक है.
• संगठन ने माँग की मधुमेह और तपेदिक जैसी बीमारियों की दवाओं की कीमत सरकार द्वारा विनियमित की जानी चाहिए.
• याचिकाकर्ता ने दलील दी कि नई पॉलिसी के तहत ड्रग निर्माताओं और डीलरों के लिए प्रॉफिट का मार्जिन 10 से 1300 फीसदी हो गया है.
• संगठन के अनुसार राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची में सिर्फ 348 ड्रग्स को ही शामिल किया गया है जबकि कई आवश्यक दवाओं को मूल्य नियंत्रण से बाहर रखा गया है.
• इसके अतिरिक्त यह भी माँग की गई की एचआईवी-एड्स, कैंसर, मानसिक स्वास्थ्य, अस्थमा और गठिया जैसे गैर संचारी रोगों में इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं पर सरकार को दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए.
• न्यायालय ने तमिलनाडु और केरल सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली दवा के मूल्य में 4000 फीसदी अन्तर पर संज्ञान माँगा है.
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